यह एग्जिट पोल तो हमें बीमार कर रहा है…

– डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी

वरिष्ठ मनोचिकित्सक एवं स्तंभकार

एग्जिट पोल अपनी विश्‍वसनीयता खो रहे हैं। इन्‍हें बस एक मजाक की तरह लेना चाहिए। ऐसे जुमले हमें तब जरूर सुनाई देते हैं जब एग्जिट पोल गलत साबित हो रहे होते हैं। एग्जिट रिजल्‍ट आने के पहले आते हैं और रिजल्‍ट आने तक एक खास तरह का माहौल बना देते हैं। किसी को डराते हैं, किसी को उत्‍साह से भर देते हैं। अक्‍सर जब परिणाम आते हैं तो एग्जिट पोल औंधे मुंह गिरे होते हैं। चूक वहीं होती है जब एग्जिट पोल को परिणाम का ट्रेलर मान लिया जाता है। एक गिमिक एग्जिट पोल वास्‍तव में हमें बीमार कर रहे हैं। क्‍यों, कैसे? पढ़िए यह विश्‍लेषण:

अस्पताल से लौटते समय हरियाणा चुनाव परिणाम पर कैब ड्राइवर साहब बड़े बेचैन से दिखे, बोले- सोचो कुछ और आता कुछ है। किसी पर विश्वास ही नहीं किया जा सकता। लोकसभा चुनाव में एक्जिट पोल के विपरीत नतीजें देखने के बाद एग्जिट पोल हरियाणा में भी फेल साबित हुए। कई मित्रों के भी इस पर कमेंट्स ने मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया।

एग्जिट पोल चुनाव परिणामों की पूर्वानुमानित तस्वीर प्रस्तुत करते हैं, जो अक्सर चुनाव के बाद की कौतूहल को शांत करने के लिए किए जाते हैं। हालांकि एग्जिट पोल सही साबित हों या गलत, उनका समाज पर मानसिक प्रभाव गहरा होता है। एग्जिट पोल के परिणाम चाहे सही निकलें या गलत, यह समाज की मानसिक स्थिति, विश्वास, और पोलराइजेशन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं।

एग्जिट पोल जब बिलकुल ही गलत साबित होते हैं, तो लोग अनिश्चितता और मानसिक तनाव का अनुभव करते हैं। एग्जिट पोल जनता को एक परिणाम विशेष की होप देते हैं और जब वास्तविक परिणाम इससे विपरीत होते हैं, तो निराशा और भ्रम उत्पन्न होता है। लोग अपनी अपेक्षाओं के साथ जुड़ जाते हैं, और जब ये अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं, तो मानसिक असुरक्षा का अनुभव हो सकता है। खासकर राजनीति में गहरा इंटरेस्ट रखने वाले लोग इस प्रकार के मनोवैज्ञानिक दबाव से अधिक प्रभावित होते हैं।
बार-बार गलत एग्जिट पोल आने से लोगों के बीच मीडिया और विशेषज्ञों पर ट्रस्ट इश्यूज विकसित होते हैं।

जब लोग चुनाव विश्लेषकों, पत्रकारों और सर्वेक्षण करने वाली संस्थाओं की सटीकता पर संदेह करने लगते हैं, तो समाज में सूचनाओं पर अविश्वास बढ़ता है। इससे मानसिक असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो सकती है। लोग यह मानने लगते हैं कि उन्हें सही जानकारी नहीं दी जा रही है, जिससे उनके मानसिक संतुलन पर नकारात्मक असर पड़ता है। गलत एग्जिट पोल समाज में राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देते हैं। विभिन्न राजनीतिक समूहों को जब अपने पक्ष में झुकाव दिखता है और फिर परिणाम इसके विपरीत आते हैं, तो यह वैचारिक संघर्ष को बढ़ावा देता है। ऐसे ध्रुवीकरण से समाज में मानसिक तनाव और अविश्वास बढ़ सकता है। राजनीतिक धारणाओं के प्रति लोग और अधिक कट्टर हो सकते हैं, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।एग्जिट पोल गलत साबित होते हैं तो उनके समर्थकों के लिए बड़ा फ्रेसट्रेटिंग होता है।

अगर किसी पार्टी या नेता की जीत की भविष्यवाणी होती है और परिणाम विपरीत आते हैं, तो उनके समर्थकों में निराशा और हताशा का भाव उत्पन्न हो सकता है। इससे मानसिक अवसाद की स्थिति पैदा हो सकती है, खासकर उन लोगों में जो राजनीति से गहराई से जुड़े होते हैं।एग्जिट पोल गलत होने पर राजनीतिक अस्थिरता का भय भी बढ़ जाता है। लोग यह सोचने लगते हैं कि चुनावी प्रक्रिया में कुछ गड़बड़ी हो सकती है, जिससे वे मानसिक रूप से असुरक्षित महसूस करते हैं। इससे समाज में चिंता और मानसिक तनाव का माहौल बन सकता है।

कुल मिलाकर एग्जिट पोल के सही या गलत होने से समाज में मानसिक तनाव, ध्रुवीकरण और विश्वास में कमी जैसे प्रभाव दिखाई देते हैं।

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