
- जे.पी. सिंह
वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ
क्या आपने ‘स्लीप डिवोर्स’, ‘स्लीप एलायंस’’के बारे में कभी सुना है या इसके बारे में आपको कुछ मालुम है? नहीं ना, क्योंकि यह पाश्चात्य सभ्यता की देन है। vogue.co.uk में प्रकाशित लेख बताता है कि ‘स्लीप डिवोर्स’ अवधारणा लोकप्रिय हो रही है, विशेष रूप से युवाओं के बीच। हालांकि, भारत विशेष रूप से उत्तर भारत में परंपरागत रूप से संयुक्त परिवारों में यह अवधारणा पहले से प्रचलित रही है।
सोशल मीडिया पर पहली बार किसी तलाक को अच्छा बताया जा रहा है और उस तलाक का नाम है ‘स्लीप डिवोर्स’, जिसके पीछे कारण बहुत रोचक है। दौड़ती-भागती जिंदगी में आज लोग काम के चक्कर में घर से ज्यादा बाहर वक्त बिताते हैं। अगर हसबैंड-वाइफ दोनों वर्किंग हैं तो दोनों ही काम की वजह से घर थके- हारे पहुंचते हैं तो वहीं आजकल लोगों को ऑफिस या अपने वर्किंग प्लेस पर जाने तक जाने के लिए भी काफी ट्रैवल करना पड़ता है या अगर पत्नियां वर्किंग वूमन नहीं भी हैं और वो घर के ही कामों को अंजाम देती हैं तो भी पूरा दिन उन्हें थकाने वाला ही होता है। कुल मिलाकर कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि दिन भर काम करने के बाद पति-पत्नी दोनों को आठ घंटे की नींद बहुत जरूरी है इसलिए आज के परिवेश में मियां-बीवी स्वेच्छा से अलग-अलग सोने का फैसला ले रहे हैं, जिसे कि दूसरे शब्दों में ‘स्लीप डिवोर्स’ कहा जा रहा है।
हमारे देश में पति-पत्नी का अलग-अलग सोना अच्छा नहीं माना जाता है। पति-पत्नी के अलग सोने को दोनों के बीच अनबन से जोड़ा जाता है या फिर सोच लिया जाता है कि दोनों का रिश्ता सही नहीं चल रहा लेकिन जब आप किसी खास कारण से स्वैच्छा से अलग सोने का फैसला लेते हैं तो ये आपके और आपके रिश्ते के लिए बुरा नहीं होता है।
अक्सर किसी को रात में सोने से पहले किताब पढ़ने की आदत होती है या फिर कोई अपने करीबियों के फोन और चैट का जवाब रात में देता है क्योंकि पूरे दिन उसे टाइम नहीं मिलता है इसलिए लाइट जलाता है या फिर कुछ व्यक्ति अपने छोटे बच्चे और पत्नी के साथ बेड शेयर करने में कंफर्ट फील नहीं करते हैं या किसी के पार्टनर को खर्राटे लेने की आदत होती है। ऐसे में उसका पार्टनर अगर दूसरे कमरे में सोने का फैसला करती है तो इसे ‘स्लीप डिवोर्स’ कहा जाता है। इससे दोनों की ही नींद पूरी हो जाती है और वो दोनों मानसिक और शारीरिक दोनों ही रूपों से स्वस्थ रहते हैं।
इस बारे में सोशल मीडिया पर लोग खुलकर बातें कर रहे हैं और लोगों का मानना है कि ये डिवोर्व रिश्ते के लिए अच्छा है क्योंकि इसकी वजह से आप स्वस्थ रहते हैं और स्वस्थ इंसान ही अपने रिलेशन को अच्छी शेप दे सकता है। केवल बेड शेयर करने से पति-पत्नी के बीच प्रेम और समझ नहीं पनपती है। ‘स्लीप डिवोर्स’ का मतलब एक रिश्ते में दोनों की आदतें और इच्छाओं को सम्मान देना और स्पेस देना है इसलिए लोग इसे तेजी से अपना रहे हैं। हालांकि ये कितना लंबा होता है ये पति-पत्नी की निजी इच्छा पर निर्भर करता है।
