ये माह-ए-रमजान है मेरे बच्‍चे, मैं चाहती हूं कि तुम…

  • श्‍वेता मिश्रा

मेरे काव्यांश,

ये रमजान का महीना है… तुम पूछोगे ये रमजान क्या है?

मैं कहूंगी कि मुसलमानों का पाक महीना होता है, जिसमें बस इबादत होती है।

तुम्हारा अगला सवाल होगा कि ये मुसलमान कौन? फिर मैं सोच में पड जाऊंगी!

क्यूंकि नन्हे से तुम तो ये भी नहीं जानते कि ये हिंदू कौन हैं? दरअसल, तुम्हारी गलती नहीं है, किसी ने भी तुम्हें ये बताया ही नहीं कि तुम्हारा धर्म क्या है, मानसिक ग़ुलामी से अभी तुम हजारों कोस दूर हो क्यूंकि सत्य हैं कि ईश्वर ने तुम्हें सिर्फ इंसान बनाकर भेजा था…हिंदू या मुसलमान नहीं!

काव्यांश, चलो, आज तुम्हारी माँ तुम्हें कुछ उसके दिल की बताएगी…

मेरे बच्चे कुछ तो ऐसा है… जो हम सबको चला रहा है, कोई तो ताकत है जिसने इस खूबसूरत दुनिया को बनाया है, पर सच ये है कि उसे कोई देख नहीं पाता। दुनिया के सब लोग उसे उसका शुक्रिया अदा करते हैं, जैसे तुम थैंक्यू बोलते हो!

बस बात इतनी सी है काव्यांश,कि उसे याद करने का तरीका सबने अपने अपने मां, पापा, दादी, बाबा से उधार लिया है…।

अपने इसी तौर तरीकों से लोग अलग-अलग धर्मों कि मान्यताएं गढ़ते हैं… इसलिए धर्म से बस तुम इतना समझो कि मान्यताओं, तौर-तरीकों और विश्वास पे टिकी एक प्रणाली।

सब ईश्वर को याद करने के तरीके हैं पर जैसे तुम अपनी माँ को माँ कहते हो और पड़ोस में रह रही सपना अपनी माँ को अम्मा कहती है! बस, इतना सा ही फर्क है तुम्हारे समझने के लिए।

इसी तरह जो लोग समझते हैं कि वो हिंदू है वो उसे भगवान बुलाते हैं और जो इंसान खुद को मुसलमान या ईसाई मानते हैं वो अल्लाह या गॉड बुलाते हैं…। उसे देखा किसी ने भी नहीं है। सब एक ही जगह से आए हैं और एक ही जगह वापस जाएंगे। बस, मानने भर का फर्क है।

किंतु, ध्‍यान रखो, हर चीज अपने पूर्वजों से विरासत में लेने की जरूरत नहीं है। हाँ, कुछ बेहतरीन इंसानियत भरी चीजें ले सकते हो।

मैं चाहती हूं कि तुम कोई भी चीज बिना सोचे-समझे खुद पे मत थोपो। मानसिक गुलामी मत झेलो। मेरे कहने पर ईश्वर को भी मत मानो।

मैं चाहती हूं कि तुम खोजी बनो… बुद्धि पटल पे हर चीज को समझो…। आँख बंद कर अनुसरण मत करो। केवल इसलिए कि तुम्हारी माँ भी करती है। नहीं( तुम्हें भेड़ नहीं होना है और ना ही अपने साथ वालों को होने देना है।

मैं केवल तुम्हें रास्ता दिखाऊंगी, हो सकता है मेरा दिखाया रास्ता भी पूर्ण ना हो! काव्यांश, सत्य तुम्हें खुद जानना होगा।

हाँ हर धर्म कि कुछ अच्छी बातें होती हैं उनको जरूर समझना… इसलिए जितनी गीता पढ़ने की कोशिश करना, उतनी ही शिद्दत से क़ुरान शरीफ और बाइबल को भी पढ़ना। जितनी शिद्दत से तुलसीदास को पढ़ना, उतनी ही शिद्दत से इब्ने इशां को भी। जैसे, ओशो को समझना वैसे ही रूमी को भी पढ़ना। किताबें सबसे अच्छी मित्र होती हैं। वही तुम्हें भ्रमों और संकीर्णताओं ये बाहर निकालेगी।

अब तुम पूछोगे कि माँ तुम्हें ये क्यूँ बताना चाहती है?

बात बडी गहरी है मेरे बच्चे और तुम हो बहुत छोटे! पर कभी ना कभी बतानी तो होगी इसलिए आज लिख रही हूँ। कल का क्या भरोसा? जब भी तुम हिंदी पढ़ने और जिंदगी को समझने के लायक बनोगे, तब तुम जान जाओगे कि माँ क्या कहना चाहती थी!

