डॉ. दिव्या रंजना पाण्डेय
आज जहां भी नजर दौड़ाएं, सब जगह इश्तहार है मदर्स-डे का।
क्या मां की ममता, करुणा, त्याग का मोल मात्र एक दिवसीय शुभकामनाएं हो सकती हैं? क्या हमें साल में एक दिन के महिमा-मंडन से खुश-संतुष्ट हो सालभर उस यशगान की धुन गाते-गुनगुनाते अपनी सभी परेशानियां ताक पर रख देनी चाहिए?
नहीं। मुझे पता है कि सिर्फ शुभकामनाओं और यशगान से काम नहीं चलने वाला।
फिर? मातृशक्ति…..नारीवाद?
नहीं, इस बारे में भी नहींI
मुझे आपसे कुछ ठोस बात कहनी है।
स्तन रोग निदान चिकित्सा से जुड़े होने के नाते आए दिन बहुत-सी माताएं स्तन में गांठ और उससे सम्बंधित परेशानियों के साथ मुझ तक पहुंचती हैंI
हाल ही में एक माता जो बायें स्तन में गठान के साथ आई थीं, जांच और इलाज बताने पर कहने लगीं, “पर मैडम, बिना सुई की जांच के काम नहीं चल सकता क्या? इसमें तो बहुत दर्द होता होगा! मैं तो आज से पहले कभी अस्पताल तक नहीं आई थी, मैडम। बहुत डर लगता हैI बायोप्सी में तो दर्द से जान निकल जाएगी, चाहें आप सुन्न करने की तसल्ली दो, तो भी हिम्मत नहीं मेरी। मैं इस सहमती-पत्र पर साइन नहीं कर सकती। सॉरी मैडमजी!”
“आप ही ने तो कहा था कि गठान छोटे नींबू जितनी बड़ी है बसI फिर इलाज में ऑपरेशन, कीमोथेरेपी, सिंकाई… इन सबकी जरुरत क्यों पड़ेगी? मेरे पड़ोस वाली एक औरत ने भी बच्चेदानी के कैंसर का इलाज करवाया थाI बेचारी निढ़ाल हो गई कमजोरी से, बाल भी सारे चले गये उसके। औरत की कहां बची वो, मर्द हो गई। गांव में एक देसी डॉक्टर इन गांठों के घुलने की दवा देता है, मैडम I मेरा तो मन वही इलाज चलाने का हैI’’
ये सब डर-चिंताएं माताओं पर इस तरह हावी रहते हैं कि कइयों बार हमारा लाख समझाना-बुझाना भी नाकाफी होता है I
और हम इतनी मशक़्क़त करते क्यों हैं?
तो बात ऐसी है कि आज जिसका दिन दुनिया मना रही है, स्तन-कैंसर ने पहले दुनिया और अब हिंदुस्तान में भी उसके सबसे जानलेवा कैंसर का ख़िताब हासिल कर लिया हैI
यूं तो मेडिकल साइंस स्तन-कैंसर को अमूमन आसान पकड़, पहचान और बेहतर इलाज के चलते बाकी सभी कैंसर्स की तुलना में निहायती शरीफ किस्म का मानता हैI
लेकिन बिना सावधानी, जागरूकता और इच्छाशक्ति के नहीं, बिलकुल नहीं।
खासकर तब, जब आज भी हमारे समाज में स्तन से जुड़ी किसी भी परेशानी को छुपाने, न दिखाने की परिपाटी चली आ रही होI
स्तनपाइयों में पाई जाने वाली यह पोषक ग्रंथि भी शरीर के बाकी अंगों के समान ही रोगों का घर बनने की संभावना रखती हैI बल्कि अपनी संरचना और हॉर्मोंस का पसंदीदा प्ले-ग्राउंड होने की वजह से इसे खतरा कहीं ज्यादा हैI
ऐसे में जरुरत है आपको कुंठा बाहर आने की, नियमित ब्रेस्ट-सेल्फ-एग्जामिनेशन करने की।
तकलीफ महसूस होने पर उसे कहने-बताने कीI हो सकता है कि आपका परिवार आपकी परेशानी को तरजीह न दे, आपको उपेक्षा मिले। लेकिन आपको समझौता नहीं करना हैI
ऐसे रिश्तों से जो जरूरत पड़ने पर घर से अस्पताल तक का रास्ता न तय कर पाए, आपको उन्हें पीछे छोड़ना होगा, अस्पताल पहुंचना होगाI
अपने गांव, कस्बे या जिले में विशेषज्ञ न मिलने पर उनतक उनके शहर पहुंचना होगा। ब्रेस्ट-अल्ट्रासाउंड, मैमोग्राफी, बायोप्सी, इलाज के डर के आगे के रोगमुक्त जीवन के बारे में सोचना होगा।
आपके जीवन की बागड़ोर भले ही आपके हाथ में है लेकिन आपका साथ जिनकी जरूरत, ख़्वाहिश, सपना है वो कभी नहीं चाहेंगे कि उन्हें आने वाले हर मदर्स-डे पर महज़ आपकी यादों, तस्वीरों से ही दिल बहलाना पड़ेI
जरा सोचकर देखिए! कितनी सुंदर होगी उन सब की दुनिया जब याद आते ही पहुंच पाएंगे वे मां से मिलने, जब आवाज सुनने का मन होगा, मिला लेंगे फोन… जब हर मदर्स-डे पर सिर्फ आपकी यादें नहीं, आप भी होंगी उनके साथ।
सकारात्मकता से भरता जरूरी सा आलेख
Sundar likha