स्लीप डिवोर्स से सबसे बड़ा फायदा नींद का पूरा होना है क्योंकि नींद पूरी ना होने से आपको थकान, कमजोरी और सिरदर्द जैसी परेशानियां होती हैं। दूसरा फायदा पति-पत्नी को अपने लिए स्पेस मिलता है। जैसे पति रात में अलग सोने से अपनी मनपसंद किताब पढ़ सकता है तो वहीं पत्नी अपनी सहेली से चैट कर सकती हैं या फिर संगीत सुन सकती हैं या बच्चों को कहानी सुना सकती हैं। कुछ लोगों को फैलकर सोने की आदत होती है, अलग सोने में इंसान की ये इच्छा भी पूरी हो सकती है। साथ सोने से पति-पत्नी हमेशा करीब हों ये हमेशा तो जरूरी नहीं ठीक इस तरह से ये सोच लेना कि अलग-अलग सोने से दोनों दूर हो गए ये भी उचित नहीं हैं।
एक-दूसरे को गले लगाना, आलिंगन, सोते हुए एक-दूसरे को थामे रहना, कपल गोल्स के सबसे बेहतरीन मानकों में से एक माना जाता है। ये स्नेह के सबसे बढ़िया, अशाब्दिक संकेत हैं। इसलिए, जब जोड़े अलग-अलग कमरों में अलग-अलग बिस्तरों पर सोते हैं, तो स्वाभाविक रूप से लोगों की भौहें तन जाती हैं। इससे शक पैदा होता है कि क्या रोमांस खत्म हो गया है, क्या यह किसी अनसुलझे रिश्ते या ब्रेकअप की ओर इशारा करता है? यह उन गुप्त मामलों में से एक है जिसके बारे में अक्सर खुलकर बात नहीं की जाती, क्योंकि सामाजिक अपेक्षाएं अंतरंगता की एक ही परिभाषा गढ़ती हैं। हालांकि, सच्चाई आपके विचार से कहीं ज़्यादा बहुआयामी है।
पहली नजर में, यह रिश्ते में दरार जैसा लग सकता है, लेकिन यह उपयुक्त भी हो सकता है, जैसा कि विशेषज्ञ बताते हैं, “अलग-अलग सोने का मतलब यह नहीं है कि अलग-अलग रहना होगा। अलग-अलग बिस्तर चुनना या अलग-अलग शयनकक्ष रखना दो लोगों के लिए एक स्वस्थ विकल्प हो सकता है। इसका मतलब यह हो सकता है कि आपको बेहतर नींद आएगी, खर्राटे लेने वाले या अनिद्रा से पीड़ित साथी के प्रति कम नाराज़गी महसूस होगी, और आधी रात में होने वाली झुंझलाहट कम हो सकती है। अकेले अच्छी नींद लेना ज़रूरी नहीं कि भावनात्मक अलगाव का संकेत हो; इसका मतलब यह भी हो सकता है कि आप अपना ख्याल रख रहे हैं। आराम मानसिक स्वास्थ्य का आधार है, और अच्छी तरह से आराम करने वाले साथी अधिक सकारात्मक संवाद करने में सक्षम हो सकते हैं, जिससे अंतरंगता बेहतर हो सकती है।”
लेकिन यह भी हकीकत है कि स्लीप डिवोर्स रिलेशनशिप को प्रभावित करता है। अलग-अलग सोने से पार्टनर के साथ अपनेपन की फीलिंग खत्म होने लगती है। बेडरूम ही वो जगह होती है जहां हम पार्टनर के साथ प्यार, शिकायतें और कई तरह की दूसरी बातें साझा करते हैं। जिससे आपसी कनेक्शन बिल्ड अप होता है, लेकिन स्लीप डिवोर्स में इन चीजों के लिए वक्त ही नहीं मिलता, जिससे अटैचमेंट में कमी आने लगती है और रिलेशनशिप में रहते हुए भी अलगाव जैसी ही फीलिंग आती रहती है।
अलग-अलग कमरों में सोने से धीरे-धीरे प्यार और रोमांस कम होने लगता है, जो आपकी शादीशुदा जिंदगी को डिस्टर्ब कर सकता है और अलगाव की भी वजह बन सकता है। पर्सनल लाइफ से जुड़ी किसी भी तरह की प्रॉब्लम आपके प्रोफेशनल लाइफ को भी प्रभावित करती है। स्लीप डिवोर्स के चक्कर में वर्किंग कपल्स की लाइफ से खुशियां भी गायब हो रही हैं। पूरा दिन ऑफिस फिर घर के कामकाज निपटाने के बाद रात का ही वक्त होता है जब उन्हें एक-दूसरे के साथ समय बिताने का मौका मिलता है। ऐसे में अलग-अलग सोने का डिसीजन दोनों के ही लिए मुश्किल भरा हो सकता है। इससे आपसी मनमुटाव बढ़ने लगता है। स्लीप डिवोर्स के चलते पार्टनर को इनसिक्योरिटी भी फील हो सकती है। दरअसल शादी के बाद बेड शेयरिंग बहुत ही नॉर्मल बात है, लेकिन अगर कोई एक पार्टनर साउंड स्लीप के लिए अलग सोना चाहता है, तो दूसरा इसे बहाना समझ सकता है दूरियां बनाने का। उन्हें हर वक्त यह डर सताता रहता है कि कोई तीसरा उनके रिलेशनशिप में आ चुका है। जिससे बेवजह का तनाव और लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं।
