
- राघवेंद्र तेलंग
सुपरिचित कवि,लेखक,विज्ञानवेत्ता
नेचुरल जुड़ाव और साक्षात संवाद को समर्पित ऑर्गेनिक समूह की बातें
प्रकाश किरणें हमारे आसपास सदा बिखरी रहती हैं मगर अक्सर हम उन्हें देखने से चूक जाते हैं। अंग्रेजी के एक सूत्र वाक्य से बात शुरू करते हैं-एक्शन इज़ एन इनहेरेंट विल ऑफ एवरी थॉट। यानी हर विचार क्रियारूप में ढलना चाहता है। और ऐसा होने के लिए कर्ता का अस्तित्व में आना आवश्यक है। स्वाभाविक है कि विचार, क्रिया और कर्ता के संबंध का ऐसा संयोजन हम सबके अनुभव में है। परंतु जैसा कि हम सब समझते हैं यह संसार सिर्फ हमारे अकेले के लिए ही अस्तित्व में नहीं आया है। यह प्रकृति हम सबको पल्लवित-पोषित करती है,यह हमारी पालक है। प्रश्न यह अत्यंत महत्ता का है कि क्या इस प्रकृति की तरंगित भाषा को हम समझते भी हैं? क्या इसके सिग्नल्स की तरंगें हममें से होकर हमें स्पंदित करती भी हैं! क्या हम विभिन्न प्राकृतिक जीवों, वनस्पतियों, ऊर्जाओं से संवाद करने के लिए उत्सुक रहते हैं? यदि यह प्रश्न आपके मन में भी खलबला रहा है तो यह आलेख आपके काम का है। प्रकृति की तरंगित भाषा को डिकोड करने के लिए प्रकृति के साथ अंतरंग संपर्क बहुत आवश्यक है अन्यथा आप प्रकृति में अपने होने की महत्ता को कभी समझ ही न पाएंगे। और अपने होने को न जानना यह हर दूसरे अकेले,बेचैन और परेशान आदमी का रोग है जो लाइलाज बिल्कुल भी नहीं है। बस, ऐसे लोगों को संपर्क और संवाद को अपने भीतर घटित करना होगा।

हाल ही में बतौर लेखक मुझे मित्रों द्वारा नागपुर आमंत्रित किया गया। वहां मैं ऐसे अनेक मित्रों की सुवासित माला से जुड़ा जिनके जीवन दर्शन में काम में आनंद ढूंढना और आनंद के भाव के साथ हर काम करना शामिल था। जी हां! मोबाइल के इस दौर में खोते चले जा रहे मनुष्य-मनुष्य के ऑर्गेनिक संवाद को बनाए रखने के लिए गठित प्रोफेशनल्स के समूह संवाद और संपर्क की बात आज हम कर रहे हैं। ऐसा ही एक समूह भोपाल में भी है। नागपुर के इस ग्रुप में मैंने पाया कि पारिवारिक भावना से ओत-प्रोत ये सब प्रोफेशनल्स बंद दरवाज़ों के लोग नहीं थे, समूह संवाद के क्षणों में इनको देखकर-सुनकर साफ महसूस होता था कि ये सब लोग फ्रेश हवा की दुनिया के लोग थे जिनके विश्वासों में आसमान और उड़ान शब्द बारंबार बाहर आ फूटते थे। इनकी कॅरियर जर्नी के बयान से झलकता था कि इन सबकी एक ही कहानी थी जिसकी शुरूआत शून्य स्थिति से हुआ करती थी और अब जाकर ये संतुलन की मध्य की स्थिति में आ रहे थे। भविष्य की ओर सतत बढ़ते रहना इनके जुनून में था। इन सबके समवेत स्वर में चरैवेति चरैवेति का मूल मंत्र ध्वनित होता था। स्वयं को अभिव्यक्त करते हुए इन सबके दिल इतने खुले थे कि समूह में एकता के समभाव की अंडरस्टेंडिंग सबके ह्रदय में अंतर्निहित थी।
