बच्‍चों के हक में…

जे.पी.सिंह, वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ

मानसिक और सेक्स विकृति है बच्चों के यौन शोषण की प्रवृत्ति

सुप्रीम कोर्ट ने हल ही में दिए गए अपने फैसले में कहा है कि बाल यौन शोषण सामग्री देखने में बच्चों का यौन शोषण करने की इच्छा निहित है। सुप्रीम कोर्ट ने ‘बाल पोर्नोग्राफी’ के संग्रहण को दंडित करने से जुड़े अपने निर्णय में स्पष्ट किया है कि ‘बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री’ के उपभोग या संग्रहण में बाल यौन शोषण का सामान्य उद्देश्य निहित है। इसके साथ ही देश में बाल यौन शोषण को लेकर बहस तेज हो गई है कि ऐसा करनेवाले किसी मानसिक विकार से त्रस्त हैं और उन्हें चिकित्सा कि जरुरत है या अन्य अपराधों की तरह यह भी एक अपराध है और कठोर दंड देकर इससे निपटा जा सकता है। हालांकि अमेरिका सहित कई देशों में इसके लिए रासायनिक बंध्याकरण का प्रावधान है।

जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस बनाम एस. हरीश (डायरी नंबर 8562) 2024 में फैसला सुनते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि बच्चों का यौन शोषण करने की इच्छा बाल यौन शोषण सामग्री देखने के समान है। ‘चाइल्ड पोर्नोग्राफी’ के संग्रह को दंडित करने वाले अपने फैसले में कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ‘बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री’ के उपभोग या भंडारण के कृत्य में बाल यौन शोषण के अपराध का एक समान उद्देश्य निहित है

पीठ ने कहा कि बाल यौन शोषण सामग्री का उत्पादन स्वाभाविक रूप से यौन शोषण के कार्य से जुड़ा हुआ है। दोनों मामलों में इरादा स्पष्ट है: एक बच्चे का यौन शोषण करना और उसे नुकसान पहुंचाना। ऐसी सामग्री का निर्माण निष्क्रिय कार्य नहीं है, बल्कि जानबूझकर किया गया कार्य है, जहां दुर्व्यवहार करने वाला जानबूझकर बच्चे के शोषण में शामिल होता है, यह अच्छी तरह से जानते हुए कि इससे क्या नुकसान होता है।

पाक्सो एक्ट की धारा 15 बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्री के भंडारण को दंडित करती है। अधिनियम की धारा 14 और 13 बच्चों को अश्लील उद्देश्यों के लिए उपयोग करने पर दंडित करती है। धारा 11 एक बच्चे पर यौन उत्पीड़न को परिभाषित करती है और धारा 12 यौन उत्पीड़न के लिए दंड प्रदान करती है।

पीठ ने कहा कि सेक्स एजुकेशन पश्चिमी अवधारणा नहीं है। गलत धारणा है कि यह युवाओं के बीच संकीर्णता को प्रोत्साहित करती है। एक और आम धारणा यह है कि सेक्स एजुकेशन एक पश्चिमी अवधारणा है जो पारंपरिक भारतीय मूल्यों के साथ संरेखित नहीं है। इस दृष्टिकोण ने विभिन्न राज्य सरकारों के प्रतिरोध को जन्म दिया है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ राज्यों में स्कूलों में सेक्स एजुकेशन पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। पीठ ने कहा, कि इस प्रकार का विरोध व्यापक और प्रभावी यौन स्वास्थ्य कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में बाधा डालता है, जिससे कई किशोरों को सटीक जानकारी के बिना छोड़ दिया जाता है। यह वही है जो किशोरों और युवा वयस्कों को इंटरनेट की ओर रुख करने का कारण बनता है, जहां उनके पास अनियंत्रित और अनफिल्टर्ड जानकारी तक पहुंच होती है, जो अक्सर भ्रामक होती है और अस्वास्थ्यकर यौन व्यवहारों के लिए बीज लगा सकती है।

कोर्ट ने कहा कि इसके अतिरिक्त, एक गलत धारणा है कि सेक्स एजुकेशन केवल प्रजनन के जैविक पहलुओं को कवर करती है। प्रभावी सेक्स एजुकेशन में सहमति, स्वस्थ संबंध, लैंगिक समानता और विविधता के प्रति सम्मान सहित विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। यौन हिंसा को कम करने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए इन विषयों को संबोधित करना महत्वपूर्ण है। इनमें से कुछ चुनौतियों के बावजूद, भारत में सफल सेक्स एजुकेशन कार्यक्रम हैं, जैसे कि झारखंड में उड़ान कार्यक्रम।

