… तो चलो आज कुछ चाँद हो जाए

  • आशु चौधरी

आज शरद की पूर्णिमा है। पतझड़ की ऋतु की सबसे उजली रात। महारास की रात। मन के आनंद के अति तीव्र होने की निशा। रजनी जिसकी गंध मानव मन-मानस में उजाला फैलाती रही है, जाने कब से। पहली बार किसने पहचाना होगा कि यह है शरद की पूर्णिमा? किसने दिया होगा इसे यह नाम? जब नहीं पहचाना गया होगा तब भी इतनी ही धवली होती होगी यह रात्रि। जितनी धवल की मन की कलुषता दुबकने को मजबूर हो जाए। शरद की पूनम पर भाव खिल आते हैं… ऐसे ही भावों से पगी रचनाओं को पढ़ने का श्रेष्‍ठ मौका है यह।

1)

2)

3)

4)

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *