सोशल मीडिया के युग में नेरुदा से क्या सीख सकते हैं?

नेरुदा और उनके जैसे ही अन्य लोगों से हम सीख सकते हैं कि खुद को अभिव्यक्त करने का तरीका और सुनना किसी भी प्रतिरोध के मुख्य घटक हैं।

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अंतिम लीला: खिल उठेगी उम्मीद की दुनिया फिर एक दिन

नाटक में मौजूदा संवाद योजना एवं कोमल चेतना प्रमाण है कि चारों ओर तम के बादल होने पर भी अगर भीतर रौशनाई है तो तिमिर हावी न होगा। सध जाएगा काल चक्र और खिल उठेगी उम्मीद की दुनिया फिर एक दिन।

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मैं क्यों लिखता हूं? शायद इसलिए कि…

जीवन में मुझे अपने भाई का स्थान देने वाली वह बहन, अस्पताल में पड़ा वह नौजवान, जिसके मन में मृत्युशय्या पर भी मेरी पुस्तक पढ़ने की याद जगती है; बस में मिलने वाला वह किसान, जिसे इस बात पर हँसी आ जाती है कि मैं इतनी अच्छी किताब, लिख कैसे लेता हूं, जिसे पढ़कर उसकी स्त्री और लड़की दोनों खुश हों तथा किराये की साइकिल की दुकान चलाने वाला वह गरीब लड़का, जो मुझसे इसलिए अपनी साइकिल का किराया नहीं लेना चाहता कि मैं उसका प्रिय लेखक हूं- क्या इन सबका यह असीम स्नेह; मेरी पुस्तक की पर्याप्त रायल्टी नहीं है?

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दाड़ी पगड़ी वाला कवि जो जादूगर समझा गया… सच में जादूगर था

पद्मश्री डॉ. सुरजीत पातर जिन्‍हें पंजाब के युग कवि पुकारा गया और जिन्‍हें शब्दों का समर्थ कवि की संज्ञा दी गई। उनकी कविताएं भले ही पंजाबी में लिखी गईं लेकिन उनमें सारे जहान की अनुभूति समाहित है और इसी कारण कविताएं अनुवाद के रूप में पंजाब, भारत का दायरा लांघ कर पूरे विश्व में पहुंची हैं।

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बोलते संगीत वाद्यों का चित्रकार नागनाथ मानकेश्वर

विगत दिनों एक ऐसी पेंटिंग या कहूं चित्रकृति पर नजर ठिठक गईं जिसमें प्रदर्शित कम हो रहा था मगर जो छुपे हुए अर्थ वह पेंटिंग बताना चाह रही थी उसकी आवाज मुझ तक जाने कैसे पहुंच गई कह नहीं सकता। इस आवाज को आप भी सुनें।

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‘एनिमल’ हो चुके समाज का मोस्‍ट वायलेंट यात्रा में स्‍वागत

फिल्म को मोस्ट वायलेंट फिल्म की तरह से प्रमोट करते हुए फिल्ममेकर एक तरह से नये जॉनर की घोषणा कर रहा है। सवाल है कि क्या फिल्म को मोस्ट वायलेंट कहते हुए प्रमोट करना ठीक है?

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जो किताबें पढ़कर बिगड़े वो जीवन में इंसान बन गये

आज विश्व पुस्तक दिवस है, हम जैसे पुस्तक प्रेमियों के लिए एक खास दिन। कहने वाले कहेंगे कि क्या किताब पढ़ने का भी कोई एक दिन हो सकता है? नहीं हो सकता है लेकिन जब अपने आसपास मोबाइल में डूबे और 10 से 30 सेकंड की फेसबुक-इंस्टा रील में डूबे युवाओं को देखती हूं तो मुझे लगता है कि किताबों की बात करना कई वजहों से जरूरी है

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केवल सच की घुट्‌टी से तोड़ा जा सकता है झूठ का नशा

इन दिनों जबकि प्रोपगंडा आधारित फिल्मों का बोलबाला है, इस फिल्म की खूबसूरती यही है कि यह फिल्म इतिहास के एक ऐसे घटनाक्रम से दर्शकों को रूबरू कराती है जिसके बारे में उन्हें कुछ खास नहीं पता है।

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