तीसरा सवाल: चमकदार चेहरे के पीछे कष्टदायक बर्ताव से यात्रियों को मुक्ति आखिर कब मिलेगी?
बीते पौने दो सौ साल की यात्रा में भारतीय रेलवे ने लंबा सफर तय किया है। सुविधाओं के मामले में हम वर्ल्ड क्लास स्टेशनों के उपयोगकर्ता कहलाने लगे हैं लेकिन सुविधाएं दोयम दर्जे की ही हैं। कितना कष्टदायक है कि एक यात्री अपनी गाड़ी के इंतजार में घंटों प्लेटफार्म पर बैठा रहता है और उसे सटीक जानकारी भी नहीं मिल पाती है कि उसकी गाड़ी आखिर कब पहुंचेगी। गाड़ी के इंतजार में स्टेशन पर बैठे रहना यात्रियोंं को निरीह बनाता है। सवाल यही है कि विश्व स्तरीय स्टेशन बना कर सुविधाएं तो जुटा दी गई है लेकिन उनके रखरखाव के मामले में ढर्रा पुराना ही है। एक तरफ चमकदार प्रचार और दूसरी तरफ कष्टदायक सच्चाई। रेलवे को इससे मुक्ति आखिर कब मिलेगी?
रेल यात्रा की व्यथा को दिखाते हुए हम एक शृंखला प्रस्तुत कर रहे हैं। आइए, बतौर नागरिक हम एक पहल करें। एक चर्चा की शुरुआत करें। रेलयात्रा की अपनी कथा-व्यथा को साझा करें। शायद हमारी बात कुछ कानों तक पहुंचे और जिस बदलाव की हम बात कर रहे हैं वह संभव हो सके। इस विमर्श की शुरुआत ऐसी ही एक व्यथा कथा से। आप अपने अनुभव, प्रतिक्रिया और राय हमसे साझा कर सकते हैं। हमारा ठिकाना: editor.talkthrough@gmail.com
गाड़ी 9 घंटे लेट थी और हम आस लगाए बैठे थे
मनीष माथुर, सामाजिक कार्यकर्ता
मैं मुंबई यात्रा पर हूं और रेलयात्रा के अनुभवों को साझा कर रहा हूं। यह कैसे हो सकता है कि हम भारतीय रेलवे में सफर करें और अपने मुकद्दर को न कोसे? ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ। अपने जीवन में यूं तो कई बार रेलयात्राएं की हैं लेकिन पैसा दे कर स्टेशन पर आराम करने का ये पहला अनुभव था। CSMT पर 40 यात्रिओं के लिए sleeping-pods की व्यवस्था है, जिसमे सिंगल, डबल, और फैमिली pods शामिल हैं। रद्द हुई या विलंबित गाडि़यों के कारण उन 40 pods के लिए 400 दावेदार थे। ईश्वर को नमन किया, जो मैं उन 40 भाग्यशालीजन में था जिसे पोड मिला।
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व्यवस्थाएं होना और उनका व्यवस्थित संचालन होना दो अलग पहलू हैं। यहां के कॉमन एरिया में, भोजन करने हेतु, टेबल-कुर्सी उपलभ थीं, साथ ही कॉमन स्नानागार, टॉयलेट्स की भी व्यवस्था थी। परंतु साफ-सफाई की कमी यहां भी चुभी। पान मसाला के मलबे से बंद हुए वाश – बेसिन, एवं मूत्रालय। उफनते हुए कचरे के डब्बे अपनी उपस्थिति मुस्तैदी से दर्ज कर चुके थे।
पिछले दिन से अब तक की यात्रा पर मनन करने का अच्छा मौका था, नींद तो क्या आनी थी? मन में विचार आए:
(1) रेलवे द्वारा अपनी सर्विस की गुणवत्ता को सुधारने के लिए किए गए काफी काम नजर आते हें यथा ऑनलाइन बुकिंग, रेल गाडियों की गति मै इजाफा, माल-गाड़ियों के लिए अलग लाइंस, बेहतर तकनीक से सुसज्जित coaches, एवं शौचालय।
(2) मोटा IEC बजट लेकिन किस काम का? यात्रियों से संवाद या उन्हें सूचित रखने की प्राथमिक जरूरतों को नजरंदाज कर इस पैसे का अधिकतम उपयोग सरकार की घोषणाओं (प्रधानमंत्री, रेल मंत्री की फोटो समेत पूरे पेज के विज्ञापन) में किया जाता है? रेलवे कर्मचारी इस संवाद को बनाए रखने के लिए प्रशिक्षित एवं तैनात नहीं किया गया है।
(3) हम सब एक उपभोक्ता के रूप में कब, अनुशासित होंगे और अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के परे व्यवहार करना सीखेंगे?