कोर्ट ने कहा कि एक प्रचलित गलत धारणा यह है कि सेक्स एजुकेशन युवाओं के बीच संकीर्णता और गैर-जिम्मेदार व्यवहार को प्रोत्साहित करती है। आलोचकों का अक्सर तर्क है कि यौन स्वास्थ्य और गर्भनिरोधक के बारे में जानकारी प्रदान करने से किशोरों में यौन गतिविधि में वृद्धि होगी। हालांकि, शोध से पता चला है कि व्यापक सेक्स एजुकेशन वास्तव में यौन गतिविधि की शुरुआत में देरी करती है और यौन सक्रिय लोगों के बीच सुरक्षित प्रथाओं को बढ़ावा देती है। कोर्ट ने कहा कि सकारात्मक आयु-उपयुक्त सेक्स एजुकेशन युवाओं को हानिकारक यौन व्यवहारों में शामिल होने से रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
कोर्ट ने कहा कि यह सबसे महत्वपूर्ण है कि हम यौन स्वास्थ्य के बारे में गलत धारणाओं को दूर करना शुरू करें और यौन स्वास्थ्य परिणामों में सुधार और भारत में यौन अपराधों की घटनाओं को कम करने के लिए सेक्स एजुकेशन के लाभों की व्यापक समझ को बढ़ावा देना आवश्यक है। भारत की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या के कानूनी पक्ष पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया जबकि इसका मुख्य कारण सेक्शुअल डिसऑर्डर को नहीं छुआ क्योंकि कोर्ट के सामने यह मसला नहीं था। पेडोफिलिक विकार में (आम तौर से 13 वर्ष या उससे कम आयु के) बच्चों को लेकर आवर्ती, तीव्र यौन उत्तेजक कल्पनाएं, इच्छाएं या व्यवहार शामिल हैं।

बच्चों का यौन शोषण एक व्यापक और गहरी जड़ वाली समस्या है जिसने दुनिया भर के समाजों को परेशान किया है और भारत में यह गंभीर चिंता का विषय रहा है। कई बार व्यक्ति अपनी दबी यौन कुंठा एवं मनोविकार से ग्रस्त होने के कारण ऐसा करता है तो कई बार पारिवारिक कलह, पुत्र प्राप्ति का अवसाद, पीढ़ीगत दूरी के कारण भी बच्चों के स्वास्थ, शरीर व गरिमा को क्षति पहुंचाई जाती है। इनमें बेवजह बच्चों को पीटना, तेजी से झकझोरना, खिल्ली उड़ाना, उपेक्षा करना शामिल है। बच्चे न तो मजबूत प्रतिरोध कर पाते हैं और न हीं उनमें यौन चेतना का विकास होता है। इस कारण वे ऐसे अपराधियों के लिए ‘सॉफ्ट टारगेट्स’ बन जाते हैं। हालांकि लड़के एवं लड़कियां दोनों शोषण का शिकार बनते हैं, लेकिन सामान्यतः इसमें लड़कियों का अनुपात अधिक होता है।

बाल यौन शोषण और बलात्कार की प्रवृत्ति विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों में देखी जा सकती है। कुछ सामान्य प्रवृत्तियों में शामिल हैं। अधिकांश मामलों में, अपराधी पीड़ित के परिचित होते हैं, जैसे कि परिवार के सदस्य, रिश्तेदार, या परिवार के दोस्त। बाल यौन शोषण करने वाले को चिकित्सकीय भाषा में पीडोफाइल्स कहा जाता है। ये वे लोग होते हैं जिन्हें बच्चों के प्रति यौन आकर्षण होता है। इनकी प्रवृत्ति किशोरावस्था में विकसित होती है और सही यौन विकास न होने के कारण यह अटक जाती है। कुछ महिलाएं भी बाल यौन शोषण में शामिल हो सकती हैं, विशेषकर वे जिनका स्वयं बचपन में शोषण हुआ हो। यही नहीं, ऐसे लोग जो समाज में घुलने-मिलने में कठिनाई महसूस करते हैं और अपनी उम्र के लोगों के साथ यौन संबंध नहीं बना पाते, वे बच्चों को शिकार बना सकते हैं। अनैतिक यौन व्यवहार की प्रवृत्ति पूरी तरह से जन्मजात नहीं होती। यह कई कारकों का परिणाम हो सकती है, जिनमें जैविक, मनोवैज्ञानिक, और सामाजिक कारक शामिल हैं।

