
- जे.पी. सिंह
वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ
महाराष्ट्र की राजनीति में विज्ञान की अनेदखी, जादू पर विश्वास
भारतीय समाज में काला जादू और तंत्र को लेकर विभिन्न मत हैं। कुछ लोग इन प्रथाओं को असली मानते हैं और राजनीतिक लाभ या शत्रु नाश के लिए इनका उपयोग करते हैं, जबकि अन्य इन्हें अंधविश्वास मानते हैं। राजनीति में इन प्रथाओं का उपयोग अक्सर विवादों का कारण बनता है और इनकी सच्चाई या प्रभावशीलता पर सवाल उठते रहते हैं। इसके बावजूद भारतीय राजनीति में शत्रु नाश यज्ञ, काला जादू, तंत्र और मंत्रों के उपयोग की घटनाएं दोनों ऐतिहासिक और हालिया संदर्भों में सामने आई हैं। हालांकि, इन दावों की सत्यता और प्रभावशीलता पर संदेह बना रहता है और कुछ राज्यों में इन प्रथाओं पर कानूनी प्रतिबंध भी हैं। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के दौरान ऐसे दावे अक्सर सुर्खियों में आते हैं, लेकिन इनकी वास्तविकता की पुष्टि करना संभव नहीं है। यह विषय सांस्कृतिक विश्वासों, कानूनी ढांचे, और राजनीतिक रणनीतियों का मिश्रण है, जो भारतीय समाज में गहरी जड़ें रखता है।
ताजा मामला महाराष्ट्र का है जहाँ तंत्र-मंत्र को लेकर खबरें शिवसेना के मुखपत्र सामना से लेकर इंडियन एक्सप्रेस तक में छाई हुई हैं। महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में एक गुप्त अनुष्ठान की कानाफूसी छाई हुई है। अटकलें तब तेज हो गईं जब इसके कई नेताओं ने हाल ही में असम के प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर का दौरा किया, जो तांत्रिक शक्ति का एक ज्ञात केंद्र है।
अब इस क्षेत्र में एक नया नाम शामिल हो गया है। इस बार मुद्दा शिंदे की सेना के एक मंत्री भरत गोगावले की एक तस्वीर से उठा है, जिसे उद्धव ठाकरे गुट शिवसेना (यूबीटी) के मुख पत्र सामना में छापते हुए निशाना साधा गया है। ‘सामना’ संपादकीय में मंत्री भरत गोगावले की अघोरी पूजा करते हुए एक फोटो का हवाला देते हुए कहा गया, ”प्रगतिशील महाराष्ट्र को अब श्मशान और खोपड़ियों के बीच झोंका जा रहा है। इस फोटो में मंत्री भरत गोगावले मानव खोपड़ियों, नींबू-मिर्च और हड्डियों के बीच अघोरी बाबा के सामने बैठा देखा गया है। संपादकीय में लिखा है कि “पहली दफा महाराष्ट्र मंत्रिमंडल में नींबू, मिर्च, पिन और खोपड़ी को महत्व मिलने लगा है, यानी राज्य में अघोरी नाच होगा।” इतना ही नहीं संजय राउत ने उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को नींबू मिर्ची वाला नेता भी बता दिया। हालांकि यह कोई नया मामला नहीं है, इससे पहले जब एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे से अलग होकर बीजेपी के साथ आए थे उस दौरान वो अपने तमाम नेताओं के साथ गुवाहाटी के कामाख्या मंदिर दर्शन के लिए गए थे। मां पार्वती का यह मंदिर तंत्र मंत्र और बलि के लिए भी मशहूर है। तब संजय राउत ने आरोप लगाया था कि शिंदे ने यहां जाकर भैंसे की बलि दी है।
इसके पहले फरवरी में संजय राउत ने बड़ा आरोप करते हुए कहा था, ”महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अंधविश्वास की वजह से दक्षिण मुंबई स्थित मुख्यमंत्री के सरकारी आवास ‘वर्षा’ में शिफ्ट नहीं हो रहे हैं। गुवाहाटी में कामाख्या मंदिर की यात्रा के दौरान भैंसों की बलि दी गई और उन भैंसों के सींग ‘वर्षा’ के परिसर में इसलिए दफनाए गए ताकि सीएम की कुर्सी शिंदे को ही हासिल हो सके।” इस बयान के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस अपनी पत्नी अमृता के साथ इस साल अक्षय तृतीया के मौके पर विधि विधान से पूजा कर ‘वर्षा’ बंगले में शिफ्ट हुए थे।
महाराष्ट्र में 2019 में बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की दूसरी बार शपथ ली थी। तब राजनीतिक उठापटक के बीच देवेंद्र फडणवीस की एक तस्वीर जारी हुई थी जिसमें कुछ पंडित रात के अंधेरे में पूजा कर रहे हैं जिसमें खुद देवेंद्र फडणवीस भी मौजूद थे। बताया जा रहा था कि ये पूजा मध्यप्रदेश के नलखेड़ा में स्थित प्रसिद्ध बगलामुखी मंदिर के पंडितों ने करवाई थी। नलखेड़ा का मां बगलामुखी का प्रसिद्ध तीर्थ शत्रु नाश तंत्र-मंत्र के लिए जाना जाता है।
इसके पहले सरकार बनने से पहले एकनाथ शिंदे अपने गांव गए थे, तब भी आदित्य ठाकरे ने उन पर आरोप लगाते हुए सवाल पूछा था कि सोमवती अमावस्या और पूर्णिमा के दौरान ही शिंदे अपने गांव क्यों जाते हैं? क्या वहां जाकर काला जादू कर रहे हैं? जिसके बाद शिंदे गुट के नेताओं ने भी खूब बयानबाजी की थी। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में 2013 में लागू अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून काला जादू, अंधविश्वास और ऐसी प्रथाओं पर सख्त कार्रवाई का प्रावधान करता है, जिसमें जुर्माना और जेल की सजा शामिल है।
