
चैतन्य नागर, स्वतंत्र पत्रकार
फोटो: गिरीश शर्मा
साइकिल है शान की सवारी
महान रूसी उपन्यासकार लियो टॉलस्टॉय ने सड़सठ वर्ष की उम्र में साइकिल चलाना सीखा था। अपने सत्तरवें जन्मदिन पर बेटे की मृत्यु के बाद से टॉलस्टॉय के जीवन में गहरा अवसाद उतर आया था। अभिजात-वर्गीय, महान उपन्यासकार काउंट टॉलस्टॉय अपने दुःख के साथ जब अपने गाँव यसनाया पोलयाना में साइकिल लेकर निकलते तो लोग दंग रह जाते थे। टॉलस्टॉय ने अपनी वेदना की गठरी साइकिल को सौंप दी थी और लेखन के समय जब-जब उनके मन पर मायूसी छा जाती, वे साइकिल उठा कर निकल पड़ते। किसी काउंट के लिए साइकिल पर चलना उसकी सामाजिक हैसियत के अनुकूल नहीं था, पर टॉलस्टॉय ने पूरे स्नेह, उदारता और खुलेपन के साथ इसे अपनाया था। हिंदी के महान कवि केदारनाथ सिंह ने टॉलस्टॉय और उनकी साइकिल के रिश्ते को अपनी कविता में दर्ज भी किया है। टॉलस्टॉय अपनी साइकिल को एक ‘मासूम पवित्र मूर्खता’ का नाम देते थे। जब उन्होंने पहली बार साइकिल देखी थी तो उसकी घंटी ने जैसे उन पर जादू कर दिया था। एक कलाकार ही ऐसी मामूली वस्तुओं की जादुई ताकत को पहचान सकता है।
कोविड काल में उन लोगों ने भी साइकिल की अहमियत को समझा था जो कलाकार या लेखक नहीं। महामारी के सुनसान काल में जहाँ जीवन की प्रगति रुक-सी गई, वहीं साइकिल के पहिए नई स्वच्छंदता के साथ तेजी से घूमने लगे थे । लॉक डाउन में साइकिल की सवारी ने एक स्वास्थ्य प्रेमियों को एक अद्भुत अवसर दे दिया था। देश के साइकिल निर्माता एसोसिएशन ने बताया कि लॉक डाउन के बाद से पांच महीनों में देश में इकतालीस लाख से अधिक साइकिलें बिकी हैं। यह बिक्री अभूतपूर्व और असाधारण थी। ख़ास कर ऐसे देश में जहाँ सामंतवादी सामाजिक सोच के कारण साइकिल सवार को गरीब और लाचार समझा जाता है, और बड़ी, चमकती कार में घूमने वाले को जीवन के अंतिम लक्ष्य तक पहुंचा हुआ एक मालदार ‘बड़ा आदमी’।
दुर्भाग्य से देश के ज्यादातर शहर साइकिल फ्रेंडली नहीं हैं, फिर भी तड़के सुबह और कुछ लोगों को देर रात भी साइकिल चलाने में आनंद आता है। भारतीय बाजार में साइकिल का मूल्य छह हज़ार रूपये से लेकर अस्सी हज़ार रूपये तक है। आप गियर वाली साइकिल लें या बगैर गियर वाली, यह आपकी जरुरत और जेब के वजन पर निर्भर करता है। एक हाइब्रिड मॉडल भी है जिसकी खासियत यह है कि आप उत्साह में अगर बहुत दूर तक निकल जाएँ और वापस लौटने के लिए ऊर्जा न बचे, तो यह बैटरी पर भी चल सकती है। यदि आप विदेशी साइकिल लेते हैं तो चार से पांच लाख रूपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं। वैसे भारत में भी ऐसी साइकिल उपलब्ध हैं जो आम आदमी की सवारी नहीं बन सकतीं। फायरफॉक्स नाम की भारतीय कंपनी ने सवा चार लाख की साइकिल भी बनाई है जो वज़न में दस किलो से कम है और देश में बनने वाली अब तक की सबसे महंगी साइकिल है।
साइकिल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इस पर लोग अच्छी खासी गति से समय, स्थान और ऊर्जा व्यर्थ किए बगैर चल लेते हैं। साइकिल पर प्रति मील खर्च बहुत कम आता है। दूसरों की जगह और समय को हड़पे बगैर साइकिल सवार अपने वाहन में लगातार हो रहे तकनीकी संशोधनों का फायदा भी उठा लेता है। साइकिल सवार अपनी गति और हरकतों का नियंत्रक खुद ही होता है और फिर भी सड़क पर चल रहे बाकी लोगों के रास्ते में बिलकुल नहीं आता। साइकिल में गहरा आत्मसंतोष होता है और यह बस उतना ही मांगती है जितना उसका सवार दे सके। साइकिल पर चलता इंसान जीवन और अपनी खुद की गति के बीच एक अद्भुत ताल-मेल बैठा लेता है, और उनके बीच के संबंधों का संतुलन शायद ही कभी बिगड़ता होI साइकिल सवार पैदल लोगों की तुलना में तीन या चार गुना ज्यादा तेज चल लेता है। हमारे भीड भरे शहरों में साइकिल का सबसे बड़ा फायदा यह है कि वह बहुत कम जगह लेती है। एक बड़ी कार की जगह पर करीब बारह साइकिलें पार्क हो सकती हैं। यह अकेला ऐसा वाहन है जिसपर सवार इंसान किसी के भी दरवाजे तक पहुँच सकता है, बगैर पैदल चले।
