अलविदा उस्‍ताद… जिंदगी के फ्रेम में संगीत के सरताज

  • टॉक थ्रू टीम

आपको बचपन में टीवी पर देखा एक विज्ञापन तो याद ही होगा जब मंत्रमुग्‍ध करते तबलावादन पर वाह उस्‍ताद वाह कहा जाता है तो इस दाद को चाय के खाते में दर्ज करते हुए तबला बजा रहे उस्‍ताद ज़ाकिर हुसैन जवाब में देते हैं, ‘अरे, हुजूर वाह ताज कहिए…’। उस्‍ताद ज़ाकिर हुसैन का यह वाक्‍य एक मुहावरे की तरह हमारे साथ है लेकिन अब खुद उस्‍ताद ज़ाकिर हुसैन हमारे बीच नहीं हैं। बचपन से अपने साथ जिस तबले को उन्‍होंने हमेशा अपने साथ रखा, आज उस्‍ताद उसी तबले को अकेला छोड़ कर इस दुनिया से कूच कर गए। 

साल 2024 ने जाते-जाते यही एक बुरी खबर दी है। मशहूर तबला वादक ज़ाक‍िर हुसैन हमारे बीच नहीं रहे हैं। 73 साल की उम्र में उन्‍होंने दुन‍िया से रुखसती ले ली है। तबले पर थिरकी उनकी उंगल‍ियों ने जो जादूगरी रची है वह हमेशा हमारे द‍िलों में रहेगी।

उल्‍लेखनीय है कि अमेरिका के सेन फ्रांसिसको में अस्पताल में ज़ाकिर का इलाज चल रहा था। ज़ाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। ये हुनर उन्हें अपने पिता अल्ला रक्खा खान से विरासत में मिला है, जो खुद एक मशहूर तबला वादक थे। ज़ाकिर हुसैन ने महज तीन साल की उम्र में अपने पिता उस्‍ताद अल्‍ला रक्‍खा से पखावज बजाना सीख लिया था। उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज से अपनी पढ़ाई की थी। 11 साल की उम्र में उन्होंने अमेरिका में अपना पहला कॉन्सर्ट किया और साल 1973 में ‘लिविंग इन द मैटेरियल वर्ल्ड’ नाम से अपना पहला एलबम लॉन्च किया। उनके इस एलबम ने जनता की खूब वाहवाही बटोरी थी।

वह पहले भारतीय संगीतकार थे, जिन्हें ऑल-स्टार ग्लोबल कॉन्सर्ट में भाग लेने के लिए पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की ओर से व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया गया। उन्हें कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है। वहीं, संगीत की दुनिया का सबसे बड़ा ग्रैमी अवॉर्ड उन्हें दो बार, साल 1992 में ‘द प्लेनेट ड्रम’ और 2009 में ‘ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट’ के लिए मिल चुका है।

इसके साथ ही उन्हें विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिसमें पद्म श्री, पद्म विभूषण और संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड शामिल हैं। हुसैन को तबला बजाने में तो दिलचस्पी थी ही, उन्हें एक्टिंग का भी शौक था। 1983 में ज़ाकिर हुसैन ने फिल्म ‘हीट एंड डस्ट’ से एक्टिंग में डेब्यू किया। इसके बाद 1988 में ‘द परफेक्ट मर्डर’, 1992 में ‘मिस बैटीज चिल्डर्स’ और 1998 में ‘साज’ फिल्म में भी उन्होंने एक्टिंग में अपना हाथ आजमाया था।

वर्ष 1978 में ज़ाकिर हुसैन ने कथक नृत्यांगना एंटोनिया मिनीकोला से शादी की थी। वह इटैलियन थीं और उनकी मैनेजर भी। उनकी दो बेटियां हैं, अनीसा कुरैशी और इसाबेला कुरैशी। ज़ाकिर हुसैन बिल लाउसवैस के ग्लोबल म्यूजिक सुपरग्रुप ‘तबला बीट साइंस’ के संस्थापक सदस्य भी हैं।

एक फ्रेम में कितने उस्‍ताद…

यह फोटो सन् 1975 में मध्यप्रदेश के प्रतिष्ठित संगीत उत्‍सव खजुराहो संगीत सम्मेलन में ली गई थीं। यह बिरली तस्‍वीर है जिसमें एक फ्रेम में संगीत के इतने उस्‍ताद यूं दिखाई दे रहे हैं। रिक्शा चलाते हुए उस्ताद ज़ाकिर हुसैन एवं उनके पीठ पर तबला बजाते हुए नृत्याचार्य बिरजू महाराज, उनके पीछे बैठी है संयुक्ता पाणिग्रही। रिक्शे को धक्का मारते हुए पं. शिवकुमार शर्मा और पं. हरि प्रसाद चौरसिया।

एक कलाकार का मोल और महत्व दूसरा कलाकार समझता है…

प्रख्यात तबला वादक उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब संगीत के क्षेत्र में यश के उच्चतम शिखर पर हैं और इतने उन्नत शिखर से झुककर ग्वालियर के युवा एवं उम्दा मूर्तिकार मुकुंद केतकर का अभिवादन कर उनके उत्साह में वृद्धि कर रहे हैं। यह विनम्रता आज दुर्लभ है जो एक कलाकार को श्रेष्‍ठ इंसान बनाती है।

पुरानी यादें ताज़ा करें

महान हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीतकारों की एक अभिलेखीय तस्वीर; पंडित राजन मिश्रा, उस्ताद अल्लारखा कुरैशी, पंडित शिवकुमार शर्मा और पंडित किशन महाराज। उस्ताद ज़ाकिर हुसैन भी नेपथ्‍य में दिखाई दे रहे हैं। यह तस्वीर 1993 में मुंबई में ली गई थी जिसे पंडित किशन महाराज के फेसबुक पेज पर पोस्‍ट की गई थी।

‘क्या मुझे कहीं अंगूठा निशानी देनी है?