परंपरा भी रही है इस डिवोर्स की
दरअसल, पति-पत्नी का एक साथ सोना पश्चिमी अवधारणा है क्योंकि भारत में संयुक्त परिवारों के दौर में पुरुषों के घर के बाहर और महिलाओं के घर के अंदर सोने की परंपरा रही है। इसे परिवार की परंपराओं और बड़े छोटे के लिहाज से जोड़कर देखा जाता रहा है। रात के अंधेरे में कब कौन मकान अंदर गया कब कौन बाहर आकर फिर अपने खाट पर सो गया यह अघोषित समझौते के रूप में सभी जानते थे चाहे पुरुष हों या स्त्रियां। यह अर्द्ध ‘स्लीप डिवोर्स’ या अर्द्ध ‘स्लीप एलायंस’ सरीखा था। इससे पति पत्नी के बीच संबंधों की गर्माहट और स्पर्श का रोमांच लंबे समय तक बना रहता था। दरअसल, पति-पत्नी का रोज एकसाथ सोना जहां पश्चिमी अवधारणा थी उसी तरह ‘स्लीप डिवोर्स’ या ‘स्लीप एलायंस’ भी पश्चिमी अवधारणा है।
एक समय था जब भारतीय सांस्कृतिक विरासत की आधारभूत केंद्र बिन्दु में संयुक्त परिवार हुआ करता था। लोग सयुंक्त परिवार में रहकर एक दूसरे के प्रति उत्तरदायित्व का बोध करके परिवार को आगे बढ़ाने का कार्य करते थे। धीरे-धीरे यह विचारधारा व भाव समय के साथ घटता गया। समाज मे एकल परिवार की संकल्पना तेजी बढ़ती गई। यद्यपि भारत में एकल परिवार का प्रचलन संयुक्त परिवार से अधिक होता जा रहा है जिसके विविध कारण हैं तथापि व्यक्तिपरक चरित्र में वृद्धि,व्यक्तिगत स्वतंत्रता, व्यक्तिगत जीवन, व व्यक्तिगत स्वार्थ एकल परिवार की बढ़ती प्रवृत्ति का कारण है। इसके आलावा भौतिकता की अंधी दौड़ में पाश्चात्य संस्कृति के प्रति उन्मुक्तता भी प्रमुख कारण है।
समय के साथ ही भारत की परंपरागत परिवार व्यवस्था में संरचनात्मक तथा कार्यात्मक दोनों प्रकार के परिवर्तन हुए हैं। फलस्वरूप भारत की संयुक्त परिवार व्यवस्था कई कारणों से बाधित हुई है। अंग्रेजों के आगमन से उनके साथ लाए गए नए आर्थिक संगठनों, विचारधाराओं तथा प्रशासनिक प्रणालियों के कारण सांस्कृतिक स्वरूप में परिवर्तन अवश्यंभावी था।जिसके कारण भारत में सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक परिवेशों मे तेजी से परिवर्तन होने लगा।एकल परिवारों के ल्गारार बढने से पाश्चात्य जीवन शैली ने भी अपनी जगह बना ली लेकिन पूरब वाले ये भूल गये कि उसकी आये दिन तलक और दूसरी शादी की अनिवार्य बुराई भी साथ साथ आना अपरिहार्य है ।
पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के उदय तथा उदारवाद के प्रसार ने संयुक्त परिवार की भावनाओं के समक्ष चुनौती पेश की। पाश्चात्य शिक्षा,पाश्चात्य संस्कृति व सभ्यता, नौकरशाही संगठन का परिपालन करती थी। इन परिवर्तनों ने परंपरागत संयुक्त व्यवस्था को बुरी तरह से प्रभावित किया। आज पश्चिमी जीवन शैली अपनाने के कारण ही जहाँ वास्तविक तलाक की घटनाएं लगातार बढती चिली जा रही हैं वहीं ओल्ड ऐज होम की संस्कृति भी तेजी से पैर पसार रही है।