Valentine’s Day 2025: वैसे मैं भी बीसियों बार तस्वीर खींचवाने की तैयारी कर चुका हूं
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पंकज शुक्ला, पत्रकार-स्तंभकार
सभी फोटो: गिरीश शर्मा
बचपन से एक सपना पाले उम्र बढ़ रही है। सपना ताज को खुली आंखों से देखने का। आंखों को मूंद कर कई बार ताज की सैर की है। उस ऐतिहासिक बैंच पर बैठ कर जैसे सब फोटो खींचवाते हैं, वैसे मैं भी बीसियों बार तस्वीर खींचवाने की तैयारी कर चुका हूं। सिर्फ ताज को देखने के लिए, कितने ही लोगों की तस्वीरों को देखा है। किसी ने हथेली पर बैठा रखा है ताज, कोई है कि अपने कद के आगे ताज को बौना कर फोटो खींचवाता है। इल्यूजन के इन हथकंडों को देख कभी मुस्कुराता हूं, कभी नजर मैं सिर्फ ताज को रखता हूं।
ताजमहल देखना है, यह सपना भी कैसे पला? यह भी दिलचस्प है।
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70, 80 के दशक में घर की कन्याएं खुद को गृह कार्य में दक्ष साबित करने को कढ़ाई, सिलाई, बुनाई के कार्य किया करती थीं और इस कार्य को बतौर नमूना घर में सजाया भी जाता था। तब शायद ही कोई घर होता था जहां विवाह योग्य कन्या हो और उसके बनाए क्रोशिए के सजावटी सामान, पेंटिंग, कढ़ाई से कपड़े पर तैयार चित्र, प्रकृति दृश्य आदि फ्रेम कर दीवार पर टांगें न गए हों। बचपन में ऐसे जितने भी घरों में जाता वहां काले वेलवेट पर सफेद धागे या सितारों का उपयोग कर बनाए ताज की कृति जरूर होती। ये छवि लुभाती थी। बड़ा गुंबद, उसकी मीनारें, फव्वारें, चार बाग शैली का उद्यान। सबकुछ बेहद आकर्षक लगता। कभी किन्हीं के घर कांच के घेरे में संगमरमर का ताज का मिनिएचर भी दिखा तो टूटने के डर से मुझे छूने न दिया गया।
इस तरह मैं ताज के आसपास रहा और ताज मेरे ख्याल में।
उस वक्त किसी ने बताया भी हो कि यह प्रेम की निशानी है तो मुझे याद नहीं। इतना जरूर याद है कि पांच-छह बरस का बच्चा, मैं, सोचता था कि यह जो तस्वीर में इतना खूबसूरत दिखता है, वह वास्तव में कितना सुंदर होगा! कितना भव्य! मैं अक्सर जिद किया करता था, मुझे आगरा जाना है। समझाइश मिलती, छुट्टियों में जाएंगे। जब जानता भी न था, झाबुआ से कितना दूर है आगरा। मुझे तो लगता था, बस में बैठो और पहुंच जाओ।
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कई छुट्टियां आईं और गईं। मैं कई जगह गया। मगर राह में आगरा आया ही नहीं। समय की सुइयां चलती रहीं। दीवारों से ताज की तस्वीरें विदा हो गईं। जिन्होंने उन्हें बनाया था वे भी नानी-दादी हो गईं।
ज्यों-ज्यों बड़ा होता गया त्यों-त्यों पता चलता गया कि यह प्रेम का बयान है। किशोर मन ने ख्वाब देखा, कोई होगा जिसका हाथ थामे एक दिन मैं भी खड़ा होऊंगा ताज के आंगन में। मैं ताज जाने के पहले उसके आने का इंतजार करता रहा।
उम्र का कांटा कहां रूकना था, वह अपनी गति से चलता रहा। फिर जाने कितनी बार दिल्ली की ओर गया तो ट्रेन की खिड़की के बाहर झांक-झांक कर देखा कि कहीं दिखाई दे जाए वह धरती पर टिकी अश्रु बूंद। मगर वह न दिखी। आगरा भी जाना हुआ। मित्र ने कहा, छत से दिखता है ताजमहल और सम्राट अकबर का मकबरा। झट से दौड़ कर गया छत पर। सिकंदरा तो दिखा लेकिन तब भी ओझल ही रहा ताज। जिन सड़कों से होकर गुजरता हूं वहां संकेतक लगे दिखते हैं, दाईं तरफ ताज महल। चार किलोमीटर दूर ताजमहल। एक दफा तो यूं हुआ कि आगरा फोर्ट से रेलगाड़ी पकड़नी थी और लगा बस, कार की खिड़की से उधर देखूंगा तो वह नजर आ जाएगा। किसी ने कहा, ट्रेन की खिड़की से तो दिखता ही है। मगर, कोई खिड़की उस राह की ओर खुली ही नहीं।
मैं अब भी ताजमहल जाने के सपने देखता हूं।
