संविधान दिवस पर विशेष: भारतीय संविधान और नागरिकों के मौलिक कर्तव्य
– पूजा सिंह
स्वतंत्र पत्रकार
मौलिक अधिकारों के बारे में तो हम सभी जानते हैं लेकिन संविधान में शामिल मौलिक कर्तव्यों के बारे में अधिक बात नहीं होती। मौलिक कर्तव्य संविधान में उल्लिखित वे प्रावधान हैं जिनमें नागरिकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे देश के लिए क्या कर सकते हैं।
अब तक क्या किया
जीवन क्या जिया
ज्यादा लिया और दिया बहुत-बहुत कम
मर गया देश,और जीवित रह गए तुम!
आज संविधान दिवस है। 26 नवंबर 1949 को आज ही के दिन देश ने अपने संविधान को स्वीकार किया था। पर समकालीन हिंदी कविता के प्रख्यात कवि गजानन माधव मुक्तिबोध की मशहूर कविता ‘अंधेरे में’ की ये पंक्तियां बरबस याद आती हैं। इस कविता के अनेक पाठ हैं लेकिन इन पंक्तियों का एक नया पाठ करने का दुस्साहस मैं आज कर रही हूं। ये पंक्ति एक प्रकार से देश के प्रति नागरिकों के कर्तव्यों का भी बोध कराने वाली हैं। यानी हमारे मौलिक कर्तव्यों का।
मौलिक कर्तव्य हमारे संविधान का वह हिस्सा हैं जिनमें देश के प्रति नागरिकों की जिम्मेदारियों का उल्लेख किया गया है। संविधान के 42वें संशोधन के माध्यम से अनुच्छेद 51 (ए) में 11 मौलिक कर्तव्य जोड़े गए जो देश के प्रति नागरिकों की भूमिका को स्पष्ट करते हैं। मौलिक अधिकार जहां यह बताते हैं कि देश के नागरिकों को कौन-कौन से संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं वहीं मौलिक कर्तव्य नागरिकों के वे कर्तव्य हैं जो उन्हें निभाने चाहिए। मौलिक कर्तव्यों को लोगों के मन में प्रतिष्ठित करने के लिए हर वर्ष छह जनवरी को मौलिक कर्तव्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।
मौलिक अधिकार लोगों के जेहन में रहते हैं लेकिन जब बात देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाने की आती है तो शायद हम कुछ पीछे रह जाते हैं। शायद यही वजह है कि मूल अधिकारों के बारे में तो हम सब जानते हैं लेकिन बहुत कम ऐसे लोग होंगे जो मौलिक कर्तव्यों के बारे में जानते होंगे। महात्मा गांधी का एक प्रख्यात कथन है, “कर्तव्य का पालन ही हमारे अधिकार सुनिश्चित करता है। अधिकारों को कभी कर्तव्यों से अलग करके नहीं देखा जा सकता है।” वह मानते थे कि कर्तव्यों का भलीभांति पालन ही सुसंगत अधिकारों का मार्ग प्रशस्त करता है।
हमारे संविधान में मौलिक कर्तव्य 42वें संविधान संशोधन, 1976 द्वारा जोड़े गए। ये कर्तव्य सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों पर आधारित अवश्य थे लेकिन इनकी प्रेरणा तत्कालीन सोवियत संघ के संविधान से ली गई थी। सोवियत संघ ने 1936 में मौलिक कर्तव्यों को अपने संविधान में शामिल किया था। माना जाता है कि ऐसा करने वाला वह दुनिया का पहला देश था।
स्वर्ण सिंह समिति
सरदार स्वर्ण सिंह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निकटतम सलाहकारों में से एक थे। वह उनके पिता और पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहर लाल नेहरू के दौर से ही केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य रहे थे। सन 1976 में केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने उनकी अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। यह समिति राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा के बाद संविधान के प्रावधानों में आवश्यक संशोधनों की सिफारिश के लिए बनाई गई थी।
समिति ने पाया कि देश के नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक नहीं हैं। उसने यह माना कि नागरिकों को अपने अधिकारों के साथ-साथ देश के प्रति अपने कर्तव्यों के बारे में भी पता होना चाहिए जिनका उन्हें ध्यान रखना चाहिए। समिति ने सिफारिश की थी कि कर्तव्यों को भारत के संविधान में एक प्राथमिक खंड के रूप में शामिल किया जाना चाहिए।
स्वर्ण सिंह समिति की प्रमुख सिफारिशें
· मौलिक अधिकारों की तरह कर्तव्यों को भी संविधान के एक अलग अनुच्छेद के रूप में शामिल किया जाना चाहिए।
· देश की संसद को नागरिकों द्वारा पालन किए जाने वाले विभिन्न विशिष्ट कानूनों का मूल्यांकन करना चाहिए और यदि कोई इन कानूनों का पालन नहीं करता तो दंड की व्यवस्था की जानी चाहिए।
· उपरोक्त सुझावों के तहत आने वाले कानूनों को न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।
· सरकार को तयशुदा कर चुकाने को भी नागरिकों का मौलिक कर्तव्य माना जाना चाहिए और इसे अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।
सरकार ने इनमें से कुछ ही सिफारिशों को स्वीकार किया। समिति की सबसे महत्वपूर्ण सिफारिशों में से एक यानी ‘नागरिकों द्वारा सरकार को कर चुकाने’ को मौलिक कर्तव्यों में शामिल नहीं किया गया। नागरिकों के लिए तय 11 मौलिक कर्तव्य इस प्रकार हैं:
- संविधान का पालन करें और राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रगान का सम्मान करें
- स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों का पालन करें
- भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा करें
- देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राष्ट्रीय सेवाएं प्रदान करें
- सामान्य भाईचारे की भावना का विकास करें
- देश की सामासिक संस्कृति को संरक्षित रखें
- प्राकृतिक पर्यावरण को संरक्षित रखें
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण और मानवता का विकास करें
- सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करें और हिंसा से बचें
- जीवन के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्टता के लिए प्रयास करें।
- सभी माता-पिता/अभिभावकों का यह कर्तव्य है कि वे अपने 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों को स्कूल भेजें।
मौलिक कर्तव्यों के निर्माण का उद्देश्य यह है कि देश का प्रत्येक नागरिक देश के महत्व को समझे और सद्भावना को बढ़ावा दे। इन्हें न्यायालय की मदद से लागू नहीं कराया जा सकता है। इनके उल्लंघन के लिए संविधान किसी कानून की व्यवस्था नहीं देता है।
इस संविधान दिवस आइए यह प्रण लें कि देश से अपने अधिकारों की रक्षा की मांग करते हुए हम उसके प्रति अपने कर्तव्यों के निर्वहन में भी आगे रहें क्योंकि अधिकार और कर्तव्यों को एक दूसरे से अलग करके नहीं देखा जा सकता है।