महाराष्ट्र की ही तरह 2024 में, कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने एक गंभीर दावा किया था कि उनके राजनीतिक विरोधियों ने केरल के राजाराजेश्वरी मंदिर के पास एक अलग स्थान पर काला जादू के अनुष्ठान किए थे। इन पूजाओं में ‘शत्रु भैरवी यज्ञ’ जैसे शत्रु नाश यज्ञ शामिल थे, जिसमें 21 लाल बकरे, 3 भैंसे, 21 काले भेड़ और 5 सुअरों की बलि दी गई थी। उनका दावा था कि इसका उद्देश्य कांग्रेस सरकार को अस्थिर करना और उनके शत्रुओं को नुकसान पहुंचाना था। इस दावे के बाद, केरल सरकार और मंदिर प्रशासन ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। एक एक्स पोस्ट में (@OpIndia_com, 2 जून 2024) कहा गया था कि मंदिर ट्रस्ट ने कहा है कि ऐसे रिचुअल्स वहां संभव नहीं हैं और केरल की सीपीएम पार्टी ने डी.के. शिवकुमार को ‘पागल’ कहकर इन दावों का मजाक उड़ाया है। एक अन्य एक्स पोस्ट में (@TimesAlgebraIND, 1 जून 2024) बताया गया था कि मंदिर ने इन आरोपों को अस्वीकार किया और कहा है कि ऐसे रिचुअल्स वहां नहीं किए जा सकते।
पिछले दशकों में, कई प्रमुख राजनेताओं को तांत्रिकों और काला जादू से जुड़े होने के दावे सामने आए हैं। उदाहरण के लिए, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1979-1983 के दौरान झांसी के काली मंदिर में ‘लक्ष्मीचंडी पाठ’ करवाया था, जिसमें एक लाख श्लोकों का पाठ किया गया था। इसका उद्देश्य संभवतः अपने पुत्र संजय गांधी की रक्षा करना और एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी को अयोग्य घोषित करना था।
2015 में नीतीश कुमार का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें वे एक तांत्रिक के साथ दिखाई दिए थे, जो लालू प्रसाद के खिलाफ बोल रहा था। मनमोहन सिंह ने 2009 के चुनावों से पहले बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी पर काला जादू और तांत्रिकों का सहारा लेने का आरोप लगाया था। अन्य राजनेताओं जैसे चंद्रशेखर, पी.वी. नरसिम्हा राव, और ज्ञानी जेल सिंह के भी चंद्रस्वामी जैसे तांत्रिकों के साथ जुड़े होने के दावे सामने आए हैं। इन उदाहरणों से पता चलता है कि तांत्रिकों और काला जादू का उपयोग राजनीतिक लाभ, शत्रु नाश, और रक्षा के लिए लंबे समय से किया जाता रहा है। विलियम डालरम्पल की पुस्तक ‘नाइन लाइव्स’ में उल्लेख है कि पश्चिम बंगाल और बिहार के राजनेताओं ने चुनावों से पहले खोपड़ियों की पूजा और जानवरों की बलि दी है, जो इन प्रथाओं की व्यापकता को दर्शाता है।
उज्जैन और कामाख्या पीठ आसाम की तरह उत्तर प्रदेश के विंध्याचल में स्थापित मां विंध्यवासिनी के मंदिर तथा देश भर के बगलामुखी मंदिरों में तंत्र अनुष्ठानों का सिलसिला निरंतर चलता रहता है। इन मंदिरों में बड़े-बड़े व्यवसायियों और राजनीतिज्ञों को कभी भी देखा जा सकता है। संदर्भ देखें तो पाते हैं कि सनातन हिंदू धर्म ही नहीं विश्व के सभी धर्मों में तंत्र को मान्यता दी गई है। फिर चाहे वह पारसी धर्म हो, यहूदी धर्म हो, ईसाई धर्म हो या फिर इस्लाम धर्म हो। यह बात अलग है कि हर धर्म में उसके विकसित होने वाले देश, काल, परिस्थिति के अनुसार तंत्र का विधान अलग-अलग है। लेकिन तंत्र के प्रभाव को सभी मानते हैं। शायद इसीलिए भारत में तंत्र विद्या के प्रभाव को नष्ट करने के लिये अंग्रेजों ने झाड़-फूंक व तंत्र-मंत्र निवारण अधिनियम का निर्माण किया था, जो अब राज्य का विषय है। कानून के अनुसार कोई भी व्यक्ति अन्य किसी व्यक्ति, पशु या जीवित वस्तु पर ओझा के रूप में झाड़-फूंक या तंत्र-मंत्र का उपयोग करके उपचार करने का दावा करता है तो यह कृत्य अपराध की श्रेणी में आता है। इस अपराध पर पांच वर्ष तक की अवधि के कठोर कारावास एवं जुर्माने से दंडित किए जाने का प्रावधान है।
महाराष्ट्र, कर्नाटक, और गुजरात जैसे राज्यों में काला जादू और तंत्र पर कानूनी प्रतिबंध हैं। इन कानूनों के तहत काला जादू, मानव बलि, और अन्य अंधविश्वासों को अपराध माना गया है, जिसमें 6 महीने से 7 साल तक की सजा और 5,000 से 50,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। अपराध गैर-जमानती और संज्ञेय हैं। हालांकि, केरल में ऐसा कोई कानून नहीं है। 2025 में, केरल सरकार ने काला जादू और जादू-टोने पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिससे इन प्रथाओं की व्यापकता बढ़ सकती है।