रात लगभग 11 बजे भारती का संदेश आया कि ट्रेन अब सुबह 4 बजे रवाना होगी। फलतः सुबह तीन बजे का अलार्म लगाया। नींद लगी ही होगी कि pod के कर्मचारी महोदय ने अपनी बुलंद आवाज से उठाया, “आपका टेम खलास हुआ साब, अब खाली करने का।”
मेरी गाड़ी 4 बजे जाएगी, टेम बढाने का है। अब सोने दे।- मैंने कहा।
“फिर बाहेर आके, काउंटर पे पैसा जमा करने का – पैसेंजर बोम मार रे के एक पोड खाली हें। सब सिस्टम बे दिखता न साब।”
बहरहाल, नींद में ही चल कर बाहर आया। पेमेंट किया।
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तड़के तीन बजे में वापस वेटिंग एरिया में हाजिर हुआ। डिस्प्ले बोर्ड बता रहा था पंजाब मेल 4 बजे, प्लेटफार्म नंबर– 00। बारिश की रफ़्तार घमासान थी, बारिश के शोर ने मानो सब कुछ ढंक दिया था। वेटिंग एरिया खचाखच भरा था, लोग 3-3 सीट्स घेरे हुए सो रहे थे, फर्श पर भी चलने को जगह नहीं थी।
सुबह के 5 बज चले थे, departure time अभी भी 4 बजे का ही प्रदर्शित था। प्लेटफार्म की जानकारी, अभी भी गुप्त रखी गई थी। सफर अभी तो शुरू भी नहीं हुआ था, गाड़ी अब तक लगभग 9 घंटे लेट हो चुकी थी। ठगे से बैठे यात्रियों को सूचित करने की किसे पड़ी थी?
सोते-जागते, फर्श पर अंगोछा बिछा कर लेटे, नर-नारियों, बच्चों, चाय बेचते लड़कों, पानी के छोटे-छोटे कुंड तथा एक शांत स्वभाव के श्वान के बीच रास्ता बनाते हुए मैंने एक ऐसी सीट कब्जाई, जहां से LED सूचना–पटल साफ दिखे। पटल घोषणा कर रहा था, “अमृतसर एक्सप्रेस – ETD – 01.00 – प्लेटफार्म – 00” , “पंजाब मेल – ETD – 04.00 – प्लेटफार्म – 00”।
लगभग साढ़े पांच बजे, फंसे हुए यात्रियों का एक समूह ‘पूछताछ’ खिड़की पर इकट्ठा हो गया। समूह ने तुरंत एक नेता को जन्म दिया। उस नेता की ओजस्वी तथा भावपूर्ण चिल्लाहट से भीड़ एक सभा और फिर जुलूस में बदल गई।
नेता जी को क्रोधित होकर कर्कश आवाज में चीखते देख, मुझे चिंता हुई, कहीं इसे दिल का दौरा न पड़ जाए। वह जुलूस पूछताछ से प्लेटफार्म नंबर 14-18 की तरफ बढ़ा फिर GRP के एक अफसर तथा उनके दो-तीन मातहतों ने बातचीत शुरू की। मुझे नजर आया, कि प्रतिभागियों से ज्यादा संख्या उन लोगों की थी जो अपने मोबाइल पर इस सब रट्टे की reel बना रहे थे।
लोगों के सतत कोलाहल ने मानो पार्श्व संगीत का काम सम्भाला; और ट्रेन के horns, वेंडर्स की टेरों, लाउडस्पीकर पर हो रही घोषणाओं ने एक संगीत का रूप ले लिया। देखो भाई, हम तो जटिल परिस्थितियों में भी आनंद खोज लेते है, इसलिए पैर फैला कर हम भी, पसर गए। घड़ी साढ़े 6 बजा रही थी। हम आस लगाए बैठे थे।
जारी…
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