
- आशीष दशोत्तर
साहित्यकार एवं स्तंभकार
फोटो: गिरीश शर्मा
ख़ुद से बेख़बर इंसान को अपनी ख़बर लेने की नसीहत
वस्ल-ए-दुश्मन की ख़बर मुझसे अभी कुछ ना कहो
ठहरो-ठहरो मुझे अपनी तो ख़बर होने दो।
मुख़्तलिफ़ रंगों और ख़ुशबुओं के फूलों का एक हसीन गुलदस्ता बनाने का बेशक़ीमती हुनर रखने वाले उस्ताद शाइर अमीर मीनाई का यह शेर उनकी सादा ज़ुबानी के साथ उस्तादी को भी पेश करता है। यहां कोई उलझन, कोई मुश्किल या दूरूहता नज़र नहीं आती है। बहुत सादगी से शाइर ने बात कह दी है। शेर के लफ़्ज़ी मआनी पर ग़ौर करें तो शाइर कहना चाहता है कि दुश्मन के मिलन की ख़बर अभी मुझे मत दो। पहले मुझे अपनी तो ख़बर हो जाने दो।
इस शाब्दिक अर्थ में कहीं कुछ ऐसा नज़र नहीं आता है जो सोचने पर मजबूर करे मगर इन शब्दों के पीछे जा कर इनमें छुपे शब्दों पर ग़ौर करें तो यह शेर काफ़ी कुछ कहता प्रतीत होता है। दुश्मन का मिलाप बहुत स्पष्ट है मगर यहां यह ध्वनित भी कर रहा है कि यहीं कहीं दोस्तों की जुदाई भी है। शाइर कह रहा है कि दोस्तों की जुदाई तो मुझे परेशान कर ही रही थीं लेकिन ऐसे में तुम दुश्मनों के मिलन की ख़बर दे रहे हो। मगर इन सब से पहले मुझे अपने आप के बारे में तो जानने दो।
दरअसल, होता यही है कि इंसान सबके बारे में बहुत जानकारी रखता है मगर अपने बारे में कोई जानकारी नहीं रखता। कबीर तो इस बात को पहले ही कह चुके हैं कि ‘जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।’ सभी में बुराई तो देखने की हमें आदत है लेकिन अपने भीतर झांकने की कभी फ़ुर्सत नहीं मिलती। शाइर यही कहना चाह रहा है कि मुझे दूसरों की ख़बर करने से पहले ज़रा अपनी ख़बर तो लेने दो।
एक अर्थ यह भी ध्वनित हो रहा है कि दुश्मन के मिलन की ख़बर यहां तुम मुझे दे रहे हो और यह बता रहे हो कि दुश्मन आपस में मिल चुके हैं, ऐसे में यह ज़रूरी है कि मैं अपने आप की ख़बर तो लूं कि मैं उन दुश्मनों के मिलने के बाद उनका सामना करने में सक्षम हूं या नहीं? मेरे सारे दुश्मन अगर मिल गए तो क्या मैं उनका मुकाबला कर सकूंगा? पहले मुझे मेरी तैयारी तो करने दो, फिर यह बताना कि दुश्मन कब और कैसे मिले और किस तरह मिले!
शेर का एक अर्थ यह भी खुल रहा है कि दुश्मन का मिलन दोस्ती का पैग़ाम देता है। यदि दुश्मन आपस में मिल जाएं तो नफ़रतों के लिए कोई जगह नहीं रहेगी। शाइर ऐसे समाज की कल्पना यहां कर रहा है, जिसमें दुश्मनों में प्रेम हो रहा है। जब प्रेम बढ़ रहा है तो ऐसे में मैं खुद कहां हूं? मैं सबके प्रेम के साथ खड़ा रहने के क़ाबिल हूं या नहीं, इसके लिए मुझे तैयार होने का मौका तो मिलना ही चाहिए। अभी तक तो मैं सभी दुश्मनों को अलग-अलग मानकर चल रहा था लेकिन अब जब दुश्मन आपस में दोस्त बन गए हैं तो मुझे उनके साथ कैसे रहना है यह भी तो आना चाहिए।
शाइर अपने वक़्त से बहुत आगे जाकर अपनी बात कहता है। अगर इस शेर को वर्तमान संदर्भों में हम समझें तो पाते हैं कि पूरी दुनिया अलग-अलग दायरों में बंट गई है। हर मुल्क कई दायरों में बंटा हुआ है और अब तो हर इंसान कई-कई दायरे में क़ैद रहने लगा है। ऐसे में यहां इंसान को ख़ुद की ख़बर नहीं है। वह अपने आस-पड़ोस को नहीं जानता है। वह अपने रिश्ते-नाते भूल चुका है और बात सारी दुनिया की कर रहा है? सारी दुनिया को अपनी मुट्ठी में क़ैद समझ कर चल रहा है जबकि उसके पास अपना कुछ भी नहीं है। वह तो अभी ख़ुद को भी नहीं जानता है। वह कौन है, उसकी ताक़त क्या है, उसकी हैसियत क्या है? वह क्या कर सकता है? उसमें क्या कर गुज़रने की क्षमता है। इसका उसे ज़रा भी ख़्याल नहीं है। बावजूद इसके वह बात ऐसे करता है जैसे सारी दुनिया उसी से चल रही है।
दुनिया में कौन क्या कर रहा है, कहां क्या हो रहा है, इसकी ख़बर तो बाद की बात है, पहले इतनी ख़बर तो हो जाए कि इस दुनिया में एक इंसान का वजूद क्या है? जिसे ख़ुद अपनी ज़मीन पता नहीं वह दूसरों को ज़मीन नापने की कोशिश कर रहा है। जिसे ख़ुद अपने हैसियत पता नहीं वह दूसरों की हैसियत निर्धारित कर रहा है। शाइर यहां पर यही इशारा कर रहा है कि इसकी, उसकी बात करने के पहले हमें ख़ुद की बात करना है। यहां शाइर ने ठहरो, ठहरो का दो बार इस्तेमाल किया है। एक बार ठहरना काफ़ी नहीं है। बार-बार ठहर कर इस बात पर विचार करना ज़रूरी है कि एक इंसान पहले ख़ुद को समझे, ख़ुद का पैमाना तय करे और फिर वह दूसरों के बारे में बात करे। अपने दोस्तों के क़रीब जाएं। जब दोस्त क़रीब आ जाएं तो फिर यह कोशिश करें कि दोस्तों के बीच मिलाप हो। दुश्मनों का मिलाप तो बहुत दूर की बात है। पहले खुद से मिलना, उसके बाद अपने परिवार से मिलना, उसके बाद अपने रिश्ते-नातों के क़रीब जाना, उसके बाद अपने दोस्तों के क़रीब जाना। उसके बाद अपने दोस्तों को क़रीब लाना। यह सब हो जाए तब दुश्मनों के मिलने की बात मुझसे करना।
शाइर ख़ुदपरस्ती के दौर में नसीहत भी दे रहा है और सतर्क भी कर रहा है।
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