लिव इन से आगे ‘होबोसेक्सुअलिटी’ का नया दौर

- जे.पी. सिंह
वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ
आधुनिक जीवन शैली में अभी तक हमारा समाज विशेषकर माध्यम वर्ग, लिव इन रिलेशन के बढ़ते क्रेज से परेशान है, भले ही सुप्रीम कोर्ट ने वर्षों पहले इसे ‘वॉक इन, वॉक आउट’ की संज्ञा से नवाजा हो लेकिन अब पश्चिमी जीवन शैली का न्या क्रेज ‘होबोसेक्सुअलिटी’ का ट्रेंडमहानगरों और बड़े शहरों में तेजी से बढ़ रहा है। लिव इन रिलेशन में तो जोड़ों में आपस में भावनात्मक संबंध भी होता है पर ‘होबोसेक्सुअलिटी’ में विशुद्ध रूप से दोनों भागीदारों को एक तरह का सौदा करना पड़ता है। एक को इमोशनल या शारीरिक संतुष्टि मिलती है और दूसरे को आर्थिक या आसरे का फायदा मिलता है।
सामान्य तौर पर हम केवल होमो, लेस्बियन या स्ट्रेट सेक्सुअलिटी के बारे में जानते हैं लेकिन मेडिकल साइंस में इंसान के यौन व्यवहार को अलग वर्गों में बांटा गया है। इसे हम आम बोलचाल में सेक्सुअलिटी कहते हैं। अलग-अलग व्यक्तियों के यौन व्यवहार को अलग-अलग करने के लिए करीब 10 तरह की सेक्सुअलिटी बताई गई है, इनमें Heterosexual, Homosexual या Gay या lesbian, Bisexual, Pansexual, Asexual, Demisexual, Sapiosexual, Polysexual, Graysexual तथा Androgynsexual (हेटेरोसेक्सुअल, समलैंगिक या समलैंगिक या लेस्बियन, उभयलिंगी, पैनसेक्सुअल, अलैंगिक, डेमीसेक्सुअल, सैपियोसेक्सुअल, पॉलीसेक्सुअल, ग्रेसेक्सुअल,तथा एंड्रोगिनसेक्सुअल) शामिल हैं। लेकिन इन सबसे अलग बड़े शहरों,महानगरों में होबोसेक्सुअलिटी का ट्रेंड बढ़ रहा है।
भारत के महानगरों में घरों की कीमतें आसमान छू रही हैं। कई लोगों के लिए अपना घर खरीदना एक अधूरा सपना बन गया है। साथ ही, किराए की दरें तेजी से बढ़ रही हैं। नतीजतन, शहरवासियों के लिए अकेले रहना या छोटे फ्लैट से थोड़े बड़े फ्लैट में जाना मुश्किल होता जा रहा है। शहर की इस आर्थिक तंगी और एकाकी जीवनशैली के बीच, सोशल मीडिया और न्यूज प्लेटफॉर्म पर कुछ नए ट्रेंड तेजी से उभर रहे हैं। इसके साथ ही रिश्तों के मायने भी बदल गए हैं। अब लोग अपनी जरूरतों के हिसाब से रिश्ते बना रहे हैं। ऐसा ही एक रिश्ता है होबोसेक्सुअलिटी (Hobosexuality), जिसकी इन दिनों खूब चर्चा हो रही है।
यह शब्द सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, लेकिन यह एक वास्तविक सामाजिक और आर्थिक व्यवहार का नाम है। क्लिनिकल साइकोलॉजीके विशेषज्ञों का कहना है कि होबोसेक्सुअलिटी दो शब्दों (होबो और सेक्सुअलिटी) से मिलकर बना है। यहां होबो का मतलब है एक ऐसा व्यक्ति जो अस्थायी या आर्थिक रूप से वंचित हो, और सेक्सुअलिटी का मतलब है रोमांटिक या शारीरिक संबंध। आसान शब्दों में, होबोसेक्सुअलिटी का मतलब है किसी के साथ सिर्फ आर्थिक जरूरतों या जिंदगी की जरूरतों के लिए रोमांटिक या फिजिकल रिलेशन बनाना, न कि प्यार या इमोशनल लगाव के लिए। यानी किसी के साथ तब संबंध बनाना जब आपको लगे कि उसके साथ रहने से आपको आसरा मिलेगा और वो खाने-पीने का इंतजाम भी कर देगा या देगी। इसमें दोनों भागीदारों को एक तरह का सौदा करना पड़ता है। एक को इमोशनल या शारीरिक संतुष्टि मिलती है और दूसरे को आर्थिक या आसरे का फायदा मिलता है।
