शब्दों के ऑर्केस्ट्रा में साइंस एक म्यूजिकल स्ट्रिंग
इस पुस्तक को पढ़कर महसूस होता है कि इंसानी भावनाओं और बातचीत का डायनामिक्स हमारी ज़िंदगी में बहुत कुछ मायने रखता है।
शब्दों के ऑर्केस्ट्रा में साइंस एक म्यूजिकल स्ट्रिंग जारी >
इस पुस्तक को पढ़कर महसूस होता है कि इंसानी भावनाओं और बातचीत का डायनामिक्स हमारी ज़िंदगी में बहुत कुछ मायने रखता है।
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पहली बार जब उसको गले लगाया था तो उसकी और से मुझे उत्तर मिला था। लेकिन अब नहीं। पेड़ का शरीर तो खड़ा था लेकिन उसके प्राण निकल गए थे।
मां की याद हरी है,पेड़ सूख गया है… जारी >
विषपायी जी ने कबीर की तरह जीवन जिया। उनके पत्र और साहित्य लेखन का इतना प्रभाव रहा है कि उनके निधन पर प्रख्यात कहानीकार-संपादक राजेद्र यादव ने ‘हंस’ के संपादकीय के एक कालम में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की थी।
एक थे विषपायी जी…ऐसे कुछ लोग ही मिले जारी >
यहां एक पहेली भी नज़र आती है जो बारिश के हर्फ़ को उल्टाने की बात कह रही है। बारिश लफ्ज़ जिन तीन हर्फ़ों से मिलकर बना है। उन्हें अगर उल्टा दिया जाए तो वह शराब लफ्ज़ के हर्फ़ों में तब्दील हो जाता है।
बारिश के सब हुरूफ़ को उल्टा के पी गया… जारी >
यह कहा जा सकता है कि सांगीतिक डोमेन में राग की छवि का रूपांतरण का कीमिया एक गणितीय प्रक्रिया है जो एक जटिल सिग्नल को उसके मूल आवृत्ति घटकों में विभाजित करता है।
जिन्हें सुन अभंग याद आता है, जोहार माय बाप,जोहार माय बाप जारी >
लियो एक बहुत सामान्य इंसान है। पिता का विराट व्यक्तित्व उसे ढँके रहा जब वह उनसे दूर जाता है तब सही गलत को निष्पक्ष देख पाता है।
बिना चीख चिल्लाहट, हौले से दर्द और भावनाओं को उकेरती फिल्म जारी >
एलिस को यह जानते डर लगता है लेकिन पति को बताने पर वह इसे बहुत हल्के में लेते हैं। डॉक्टर से मिलते हुए भी वह जिस उग्रता से इसके लक्षणों को नकारते हैं।
… अंत में जो बच जाता है वह आँखें भिगो देता है जारी >
काश कि मरघट में हिलौर मारने वाले श्मशान वैराग्य की तरह यह चिंतन भी तात्कालिक न हो, जरा अधिक देर हमारे भीतर उथल-पुथल मचाए। काश!
भेद मिटाता श्मशान! दोगले समाज की तस्वीर जारी >
कभी-कभी यात्राएँ हमें कहीं नहीं ले जातीं, बल्कि हमें वहाँ लौटा लाती हैं, जहां हम सच में “संबद्ध” होते हैं।
सड़क अब बनेगी, रास्ते तो पहले ही बन गए जारी >
जैसे ही दो उंगलियां उठीं, वे उठी ही रह गईं। इसके बाद क्या बोलना है, कुछ याद नहीं आया। घबराहट इतनी थी कि न तो कुछ याद आ रहा था और न ही उंगली नीचे हो रही थी।
जब कवि की उंगली तिलोत्तमा के सामने रुकी रह गई जारी >