जब कवि की उंगली तिलोत्तमा के सामने रुकी रह गई

जैसे ही दो उंगलियां उठीं, वे उठी ही रह गईं। इसके बाद क्या बोलना है, कुछ याद नहीं आया। घबराहट इतनी थी कि न तो कुछ याद आ रहा था और न ही उंगली नीचे हो रही थी।

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