खामोशी को जान लिया तो अपना सूरज उगा लेंगे आप

राघवेंद्र तेलंग

सुपरिचित कवि,लेखक,विज्ञानवेत्ता

रहस्य रोमांच विषयक कथाओं, गूढ़ बातों, पहेलियों, अबूझ कहन, सौ बात की एक बात, लेसंस फ्रॉम थिंकर्स आदि में मेरी दिलचस्पी शुरू से रही है। ये ही अभिरूचियां रहीं जिन्होंने मुझमें रहस्य दर्शन और पुरा- गुह्य ज्ञान के स्रोतों में जिज्ञासा जगाई। जाहिर है इन सब बातों पर विचार अकेले में हुआ करता है और कोई भी क्रिएशन या क्रिएटिव्ह थॉट अकेले में या एकांत में ही जन्म लेता है। एकांत में ले आने वाली इन अभिरुचियों की बदौलत ही मैं क्वांटम विज्ञान का शिक्षार्थी बना और मास्टर्स की डिग्री सफलतापूर्वक प्राप्त कर सका। आज भी ऐसा ही है कि क्वांटम विज्ञान की समझ मुझ में साइलेंस में, एकांत में जाकर ही सूझती है। यह ऐसा एक विज्ञान है जिसके बारे में मैक्सवेल ने कहा था कि अगर आपको इस विज्ञान को समझकर धक्का नहीं लगा तो फिर तो आपने इस विज्ञान को समझा ही नहीं और फिर भी अगर आपको लगता है कि आप इसे ठीक से समझ गए हैं तो अभी तक आपने इसे समझा ही नहीं।

इस गहरे तल की दुनिया में सब कुछ उलट-पुलट है। यहां सतह पर की दुनिया के विपरीत गुणों का प्रदर्शन होता है चीजों, घटनाओं में। तभी क्वांटम की यह दुनिया समझ को सही-सलामत रखने के लिए एक स्पेस की, एक साइलेंट ज़ोन की मांग करती है ताकि वह धक्का सहनीय-वहनीय बने। जिसकी दुनिया के करतब आपके बिलीफ सिस्टम को, आपकी पारंपरिक सोच, वैज्ञानिक समझ के प्रति आपके क्रिया व्यवहार को बदलकर रख दें वह यह क्वांटम की दुनिया है। इसमें प्रवेश के लिए साइलेंस ही जरूरी शर्त है। साइलेंस ही यहां का लाइसेंस है, परमिट है। अधीर और बेचैन लोगों को इसकी दुनिया की आबोहवा रास नहीं आती वह उनमें एक्सपोनेंशियल ग्रोथ करते हुए और उन्हें ज़्यादा पागल बना देती है। यह समझना मुश्किल नहीं है कि ये लोग स्पेस और साइलेंस के अभाव में ही पागल हुए हैं या फिर वक्त रहते जिन्होंने साइलेंस और स्पेस का महत्व नहीं समझा उनकी दुर्दशा हुई अवश्य ही है।

अनिश्चितता को जानने की मनुष्य की आदिम प्रवृत्ति रही है और यही गुणधर्म उसे साइलेंस में, थ्यान में ले जाता है। वीयर्ड, अजीबो-गरीब, अनिश्चित, सूक्ष्मातिसूक्ष्म, अति तीव्रतर गतियों की सब-एटॉमिक लेवल की दुनिया यानी नींव के संसार में प्रवेश साइलेंटली होगा, दम साधकर। साइलेंस यूनिवर्सल इंटेलीजेंस की एक बिछी हुई एक महीन सतह, परत का नाम है। यह अपने आपमें एक विशिष्ट प्रकार की इंटेलीजेंस है। कहा जा सकता है कि साइलेंस की अपनी इंटेलिजेंस होती है। साइलेंस अर्थात आप निष्चेष्ट अवस्था में हैं। सब कुछ आपके लिए ठहर-सा गया है। इस अवस्था में आप अपनी संवेदनाओं, भावनाओं के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं कर रहे हैं। आते-जाते विचारों सहित आप इनको भी ऑब्जर्व कर रहे हैं, निरीक्षण कर रहे हैं। साइलेंस एक दर्पण है, आईनाघर है जिसमें (रहकर) आप अपने को देख सकते हैं। साइलेंस एक ठंडी भट्टी है जिसमें जाकर ही आपका रूपांतरण संभव है। साइलेंस का जब आप चुनाव करते हैं तो आप अपना चुनाव करते हैं। साइलेंस अगर आपकी दिनचर्या की प्राथमिकता बन जाए तो एक दिन आप अपने भीतर अपना एक सूरज उगा सकेंगे, अगर आपको अपनी ही रोशनी की तलाश है तो !