जैविक कारक: कुछ शोध बताते हैं कि कुछ व्यक्तियों में जैविक या आनुवंशिक प्रवृत्तियाँ हो सकती हैं जो उनके यौन व्यवहार को प्रभावित करती हैं।

मनोवैज्ञानिक कारक: इसमें यौन अपरिपक्वता शामिल है। कुछ लोग यौन परिपक्वता तक नहीं पहुंच पाते और उनके यौन व्यवहार में विकृति आ जाती हैइसी तरह कुछ की अपराधी मानसिकता होती है। ऐसे व्यक्तियों में नैतिकता और सामाजिक नियमों का अभाव होता है, जिससे वे अनैतिक यौन व्यवहार की ओर आकर्षित होते हैं। बचपन के अनुभव, जैसे कि यौन शोषण या अन्य प्रकार के आघात, व्यक्ति के यौन व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं। मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, जैसे कि व्यक्तित्व विकार या अन्य मानसिक रोग, भी अनैतिक यौन व्यवहार की प्रवृत्ति को बढ़ा सकते हैं।

सामाजिक कारक: कुछ समाजों में यौन शिक्षा की कमी होती है, जिससे लोग सही और गलत के बीच का अंतर नहीं समझ पाते। इसके अलावा अत्यधिक पोर्नोग्राफी देखने से यौन व्यवहार में विकृति आ सकती है और व्यक्ति अनैतिक यौन क्रियाओं की ओर आकर्षित हो सकता है। जिन लोगों का बचपन में यौन शोषण हुआ होता है, वे बड़े होकर अनैतिक यौन व्यवहार की ओर प्रवृत्त हो सकते हैं।.नशे की लत और मानसिक रोग भी अनैतिक यौन व्यवहार का कारण बन सकते हैं। समाज और संस्कृति का प्रभाव, यौन शिक्षा की कमी, और मीडिया का प्रभाव भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। परिवार और समाज में नैतिकता और मूल्यों की शिक्षा का अभाव भी अनैतिक यौन व्यवहार की प्रवृत्ति को बढ़ा सकता है। इसलिए, यह कहना सही होगा कि अनैतिक यौन व्यवहार की प्रवृत्ति एक जटिल मिश्रण है जिसमें जन्मजात और पर्यावरणीय दोनों कारक शामिल होते हैं।

मनोचिकित्सकों का कहना है कि बच्चों के साथ यौन शोषण करने वाले लोग सेक्शुअल डिसऑर्डर का शिकार होते हैं। उन्हें बच्चों के यौन शोषण से मज़ा मिलता है और अपनी इन हरकतों का सबूत मिटाने के लिए वो बच्चों की हत्या तक कर देते हैं। हालांकि, इस तरह का हर मानसिक रोगी बच्चों की जान नहीं लेता।

बच्चों को टारगेट करने वाले लोगों का रुझान शुरू से बच्चों की तरफ होता है। वो वयस्कों के बजाय बच्चों को देखकर उत्तेजित होते हैं। ऐसे लोग असामाजिक हरकतें करते हैं। ये यौन शोषण के अलावा कई बार चोरी या हत्या जैसे अपराधों में भी शामिल होते हैं।

बच्चों के खिलाफ अपराधों को अंजाम देने वाले लोग कई बार निचले तबके के होते हैं या फिर ये ऐसे लोग होते हैं जिन्होंने बचपन में बहुत नकारात्मकता देखी हो, अपने आसपास घरेलू हिंसा, नशाखोरी या अपराध होते हुए देखे हों लेकिन ये समाज के उच्च तबकों में भी होते हैं।

बचपन में घर और आसपास का माहौल किसी भी इंसान के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव डालता है। अपने आसपास हिंसा और अपराध होता देख बच्चा भी आगे चलकर अपराधी प्रवृति का बन सकता है। दूसरी बीमारियों की तरह ही पर्सनालिटी डिसऑर्डर का भी अगली पीढ़ी में जाने का ख़तरा रहता है। कई बार पीडोफाइल खुद बचपन में यौन शौषण का शिकार हुए होते हैं।

