- टॉक थ्रू टीम
यूं तो एक शहर का अपना विन्यास होता है, चेहरा, मोहरा और चरित्र भी। उसकी गलियों, सड़कों, चौक-चौराहों के नाम, वहां होने वाले काम धंधे, निवासियों का स्वभाव सबकुछ मिल कर एक शहर का नक्शा बनाते हैं। हर शहर में सृजन भी होता है। साहित्य और कलाएं किसी भी शहर का रूप होते हैं, उसकी खूबसूरती। कोई शहर कितना रूखा है या कितना स्निग्ध यह उस शहर के रचनाकर्म को देख जाना जा सकता है। और गहराई से इस परिचय को जानना हो तो वहां रची गई और रची जा रही कविताओं को देखा जाना चाहिए।
मालवा के ख्यात शहर रतलाम की इस गाढ़ी पहचान को टटोलने और उजागर करने का काम हुआ है। यूं तो बीते सालों में मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग ने शहरों का सृजनात्मक इतिहास संकलित करने की कवायद की थी लेकिन इस सरकारी पहल से इतर एक पहल और हुई है जिसने एक शहर को उसके साहित्यकारों के दम पर गर्व करने का मौका दिया है। यह पहल पुस्तक ‘घर का जोगी’ के रूप में हमारे हाथों में हैं।
बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित इस पुस्तक में युवा साहित्यकार आशीष दशोत्तर ने अपने शहर ‘रतलाम’ के रचनाकारों के कविकर्म से परिचित करवाने का बेहद अहम् कार्य किया है। पत्रकार, लेखक, व्यंग्यकार, कवि, आलोचक, सूत्रधार जैसी तमाम विधाओं में दक्ष आशीष दशोत्तर ने रतलाम के छप्पन रचनाकारों के रचनाकर्म को अपनी आलोचनात्मक टिप्पणी के साथ इस पुस्तक में संकलित किया है। समझा जा सकता है यह कार्य आसान नहीं है, खासकर तब किसी एक ही व्यक्ति ने यह संकल्प लिया हो।
इस संग्रह में नई कविता, अकविता, प्रगतिशील कविता, जनवादी कविता, छंद्युक्त कविता, छंदमुक्त कविता, गजल, गीत के प्रतिनिधि रचनाकार गोपाल सिंह नेपाली, विष्णु खरे, डॉ. चंद्रकांत देवताले, दिनकर सोनवलकर, डॉ. देवव्रत जोशी, प्राणवल्लभ गुप्त, कैलास जायसवाल, जयकिरण, सुदीप बेनर्जी, डॉ. जयकुमार जलज, रमेश शर्मा, डॉ. हरीश पाठक, पीरुलाल बादल, अजहर हाशमी, निर्मल शर्मा, प्रोफेसर रतन चौहान, श्याम माहेश्वरी, डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला, लक्ष्मीनारायण रजोरा (अलीक), जनेश्वर, प्रभा मुजुमदार,रश्मि रमानी, युसूफ जावेदी को एक साथ देखना पाठकों को समृद्ध करता है।
रतलाम के साहित्य जगत को एकत्रित कर आलोचकीय दृष्टि से प्रस्तुत करती इस पुस्तक का विमोचन बीते दिनों पद्मश्री डॉ ज्ञान चतुर्वेदी, कैलाश मंडलेकर, डॉ जवाहर कर्नावट ने किया। विमोचन करते हुए अतिथियों ने कहा कि आशीष दशोत्तर की यह पुस्तक रतलाम का साहित्य संदर्भ कोश साबित होगी।
पुस्तक में शामिल वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. अज़हर हाशमी ने इस पुस्तक पर प्रतिक्रिया में कहा कि यह श्रमसाध्य और समयसाध्य कार्य है। आशीष ने इसमें वैचारिकता की दूरदृष्टि का दूरबीन लगाकर छानबीन की है , तब यह संग्रह सामने आया है। इतने रचनाकारों के साहित्य को एकत्रित करना बहुत कठिन कार्य है। मेरे मत में यह अपने आप में एक रिसर्च है। इससे काफी लोग लाभान्वित होंगे और भविष्य में कई पीढ़ियां शोध कार्य में इसकी सहायता लेगी। यह पुस्तक संदर्भ कोश साबित होगी । यह रतलाम के साहित्य की डिक्शनरी भी है, कविता का कोश भी है और परिचय माला भी है। आशीष ने इस पुस्तक के माध्यम से समुद्र से से सुई निकालने का कार्य किया है।
कवि-आलोचक प्रो. रतन चौहान ने कहा कि यह पुस्तक रतलाम के साहित्य जगत की पहचान है। इसमें आलोचकीय दृष्टि और रचनात्मक श्रम दिखाई देता है। इस पुस्तक के माध्यम से इतने रचनाकारों की रचनाओं को समेटकर आशीष ने अपने कवि दायित्व को पूरा किया है।
इस पुस्तक को देख कर ख्याल उपजता है कि कितनी ही बेहतर बात हो कि हर शहर के साहित्य का ऐसा लेखा जोखा हो। लेकिन उसके लिए हर जगह आशीष दशोत्तर जैसा संकल्प और परिश्रम का धनी सर्जक आवश्यक होगा।
पुस्तक – घर का जोगी
आलोचक – आशीष दशोत्तर
प्रकाशक – बोधि प्रकाशन, जयपुर
मूल्य – रु. 499/-