ऐसा वक्‍त जब उस्‍ताद ने लगा दी गलत तिहाई

अतुल कुमार राय, युवा साहित्‍यकार, पटकथा लेखक

प्रिय उस्ताद

2006 में पहली बार एक गांव के लड़के का गूगल से सामना हुआ तो मेरे एक दोस्त ने कहा, भाई, कुछ तो टाइप करो…देखो इंटरनेट किस जादू का नाम है…!

बहुत देर सोचने-विचारने के बाद समझ में नहीं आया क्या सर्च करूं ! क्या लिखूं इस गूगल देवता के माथे पर जो जादू हो जाए। आखिर पांच मिनट बाद इन उंगलियों ने टाइप किया, उस्ताद ज़ाकिर हुसैन।

और जब रिजल्ट सामने आया तो सबसे पहले एक तस्वीर सामने आई, और उस तस्वीर को अपलक निहारने के बाद समझ आया कि सच में यार, इंटरनेट तो जादू भरी चीज है।

लेकिन आज सोचता हूं तो लगता है कि मेरे जैसे देश के लाखों-करोड़ों संगीत के वो छात्र, जिनकी उंगलियां चौकी, टेबल और थाली-गिलास देखते ही मचलने लगती थीं, वो इंटरनेट के जादू में नहीं, आपकी जादू में कैद थे। आपकी उंगलियों के जादू में।

आप लय और ताल के प्रतिनिधि बनकर एक समूची पीढ़ी के अवचेतन में कैद हो चुके थे। और हम उस ताने को सुनते हुए बड़े हो रहे थे कि बहुत तबला-तबला कर रहे हो, जाकिर हुसैन बन जाओगे क्या?

उस्ताद, तब तो हम ये भी नहीं जानते थे कि तीन ताल और चार ताल में कितना अंतर है। हमें ये भी नहीं पता था कि पेशकार क्या होता है और क्या होता है, उठान, कायदा, गत, परन, फ़र्द और चक्रदार? हमें तो बस इतना ही पता था कि तबला मतलब जाकिर हुसैन होता है और जाकिर हुसैन मतलब तबला।

उस कालखंड से लेकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में संगीत का छात्र बनने के बाद संगीत की थोड़ी समझ हो जाने तक ये समझ में आया कि ज़ाकिर हुसैन हमारे लिए कलाकार का नाम नहीं है यार…ज़ाकिर हुसैन तो इमोशन का नाम है। भला कौन संगीत का विद्यार्थी नहीं होगा, जिसने आपके वीडियोज लगाकर ये सोचा नहीं होगा कि यार ये वाला बोल, मुझे इतनी तैयारी के साथ बजाने कब आएगा…? काश..!

देश में तबला के कई दर्जन गुणी कलाकार हुए हैं, सब एक से बढ़कर एक…लेकिन सब छात्रों की सूई आकर आपके पास ही अटक जाती…यार ये वाला बोल। कभी जाकिर जी को सुने हो…! क्या अद्भुत बजाया है।

आज भी दुनिया के हजारों कलाकारों ने वही बोल, उतनी ही स्पीड में सफाई के साथ बजाया तो है, लेकिन आपका वो ऑरा और वो चमत्कार पैदा नहीं कर सके हैं। न जाने क्यों ?

सच तो ये है उस्ताद कि आपने संगीत की साधना को पूजा बना दिया…और मंच को मंदिर। पश्चिम को भारत के संगीत ऐसे जोड़ा कि दुनिया दीवानी हो उठी। अगर तंंत्री वाद्य का पश्चिम में सबसे ज्यादा प्रचार पंडित रविशंकर जी ने किया तो अवनद्य वाद्यों का प्रचार करने का श्रेय आपको ही जाएगा। तबला सुनाने के लिए पूरा का पूरा स्टेडियम भला अब कौन भरेगा ? तीन-तीन ग्रैमी अवॉर्ड कौन लाएगा.. पता नहीं।

आप सच्चे मायनों में भारत के सांस्कृतिक दूत थे। जिसने पश्चिम को भारत की महान सांस्कृतिक विरासत की तरफ तरफ खींचा। आज भी बनारस के घाटों पर तबला के बोल याद करते वो सैकड़ों विदेशी आपको देखकर ही भारत का रुख करतें हैं।

बस आखिरी बात ये कि मुंबई में कुछ दिन पहले जब कोल्डप्ले के टिकट की मारामारी की खबरें आ रहीं थी। तब मेरे एक दोस्त ने पूछा था :

“कहो अतुल, तुम कोल्डप्ले देखने चलोगे?”

मैंने कहा, “नही यार…अगर टिकट लेकर जाना हुआ तो…”

“तो टिकट लेकर किसका कंसर्ट देखोगे?”

मेरे मुंह से निकला, “जाकिर हुसैन…आ रहे हैं तो बताओ।”

दोस्त मजाक बनाकर हंस रहा था… उसे नहीं पता था कि ज़ाकिर हुसैन हमारे लिए क्या हैं। शायद बहुतों को नहीं पता होगा। अब तो ताउम्र इसी बात का अफसोस रहेगा कि आपको सामने से कभी देख न सका। सुन न सका।

बावजूद इसके आज भी जब उदास होता हूं तो आपके पास लौटता हूं उस्ताद… और लगता है कि जीवन संगीत में लयात्मकता खत्म नहीं हुई है, बची हुई है। बस थोड़े से ध्यान और रियाज की जरुरत है। एक दिन सब कुछ लय में हो जाएगा।

उस्ताद, आज जब कि शास्‍त्रीय संगीत से भी शास्त्रीयता का क्षरण हो रहा…तब आपका इस तरह से जाना हमें बेचैन करता रहेगा। भारतीय संगीत के आसमान में असंख्य तारे टिमटिमा रहे होंगे लेकिन ज़ाकिर के बिना तो आसमान सूना हो गया।

शिकायत यही रहेगी कि पहली बार आपने गलत तिहाई लगाई है। सम अभी दूर था…बहुत दूर…

बहुत सारे आंसुओं के साथ…

आपका एक प्रशंसक

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