डॉक्टर पेडोफिलिया का निदान तब करते हैं जब लोग बच्चों के प्रति अपने आकर्षण के कारण बहुत अधिक परेशान होते हैं या ठीक से काम नहीं कर पाते हैं या अपनी इच्छाओं को मूर्त रूप देते हैं। उपचार में लंबी अवधि के लिए मनोचिकित्सा और कामेच्छा को बदलने तथा टेस्टोस्टेरॉन के स्तरों को कम करने वाली दवाएं शामिल हैं।

दुनियाभर में बच्चों और महिलाओं का यौन शोषण रोकने पर सख्ती बरती जा रही है। इटली इसमें एक कदम आगे निकलते हुए पीडोफाइल्स के केमिकल कैस्ट्रेशन को कानूनी मंजूरी देने जा रहा है। यहां की संसद ने23 सितंबर 2024में एक कमेटी बनाने को हामी दे दी, जिसमें यौन शोषकों को एंड्रोजन-ब्लॉकिंग केमिकल (केमिकल कैस्ट्रेशन) देकर उनकी यौन इच्छा को लगभग खत्म कर दिया जाएगा। यह एक मेडिकल प्रोसेस है, जिसमें शरीर में हार्मोन के स्तर को काफी कम कर दिया जाता है। यौन अपराधियों की बात करें तो इसमें मेल हार्मोन्स जैसे टेस्टोस्टेरॉन का लेवल इतना घटा दिया जाता है कि अपराधी के भीतर ऐसी इच्छा ही न आए या बहुत कम हो जाए।

केमिकल कैस्ट्रेशन का असर एक तय समय के बाद खत्म भी हो सकता है और हार्मोन स्तर दोबारा सामान्य होने पर यौन अपराधी फिर क्राइम कर सकता है।इसलिए ऐसी सजा पाए अपराधियों को निश्चित वक्त के बाद दोबारा ड्रग देनी पड़ती है। ये प्रोसेस दवाओं या इंजेक्शन देकर भी हो सकती है।कई बार यौन अपराधियों के अलावा गंभीर यौन बीमारियों के मरीजों को भी एंड्रोजन ब्लॉकिंग ड्रग्स दी जाती हैं।

साल 2017 में इंडोनेशिया में माइनर्स के साथ रेप करने वालों के लिए केमिकल कैस्ट्रेशन की सजा तय हुई। पीडोफाइल्स को एंड्रोजन-ब्लॉकिंग ड्रग दी जाने लगी, लेकिन नतीजा मनमुताबिक नहीं था। इंडोनेशियन विटनेस एंड विक्टिम प्रोटेक्शन एजेंसी की मानें तो साल 2017 में वहां चाइल्ड एब्यूज के 70 मामले थे, जो एक ही साल में 149 हो गए। अगस्त 2019 में यानी आधे साल के भीतर लगभग बारह सौ पीड़ित सामने आए।

इसके बाद भी कई देश यौन अपराधियों को ये सजा दे रहे हैं। अमेरिका में सबसे पहले साल 1966 में केमिकल कैस्ट्रेशन हुआ था। अब कैलीफोर्नियां, फ्लोरिडा, जॉर्जिया और टेक्सास समेत 9 राज्यों में पीडोफाइल्स के लिए यह सजा है। सितंबर 2009 में पोलैंड की संसद ने अपने पीनल कोड में बदलाव लाते हुए चाइल्ड मॉलेस्टर्स के लिए ये सजा तय की। पोलैंड इसके साथ ही ऐसा करने वाला यूरोप का पहला देश बन गया। रूस में भी 14 साल से कम उम्र के बच्चों के यौन अपराधी को एंड्रोजन-ब्लॉकिंग ड्रग दी जाती है। यूरोपियन देश एस्टोनिया में साल 2012 में ये सजा तय करते हुए कोर्ट ने साफ किया कि ये ड्रग कुछ महीनों के लिए नहीं, बल्कि लगातार तीन साल तक दी जाए। यूक्रेन, कनाडा, डेनमार्क, जर्मनी, इजरायल, नॉर्वे और स्वीडन में भी पीडोफाइल्स के लिए केमिकल कैस्ट्रेशन की सजा तय है।

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