साइकिल की सवारी का बड़ा फायदा यह है कि आप शहर के उन इलाकों, गलियों में भी जा सकते हैं, जहाँ और कोई वाहन नहीं जा सकता। कोलकाता में साइकिल के शौक़ीन लोगों ने सरकार से यह भी कहा हुआ है कि वह सड़कों पर उनके लिए अलग से लेन बनाए जाएं। दरअसल, सभी शहरों में ऐसी लेन बननी चाहिए, जिससे साइकिल चलाने वालों को आसानी हो और वे सुरक्षित भी महसूस करें। इसके दूरगामी सकारात्मक परिणाम हैं। शहरों में प्रदूषण की समस्या को साइकिल बहुत हद तक दूर कर सकती है।
हॉलैंड के लोग अपने साइकिल प्रेम के लिए दुनिया में मशहूर हैं। उस देश में इंसानों से ज्यादा साइकिलें हैं; करीब एक करोड़ सत्तर लाख लोग हैं, और दो करोड़ तीस लाख साइकिलें। वहां सरकार लोगों को प्रोत्साहित करती है कि वे काम पर अपनी साइकिल पर बैठ कर ही जाएं। इसके लिए किसी व्यक्ति को प्रति कि. मी. साइकिल चलाने के लिए 0.22 डॉलर सीधे उसके वेतन में जोड़ कर मिलते हैं! इस रकम पर कोई कर भी नहीं लगता। साइकिल और अपने देश के पर्यावरण से लोगों को इतना प्यार है कि कुछ साल पहले वहां के प्रधान मंत्री भी अपनी साइकिल से ही संसद तक जाते थे।

साइकिल की एक अपनी तहजीब होती है। देश में नागरिकता का भाव पहले से ही बड़ा विकृत है। सड़क पर चल रहे पैदल व्यक्ति को पहले सड़क पार करने का अधिकार होता है, और साइकिल सवार का भी अधिकार किसी कार वाले की तुलना में अधिक होता है। बच्चे या महिलाएं साइकिल चला रहे हों, तो उनका अधिकार किसी साइकिल सवार पुरूष से ज्यादा महत्वपूर्ण है। पर बड़ी गाड़ियों के चालकों को लगता है कि सड़कें बस उनके लिए ही बनी गई हैं। ख़ास कर उनके कानफाडू, अहंकारी हॉर्न तो साइकिल सवारों को बहुत ज्यादा डरा देते हैं। वैसे साइकिल सवारों को भी कुछ नियम मानने चाहिए। हालाँकि ऐसा कानून नहीं बना, पर अपनी सुरक्षा के लिए, और ख़ास कर रात के समय, उन्हें कोई चमकीला कपडा पहनना चाहिए। बच्चे जब साइकिल चलाना सीखते हैं तो उनमे बहुत जोश होता है पर दुर्भाग्य से उनके लिए यहाँ की सड़कें नहीं बनीं। बच्चों को हम पूर्ण नागरिक ही नहीं मानते और इसलिए उनकी सुरक्षा सड़क पर मौजूद बाकी वाहन चालकों की संवेदनशीलता पर ही निर्भर करती है। बच्चों को देख कर सड़क पर रूक जाने का यहाँ बिलकुल रिवाज नहीं, पर होना चाहिए। बच्चों की साइकिल छोटी होने की वजह से उसमें कोई झंडी वगैरह लगा देनी चाहिए, जिससे वह दूर से दिख सके। अपने देश की सड़कों का हाल देखते हुए बेहतर है कि साइकिल चलाते समय हेलमेट लगा लिया जाए, और थकान से शरीर में पानी कम न हो जाए, इसके लिए साथ में पानी की बोतल जरूर रख लें। जिन्हें मधुमेह की शिकायत है उनके लिए जरुरी है कि साथ में मीठे बिस्किट या दो चार टॉफी रखें और अचानक खून में चीनी की मात्रा कम होने लगे तो उसे तुरंत खा लें। बेहतर होगा कि साइकिल चलाने के लिए सुबह खाली पेट न निकलें, कुछ हल्का खा लें।
साइकिल चलाने के अगिनत फायदे हैं। उनमें से कुछ गिन लीजिये और फिर साइकिल खरीदने पर गंभीरता से विचार कीजिए। साइकिल पर बैठते समय जोर पड़ता है शरीर के वस्ति क्षेत्र पर। टहलते समय हमारा जोर घुटनों के जोड़ पर पड़ता है। घुटनों के दर्द से परेशान लोगों के लिए टहलने से बेहतर है साइकिल चलाना। साइकिल सवार को जब पेडल मारने पर ज़ोर लगाना पड़ता है तो उसकी यह मेहनत सीधे दिल के काम आती है। पेडल को नीचे की तरफ दबाते समय कूल्हे और जाँघों की मांसपेशियां काम करती हैं, साथ ही पिंडलियाँ भी मजबूत होती हैं। हैंडल बार को संभालने और संतुलन बनाये रखने में भुजाएं और कंधे भी मदद करते हैं, और उनमे एकत्रित तनाव कम होता है। हड्डियों के लिए साइकिल चलाना बहुत ही अच्छा है क्योंकि इससे उनकी सघनता बढ़ती है। अधिक से अधिक लोग साइकिल चलाने लगें तो अपने शरीर के साथ-साथ पर्यावरण की सेहत भी बहुत तेजी से सुधर सकती है। साइकिल चलाने वाले की देह और मन के साथ समूची धरती भी खुश रहती है, और आसमान भी क्योंकि सड़कों पर अधिक साइकिलें होने का का मतलब है प्रदूषण का तेजी से घटना और समूची धरा का मुस्कुराना।