होबोसेक्सुअल एक अपेक्षाकृत नया अमेरिकी स्लैंग शब्द है जो होबो और सेक्सुअल शब्दों का संयोजन है। यह 1970 के दशक के अंत और 1980 के दशक की शुरुआत में डेटिंग संस्कृति में प्रमुखता से तब उभरा जब बेघर लोगों की बढ़ती संख्या ने बार और नाइटक्लब में असुरक्षित सिंगल्स को निशाना बनाना शुरू कर दिया। होबोसेक्सुअल शब्द का हाल ही में फिर से प्रचलन बढ़ा है, जिसका मुख्य कारण टिकटॉक, यूट्यूब और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर कंटेंट क्रिएटर्स द्वारा इस प्रकार के अवसरवादी द्वारा शोषण किए जाने के अपने अनुभव साझा करना है। आज, होबोसेक्सुअल वह व्यक्ति है जो व्यक्तिगत लाभ के लिए रोमांटिक संबंधों में शामिल होता है, और अक्सर ऐसे रिश्ते में दूसरे साथी का शोषण करता है जो परजीवी सहजीवन को दर्शाता है।
होबोसेक्सुअल’ शब्द मूल रूप से पश्चिमी इंटरनेट संस्कृति में उभरा, जिसका इस्तेमाल बोलचाल की भाषा में ऐसे व्यक्ति के लिए किया जाता है जो मुख्यतः आश्रय के लिए डेटिंग करता है। शहरों में रहने का मतलब है महंगी जीवनशैली, घर का अधिक किराया, महंगा खाना और उससे भी ज्यादा ट्रांसपोर्टेशन का खर्चा। ऐसे में आजकल के युवा इस नए रास्ते की ओर बढ़ रहे हैं। हॉस्टल, पीजी या छोटे अपार्टमेंट में रहने वाले युवा अक्सर अपने खर्चे कम करने के लिए ऐसे रिश्ते बनाते हैं। इसके अलावा, सोशल मीडिया और ऐप्स ने भी इस ट्रेंड और भी आसान बना दिया है। इन एप्स के जरिये लोगों को ऐसे साथी आसानी से मिल जाते हैं जो ऐसे रिश्ते बनाने और ऐसा करने में सहज हों।
भारत में बड़े शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु में रहना आसान नहीं है। इन शहरों में किराए के मकानों की कीमत इतनी अधिक है कि आप जो कमाते हैं वह सारा किराए में ही खर्च कर देते हैं। इसके साथ ही एक खास जीवनशैली बनाए रखने का दबाव इस आर्थिक बोझ को और बढ़ा देता है। ऐसे माहौल में, कुछ लोग ऐसा आसान रास्ता अपनाते हैं जो सस्ता और किफायती हो, जिनमें से एक है होबोसेक्सुअलिटी। यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जहां लोग प्यार की आड़ में रहने की जगह पाने के लिए रिश्ते बनाते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो होबोसेक्सुअलिटी एक ऐसा संबंध है जिसमें कोई व्यक्ति सिर्फ रहने की जगह, खाने-पीने या आर्थिक सहारे के लिए किसी और के साथ रोमांटिक या शारीरिक रिश्ते में आता है। इस रिश्ते में भावनात्मक जुड़ाव की बजाय, ज़रूरतों की पूर्ति अहम होती है और इस रिश्ते से बाहर निकलना यूस एंड थ्रो सरीखा आसन होता है।
भारत में, यह ट्रेंड तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। इसके लिए आसमान छूते किराए जिम्मेदार हैं। ऐसा नहीं है कि हम होबोसेक्सुअल लोगों के पक्ष में तर्क दे रहे हैं, लेकिन क्या यह सच नहीं है? मुंबई, दिल्ली और बेंगलुरु जैसे महानगरों में, जहां आवास महंगा है, डेटिंग का चलन तेजी से लेन-देन पर आधारित होता जा रहा है।