मैं अब भी उसके आंगन की उस बैंच पर बैठ कर उसके संग फोटो खींचवाने की हसरत रखता हूं। मुझे याद है, साल 2000 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने ताजमहल देखने के बाद कहा था कि इस दुनिया में दो तरह के लोग रहते हैं- एक जिन्होंने ताजमहल देखा है, दूसरे वे जिन्होंने इसे नहीं देखा है। इस खबर को छापते वक्त सोच रहा था मैं उस आधी दुनिया का बाशिंदा हूं जिसने ताजमहल नहीं देखा है।
आज यह लिख रहा हूं तब भी सोच रहा हूं मैं अब भी उसी दुनिया का हिस्सा हूं जिसने ताज को नहीं देखा है।
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वही ताज जिसके लिए कविवर गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की कविता ख्यात है। अपनी इस ‘ताजमहल’ कविता में वे सम्राट शाहजहां को संबोधित करते हुए कहा है कि जीवन, यौवन, धन और यश सब समय की धारा में बह जाते हैं। पन्ना, माणिक और मोती सभी इंद्रधनुष की चमक की तरह हैं और उन्हें खत्म होना ही है। उसे उम्मीद थी कि कम से कम एक आह तो आसमान को दु:खी करने के लिए रहेगी। इसीलिए शाहजहाँ ने ताजमहल बनवा दिया जो समय के गाल पर एक अकेले आंसू की तरह टिका हुआ है।
You knew, Emperor of India, Shah Jahan,
That life, youth, wealth, renown
All float away down the stream of time.
Your only dream
Was to preserve forever your heart’s pain.
Though emeralds, rubies, pearls are all
But as the glitter of a rainbow tricking out empty air
And must pass away,
Yet still one solitary tear
Would hang on the cheek of time
In the form
Of this white and gleaming Taj Mahal. (Rabindranath Tagore)
मुगल वास्तुकला के बेहतरीन उदाहरणों में से एक माने जाने वाले ताजमहल को लेकर कई तथ्य जानता रहा। कोई इसकी खूबसूरती से हैरान तो किसी की नजर में यह कब्रगाह बस। किसने संगतराशों के कटे हाथों पर दुख जताया तो किसी को नफरत का साया नजर आया। जितने मुंह उतने मुख्तलिफ बयान जैसे।
इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल
सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है
शकील बदायूनी ने यह लिखा तो साहिर लुधियानवी ने कहा:
इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
बात केवल ख्याल और ख्वाब तक ही सिमटी नहीं है। बात तो दुनिया की सबसे खूबसूरत इमारत के मिटने तक आ पहुंची है। साल 2018 में ताज को महफूज रखने की कानूनी लड़ाई लड़ रहे वकील एम.सी. मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि ताज को बचाने के लिए अगर गंभीर न हुए तो संभव है कि जल्द ही यह खंडहर में तब्दील हो जाएगा। इमारत में दरारें दिखने लगी हैं, मीनारें झुकने लगी हैं। पानी और हवा में बेहिसाब जहर घुल गया है है ताज की सफेदी को यह जहर हल्के पीले से लेकर भूरे रंग में बदल रहा है। स्थिति ऐसी थी कि सुप्रीम कोर्ट ने तल्खी में कह दिया था, ”आप ताज को बंद कर सकते हैं। आप चाहें तो इसे ध्वस्त भी कर सकते हैं। आप चाहें तो इससे पल्ला भी झाड़ सकते हैं।”
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मैं अगर अपनी कहूं तो मैं तो महशर बदायुनी के साथ रहूंगा। महशर बदायुनी ने लिखा है:
अल्लाह मैं ये ताज महल देख रहा हूं
या पहलू-ए-जमुना में कँवल देख रहा हूं।
झाबुआ जिले से कोई गाड़ी मुझे ताजमहल तक नहीं ले गई। आगरा में भी कोई सवारी गाड़ी मुझे उस राह न ले जा सकी। लेकिन मेरा मन तो अक्सर वहां जाता है। ताजमहल के चक्कर लगा कर सोचता है :
एक कमी थी ताज-महल में
मैं ने तिरी तस्वीर लगा दी। (कैफ़ भोपाली)
इश्क का दिन मुबारक। हर दिन इश्क मुबारक।
ताजमहल पर एक बेहतरीन शायराना पेशकश, वह भी प्यार के उत्सव के दिन।
शानदार, पंकज जी। इश्क से आपका इश्क मुबारक।