यह देखते हुए गुरूवर डॉ.राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी का आप्त कथन स्मरण हो आया कि असहमति हो तो हो, आचार-व्यवहार में सच्चाई का कोई विकल्प नहीं है और यह सच ही था कि संवाद सुनते हुए इन संधर्षशील यायावर लोगों की कही जा रही कथा में से सच बूंद-बूंद झर रहा था। इस संवाद क्रममाला का आयोजन नागपुर नगर के प्रमुख स्थान बजाज नगर में स्थित कस्तूरबा भवन के हॉल में समाजसेवी संस्था रेड स्वस्तिक के द्वारा आयोजित किया गया था। संस्था के प्रमुख व पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी डॉ.टी.एस. भाल से मिलना और संजीवन हीलिंग सेंटर के निदेशक डॉ.संजय उगे मुगे से मिलना मेरी नागपुर यात्रा की उपलब्धि रही। इनके साथ-साथ होम्योपैथिक पद्धति से मनोचिकित्सा करने वाली सर्टिफाइड डॉक्टर और टेली काउंसलर डॉ. सुनीता राठी से परिचय इसलिए भी प्रेरक रहा कि वे अपने सारे काम भगवद्गीता से करती आ रही हैं और इसलिए उनके जीवन में ऊहापोह नहीं है। इन सबसे ऊपर इंट्यूशन और उससे जुड़ी इंटेलिजेंस संबंधी अनुभव जो साथी आशीष तायल, जो वेस्टर्न कोल फील्ड्स में अधिकारी हैं, ने साझा किए उनसे मेरे अनुभवों की संपुष्टि भी हुई, वे एक सार्थक और दुर्लभ व्यक्तित्व हैं।

नागपुर के इन ऊर्जापुंज साथियों के लिए मेरे रागेश्वरी संग्रह की इस कविता को डेडिकेट करना यानी समर्पित करना आज सार्थक लग रहा है।
कुछ लोग
कुछ लोग आए और
बंद दरवाज़े खोले
साथ ही खिड़कियां भी कि
रोशनी और हवा पर यकीन
बना रहे सबका
कुछ लोग आए और
बार-बार स्मृतियों को
झिंझोड़ते रहे कि
अंधेरों की उम्र
आधे समय की ही होती है
कुछ लोग आए और
ऐसे वक़्त कंधे पर रखा हाथ जब
उम्मीद आख़िरी सांस ले रही थी
कुछ लोग आए और
सबको बताकर गए कि
सतरंगी भी है दुनिया
कुछ लोग
तब याद आए जब
चली गई रोशनी और
जलाई मोमबत्ती
कुछ लोगों की तस्वीरें नहीं थी पास
मगर देखा जा सकता था उन्हें
उम्मीद पर जीने वालों की आंखों में
कुछ लोग ऐसे आए कि
मिसालों और
कहानियों के होकर रह गए।
कहते हैं बड़ी सोच के लोग ही वास्तव में बड़े होते हैं और उनके हस्ते बड़े कार्य होना ही निर्दिष्ट होते हैं। बताता चलूं कि इस अभिनव समूह ‘ संपर्क और संवाद’ के प्रणेता हैं वरेण्य मित्रवर संजय अग्रवाल जो भारत शासन के एक महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत वरिष्ठ अधिकारी हैं। उनसे पारिवारिक निकटता का सौभाग्य मुझे प्राप्त है। उनके व्यक्ति चित्र पर फोकस फिर कभी, हां! उनके लिए असीम शुभकामनाएं। ईश्वर से कामना करता हूं भोपाल व नागपुर के बाद संजय अग्रवाल द्वारा प्रणीत डिटैच डिजिटल संस्कृति के प्रति उन्मुख इस अभिनव समूह संवाद- संपर्क की शाखाएं चहुंओर फैलें। ऐसा इसलिए भी कि तकनीक के शोर में हमारे जीवंत ऑर्गेनिक स्वर का कलरव लुप्त होता जा रहा है और ऐसे सम्मेलनों के माध्यम से कंठ वृन्द के मधुर समूह संगीत का संरक्षण करना इस कठिन समय में बहुत आवश्यक जान पड़ता है। लगता है उनके समूह के कलरव से जागृत करने वाली ये पंक्तियां मानो कह रही हों कि-
किरदार शिद्दत से निभाइए हकीकत में,
कहानी एक न एक दिन सब को होना है।
प्रकृति से जुड़े अपनी माटी अपना देस के भाव को बिखेरते इन ऑर्गेनिक फूलों की महक हंसध्वनि के पाठकों आ गई होगी ऐसा मेरा विश्वास है। पूरा है विश्वास,मन में है विश्वास, हम होंगे कामयाब एक दिन!
raghvendratelang6938@gmail.com
सही में इस प्रेरणादायक लेख से आर्गेनिक फूलों की महक आ गई है