दरअसल साइलेंस का ज़ोन या तल जड़ और सूक्ष्म जगत के दो आयामों के बीच का सूक्ष्म तल है। शरीर, मन, विचार के सघन तल को पार करने के बाद साइलेंस के विरल को पार करना पड़ता है और इस तल के पार जाने के लिए सामान्य से कहीं बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। शुरू-शुरू में इस ज़ोन में बने रहना आत्म-प्रताड़ना जैसा लगता है। साइलेंस के ज़ोन में पहले-पहल प्रवेश करने पर दम घुटता हुआ-सा महसूस होता है मगर फिर जब आप इस क्षेत्र के अनुकूल ढल जाते हैं तब उच्चतम ऊर्जा संग्रहण का यह परिक्षेत्र भी आपसे प्रेम करने लगता है और फिर आप भी इससे अकस्टम्ड हो जाते हैं। यहां ऊर्जा से हमारा अर्थ श्वास से है, यहां संकेत प्राणायाम से है। जड़ की प्रकृति वाले संसार के बाद प्राकृतिक ऊर्जा के विश्व में प्रवेश के लिए साइलेंस का ज़ोन लॉन्च पैड का काम करता है। जहां आप अपनी समग्र ऊर्जा का केंद्रीकरण करना सीखते हैं ताकि जड़ संसार के गुरुत्वाकर्षण से मुक्ति हेतु आवश्यक एस्केप वेलोसिटी अर्जित की जा सके। यह ज़ोन जो कि दौड़ती हुई दुनिया की उस जीवन शैली से परिचित कराता है जिसमें दिमाग कुंद हो चुका होता है। जिसके अंधेरे में अपना ही हाथ अपने हाथ को नहीं सूझता और फिर ऐसी दुनिया अंतत: आपमें रोशनी पर भी शक़ करने की आदत इम्प्लान्ट कर देती है। ऐसी ऋण आवेशधारी आदतों से जिनके आधिक्य से आपके व्यक्तित्व का संतुलन बिगड़ जाता है और जिनकी परतें चढ़ती चले जाने से आप वह नहीं रह जाते जो आप वास्तव में हैं। ये आदतें भय, असुरक्षा, दंभ, असत्य, द्वेष, क्रोध आदि की हैं जो एक निर्मल व्यक्तित्व पर परतों के रूप में आच्छादित रहती हैं।

इस शोर भरे समय में आपके भीतर का सत्यनिष्ठ व्यक्तित्व एक चुप्पी ओढ़े हुए जाने कब से तो दुबका हुआ बैठा है। इस प्रतीक्षा में कि कोई आए किवाड़ की कुंडी खटखटाए और उसे ताज़ा कर दे, रिफ्रेश कर दे। इस दुनिया में आपको जो आपका स्वर सुनाई दे रहा है वह दूसरों की अपेक्षाओं के अनुरूप बनाया गया है, स्वार्थ और मौकापरस्ती से निर्मित। यह जो आपका स्वर है यह आपके मूल व्यक्तित्व का नहीं है यह आप भी जानते हैं और इससे छुटकारा पाकर नए होना चाहते हैं। यह आकांक्षा ठहराव की ओर संकेत करती है। निराश, बिखरे और टूटे-थके हुए एक व्यक्तित्व का गति के माहौल में बदलाव की तीव्र उत्कंठा का प्रकटीकरण। हां! यह प्राकट्य साइलेंस की सुगंध की ओर संकेत करता है। वास्तव में तो यह स्पेस की पुकार है, आह्वान है। यह साइलेंस ज़ोन अपने से बिछुड़ गए हर व्यक्ति की अपने को पा जाने की मिलन स्थली है। यहां इस साइलेंस ज़ोन में आपको अपने से परिचय मिलता है। आत्मा के डीएनए के रूप में वह अपना जो जन्मों-जन्मों से बिछुड़ा हुआ था।

भाव रूप में जो साइलेंस है, क्रिया रूप में वही वैक्यूम है। और वैक्यूम की ताकत के बारे में हम सब जानते ही है। सर्वशक्तिमान है शून्य। उपलब्ध ऊर्जा के क्षेत्र-ज़ोन में अगर आप अपने भीतर वैक्यूम पैदा करना सीख जाएं तब फिर ग्रेविटी तक की ताकत उसके सामने फीकी पड़ जाती है। दीवार पर या सीलिंग पर बेफिक्र होकर विचरण करती छिपकली से वैक्यूम के अनुप्रयोग का यह कौशल सीखिए।

आचार्य शंकर जिसे आत्मभाव संबोधित कर रहे हैं वह, जे.कृष्णमूर्ति जिसे ऑब्जर्वर कह रहे हैं वह, ओशो जिसे साक्षीभाव कह रहे हैं वह, रमण महर्षि जिसे शून्यता की संज्ञा दे रहे वह, निसर्गदत्त महाराज के कहे अनुसार जो विलीन कर्ताभाव है वह, हां! वहीं है इसका अस्तित्व यानी यह साइलेंट ज़ोन में जो आकर है आकार लेता वह, हां वही! यही है वह व्यास पीठ जहां आप आकर हैं अंतत: आपमें ही समाते। जहां एक सुगंध के स्पर्श में गूंजता दिव्य घोष- तत्वमसि। जो हर वक्त सबके कानों में रूमी बनकर है फुसफुसाता कि जिसे तुम ढूंढ रहे हो वह तुम्हें ढूंढ रहा है। जो आकर है बैठा शब्दरूप में मुण्डकोपनिषद् में, बस यह कहते हुए कि सत्यमेव जयते अर्थात सांचे की जीत होला। अत: अब कहता हूं कि सत्य के साक्षी के जन्म लेने का गर्भ स्थान है साइलेंस।

कुल मिलाकर कहूं तो साइलेंस ही आपको गढ़ने वाला कुम्हार है। यह पहले मिटाता है फिर बनाता है फिर जब बनने वाले को इसका पता चलता है तब वह पाता है कि अब वह स्वयं एक कुम्हार बन चुका है, इस तरह बनना फिर रूपांतरण की एक क्रमिक प्रक्रिया बन जाती है। आखिरकार लिखता हूं कि रूपांतरण का कीमियागर है स्पेस का प्रतीक साइलेंस।

raghvendratelang6938@gmail.com

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