‘एक था जाँस्कर’… वो भी तो कभी देख जो मंज़र में नहीं है
अजय सोडानी ने तो पूरा वृत्तांत इतनी खूबसूरती, इतनी तल्लीनता से लिखा है कि पाठक भी उनका सहयात्री बन उसी लम्हें में जीने लगता है। मेरे साथ भी यही हुआ। किताब पढ़ते-पढ़ते सहसा महसूस हुआ कि ‘एक था जाँस्कर’ की रचना प्रक्रिया जाननी चाहिए। इस सवाल से आरंभ हुआ एक रोचक संवाद।
‘एक था जाँस्कर’… वो भी तो कभी देख जो मंज़र में नहीं है जारी >