मेरे बच्चे! जिस दौर में तुम जन्मे हो वो दौर नफरतों से झुलस रहा है… सब उसके लिए लड़ रहे हैं जिसे उन्होंने कभी देखा ही नहीं है। ईश्वर ने ये प्यारी सी दुनिया बनाई थी… यहाँ हर चीज केवल मोहब्बत से जुड़ी थी… सबके खुशी से रहने लायक सब था यहां पर, किंतु कुछ महत्वकांक्षी लोगों को अमन-ओ-चैन रास ना आया… अब तुम पूछोगे के कि माँ ये ‘महत्वाकांक्षी’ लोग कौन होते हैं?

चलो तो तुम्हें बताती हूं…

तुमने वो बिल्लियों और बंदर वाली कहानी सुनी है न! हाँ, हाँ, वही जहाँ बिल्ली रोटी पर लड़ती है और बंदर चालाकी से दोनों को लड़वाकर उनकी रोटी खा जाता है…। बंदर को महत्वाकांक्षा थी रोटी की…कुछ और रोटी…जबकि रोटी बिल्लियों की थी। ठीक वैसे जैसे ये दुनिया हम सबकी है। कुछ लोगों को दुनिया पे राज करने की महत्वाकांक्षा है, और वो गिरने की हर हद तक अपनी जि‍द को पूरी करने में लगे हैं!

यही होता है मेरे बच्चे…जब भाई-भाई आपस में लड़ते हैं तो फायदा किसी और को होता है…हमेशा ही होगा!

हमेशा याद रखना लडाई केवल कम समझी गई वजह से होगी क्यूंकि समझदारी केवल प्रेम करना सिखाती है, मिलकर रहना सिखाती है। एक बार जब एक ही माँ के दो बच्चे आपस में लड़ने लगे कि मेरी माँ अच्छी है, नहीं, मेरी माँ अच्छी है। उस समय समय उनकी माँ जैसे उनपर हँसती है वैसे ही वो पूरी कायनात कि माँ मतलब उसे बनाने वाला हँसता होगा जब लोग धर्मों कि लडाई-लड़ते होंगे।

अब इस पूरी कहानी में तुम्हें बस इतना समझना है कि धर्म जैसा कुछ नहीं होता, हमारा एक धर्म होता है, वो है इंसानियत। एक ही नियम…प्रेम!

हाँ, उसे याद करने के तरीके अलग होते हैं, रहने का तरीका अलग होता है, प्रार्थना का तरीका अलग होता है। जैसे हम और आपकी दादी पूजा करते हैं, हवन करते हैं, वो लोग नमाज पढ़ते हैं, दुआ करते हैं!

हम सब एक से ही हैं… सब एक ही कश्ती पे सवार है… सर्दी-गर्मी, दु:ख, खुशी सबको एक सा होता है…।

अब एक कड़वी पर सच्ची बात बताती हूँ तुम्हें। दुनिया अगर किन्हीं दो हिस्सों में बँटी है मेरे बच्चे तो वो है अमीर और गरीब। बस तुम इसी का ध्यान रखना। बारीकी से देखोगे तो दो तरह के ही लोग दिखेंगे तुम्हें अमीर और फकीर।

आखिरी बात, किसी के धर्म या जाति के आधार पर उसके लिए अपनी राय मत बनाना। हो सकता है कोई तथाकथित दलित तुम्हें किसी तथाकथित ब्राह्मण से कई अधिक बुद्धिमान और सुलझा हुआ मिले… हो सकता है कोई मुसलमान किसी हिंदू से कहीं अधिक लिबरल और आध्यात्मिक मिले… हो सकता है कोई हिंदू किसी यूरोपियन से कहीं अधिक सभ्य मिले।

संभव है कि कोई गरीब किसी अमीर से बड़ा दिल रखता हो (जैसा कि तुम्हारी माँ ने अक्सर महसूस किया है)। राय बनाना उसकी आँखों में छुपी सच्चाई पढ़ने के बाद, फिर राय बनाना वो जो तुम्हारा अंतर्मन तुमसे कहे… रटी रटाई बातो और भ्रांतियों पर मत जाना… जिंदगी कि अपनी परिभाषा गड़ना…चीजों को गहराई से समझना…।

मैं दुआ करूंगी कि तुम या तुम जैसे कई बच्चे दुनिया में अमन और मुहब्बत कि आयतें लिखें!

मैं सपना देखती हूं उस दुनिया का जहां केवल मुहब्बत होगी… अमन होगा, चैन होगा। जहां सबको अपने-अपने हिस्से कि जिंदगी नसीब होगी। मैं दुआ करूंगी कि दुनिया का वो सपना तुम और तुम्हारे जैसी कुछ उम्मीदें मिल कर पूरा करें। हो सके तो इस दुनिया को खत्म होने से बचा लेना!

हम लोग अपनी कोशिश करेंगे, और फिर ये मुहब्बत कि मशाल तुम्हें सौंप जाएगे।

बेपनाह मुहब्बत तुम्हारे लिए!

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