गुरुवार 8 दिसंबर 2022 को करीब 25 सालों बाद संगीतज्ञ उस्ताद ज़ाकिर हुसैन ग्‍वालियर आए थे। आईटीएम यूनिवर्सिटी ने विशेष दीक्षांत समारोह में उस्ताद ज़ाकिर हुसैन को डीलिट की मानद उपाधि प्रदान की थी। वरिष्‍ठ पत्रकार जयंत सिंह तोमर ने इस आयोजन की अपनी स्‍मृतियों के हवाले से लिखा है कि मैंने विश्‍वविद्यालय के संस्‍थापक कुलाधिपति रमाशंकर सिंह से अनुरोध किया था कि उस्ताद ज़ाकिर हुसैन पर केन्द्रित पुस्तक पर मुझे उनके हस्ताक्षर प्राप्त करने का यदि अवसर दे सकें तो यह मेरे लिए एक अनुपम और अविस्मरणीय बात होगी। रमाशंकर सिंह जी ने उचित समय पर बुलाया।

उस्ताद ज़ाकिर हुसैन की विनोदप्रियता का परिचय इस वाक्य से मिला कि उन्होंने पूछा – ‘क्या मुझे कहीं अंगूठा निशानी देनी है?’

नसरीन मुन्नी कबीर की लिखी उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब के साक्षात्कार पर आधारित अंग्रेजी व हिन्दी की किताब एक एक कर सामने रखी ।

दोनों किताबों पर हस्ताक्षर करने के बाद उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब बोले- ‘ अंग्रेजी की किताब पर अंग्रेज़ी में और हिन्दी की किताब पर हिन्दी में लिखा है।  पृष्‍ठभूमि में चित्रकार सैयद हैदर रजा का बनाया चित्र है। उन्हें नीला रंग बेहद पसंद था। बाद में लाल की तरफ लौटे।

मित्र को अंतिम विदा

यह तस्‍वीर मई 2022 की है जब अपने दोस्त पंडित शिवकुमार शर्मा के अंतिम संस्कार में उस्ताद ज़ाकिर हुसैन पहुंचे थे। उन्‍होंने न केवल मित्र को कांधा दिया बल्कि देर चिताग्नि के पास देर तक अकेले खड़े रहे थे।

पिता की गोदी में बैठे हुए उनका तबला वादन देखते रहते थे

आईटीएम यूनिवर्सिटी ग्वालियर में आयोजित कार्यक्रम की यादों का जिक्र करते हुए आकाशवाणी से सम्‍बद्ध दिनेश पाठक लिखते हैं कि इस कार्यक्रम के दौरान मुझे भी तबले के पर्याय माने जाने वाले उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब से गुफ्तगू कर म. प्र.साहित्य अकादमी से पुरुस्कृत अपनी पुस्तक ‘ पंडित रविशंकर नव्यता के नायक’ उन्हें भेंट करने का मौका मिला था।

यह किताब ज़ाकिर हुसैन साहब को भेंट करने के पीछे खास मकसद यह था कि इसमें पं.रविशंकर ने अपने संगतकारों के बारे में बात करते हुए ज़ाकिर हुसैन साहब के वालिद उस्ताद अल्ला रक्खा खां को याद करने के साथ साथ ज़ाकिर साहब के बचपन को भी याद किया था। खुद ज़ाकिर साहब उस दिन मेरी किताब के उस अंश और पंडित जी के साथ अपने बचपन की तस्वीर को देखकर भावुक हो गए थे।

पंडित रविशंकर ने बताया था, “ज़ाकिर हुसैन में अपने पिता की पारंपरिकता स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है। मैं उन्हें बचपन से देख रहा हूं,जब वह बमुश्किल तीन या चार साल के थे, मेरे कार्यक्रमों के दौरान अपने पिता की गोदी में बैठे हुए उनका तबला वादन देखते रहते थे और कई बार वहीं सो भी जाते थे।उस छोटे से प्यारे बच्चे ज़ाकिर पर मुझे बहुत प्यार आता था और मैं जानता था कि यह एक दिन बहुत शानदार तबला वादक बनेगा।”

ज़ाकिर याद करते हैं,”मैं पंडित रविशंकर जी के साथ संगीत कार्यक्रमों की शृंखला यात्रा पर था। मैं उस समय लगभग 17 साल का रहा हूंगा। एक कार्यक्रम हुआ, दूसरा कार्यक्रम हुआ। मैंने रविशंकर जी से पूछा कि कैसा कार्यक्रम हो रहा है? रविशंकर जी ने कहा कि तुम मेरे साथ तबला बजाते हो लेकिन मुझे देखते क्यों नहीं हो? यकीन करिए कि उस दिन जब शाम को कार्यक्रम हुआ मैं रवि शंकर जी की और थोड़ा और घूम कर बैठ गया और उस दिन संगत की एक नई किताब खुल गई। मैं उनको देखकर बजाने लगा और मुझे समझ में आने लगा कि मुझे कैसे संगत करनी है। यह पंडित रविशंकर जी की मेरे लिए सबसे बड़ी तालीम थी, मैं आज तक उसका अनुसरण करता हूं।”

परिवार के साथ उस्‍ताद

दुनिया में संगीत को पहुंचाने वाले और अपने संगीत से पूरी दुनिया को जोड़ने वाले उस्‍ताद को श्रद्धांजलि…

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