
- राघवेंद्र तेलंग
सुपरिचित कवि,लेखक,विज्ञानवेत्ता
प्रभावित विता संग्रह ‘अंश की यात्रा’ में ऐसी नैसर्गिक शब्द रचना
युवा सितार वादक व कवि सरस्वती-चंद्र यानी शशिकांत पाठक वही हैं जिनके बारे में हंसध्वनि कॉलम में विस्तार से कहा जा चुका है। संग्रह के बारे इतना ही कहना है कि-‘अंश की यात्रा’ में सरस्वती-चंद्र की कविताओं की गढ़न और उनका कथन प्रचलित विषयों से नितांत भिन्न है। आज के समय में एक युवा कवि द्वारा अंतर्मन के गंभीर संकेतों की ये अभिव्यक्तियां चौंकाती हैं और भविष्य के प्रति आश्वस्त भी करती हैं।
हिंदी पट्टी के इतर क्षेत्रों से आए लोग जब लेखन के क्षेत्र आते हैं तब वे व्यवहार की भाषा के नए किस्म की शब्दावली से परिचित करवाते हैं। संग्रह में ‘सब कुछ’ जैसी कई अन्य कविताओं में सरल शब्दों में कही गई बात सहज ही आकर्षित करती है। इन दो ही शब्दों के इर्द-गिर्द बुनी कविता में मनुष्य और प्रकृति के परस्पर संबंधों को परखने का सूत्र पकड़ाती है। ऐसे ही एक कविता में मुंबई के ऑटो चालक के बहाने वे डिमांड और सप्लाई के आर्थिक सूत्रों के मानस पक्षों को समझाया गया है। संगीत के आकाशिक वितान का साधक जब अपनी कविता में अंधेरों को चैतन्य का जनक बताते हुए कृतज्ञता ज्ञापित करता है तब ऐसे लगता है जैसे पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावश्यियते जैसे मंत्र प्रतिध्वनित होते हैं।
सरस्वती-चंद्र के इस पहले संग्रह ‘अंश की यात्रा’ की कविताएं सामयिक प्रश्नों की पड़ताल करते हुए विषमताओं को उजागर करती हैं और अन्याय के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत करती हैं। देश काल को जानने की सतत जिज्ञासा इनमें दिखाई पड़ती है। इस काव्य यात्रा में कवि सूर्य को सागर में डूबते, पहाड़ों के पीछे से चढ़ते, बादलों के बीच झांकते और चांद के पीछे छुपते देखता है,पर बात वहां गहरी हो जाती है जब वह उसे मन की आंखों से अपने भीतर ही जागते देखता है।
संग्रह पढ़ चुकने के बाद यह विचार सायास जगता है कि जीवन को संपूर्णता से स्वीकार किए जाते ही तत्वमसि का रहस्य जानना संभव हो जाता है,विचार पनपाने की यह कला सरस्वती-चंद्र को अनूठा कवि बनाती है। कविता को आत्मा की सहचरी मानने वाले एक अत्यंत प्रतिष्ठित साहित्यकार व कवि प्रोफेसर अनिल सिंह ‘सत्यप्रिय’ जो कि रचना और आलोचना की सम्पूरकता में विश्वास करते हैं, ने मुझे अवगत कराया कि एक वरिष्ठ साहित्यकार व चिंतक ऋचा सिंह राजावत ने उनके यानी सत्यप्रिय जी की रचनाओं के संदर्भ में समसामयिक टिप्पणी करते हुए बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है, जिसका उल्लेख नए कवियों के लिए किया जाना बहुत आवश्यक है। वह बात यह है कि इस लौह समय के उपभोक्तावादी एवं कुटिल वैचारिकतावादी प्रवाह में उनकी साहित्यिक चिंता और कलात्मक सौन्दर्य जीवन की समग्रता और समन्वय के हिमायती बन पड़े हैं। यह जरूर है कि समकालीन कला-साहित्य विविध विचारधाराओं की चपेट में हैं, फलतः अधिकांश कलाकार-साहित्यकार किसी न किसी विचारधारा के विशेष आग्रही होने के कारण एकांगी हो गये हैं। इस वैचारिक एकांगीपन और उसकी आत्ममुग्ध पक्षधरता ने नैसर्गिक रचनात्मक साहित्यिक जीवन का तानाबाना बिगाड़ दिया है, इससे लोक जीवन में शब्द के संगीत की रसधारा जीवन से तेजी से विलुप्त होती जा रही है।

इस कमी को ध्यान में लेते हुए सरस्वती-चंद्र ने अपने कविता संग्रह ‘अंश की यात्रा’ में ऐसी नैसर्गिक शब्द रचना लेकर सामने आए हैं कि एक मद्धिम लय की सांगीतिक शब्दावलियां पाठक से अंतर्संवाद करते चलते हुए जाने कब लवण की भांति आनंदरस में घुल जाती हैं पता ही नहीं चलता। रचना प्रक्रिया के बीच अनायास की स्थिति में लेखक के माध्यम से अभिव्यक्त इन शब्दावलियों में अपने स्पिरिट के नाद-अनुनाद को पाठक ध्यान लगाकर ठीक से सुन सकता है। एक भारतीय लेखक की रचना अगर एक लयबद्ध तरंग बनकर पाठक के भीतर उतरती है तो इसे लेखक की सहजता और सादगी का सौंदर्य कहना अधिक उचित होगा, और आगे बढ़कर इससे कुछ अधिक कहें तो एक तरह से ऐसा होना एक चमत्कार भी है। ध्यान में उतर सकने वाले ऐसे सत्यप्रिय लेखक आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता हैं।
यह बहुत अच्छी और भली-सी लगने वाली बात है कि अपनी कलम से आत्मा की अभिव्यक्ति को दर्ज करने में विश्वास रखने वाले सरस्वती-चंद्र अर्थात शशिकांत पाठक की मेधा विशुद्ध भारतीय सुगंध के चैतन्याकाश में पुष्पित-पल्लवित हुई है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दैदीप्यमान आकाश में यशस्वी मेवाती घराने का प्रतिनिधित्व करने वाले शशिकांत पाठक का समकालीन कला, संगीत और साहित्य के केनवास पर अंकित विविधता के रंग का अपना ही एक अलग सौंदर्य है। एक से अधिक आयामों से आते सामूहिक स्वरों की महत्ता का इस जीवन राग में स्वीकार कॉस्मिक ऑर्केस्ट्रा को साकार करने के लिए बहुत आवश्यक भी है।
विगत दिनों जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर आईआईटी मुंबई के सभागार में इस अनूठे कवि ‘सरस्वती-चंद्र’ की सांगीतिक दस्तक की पुस्तक ‘अंश की यात्रा’ (कविता संग्रह) का विमोचन करने का सुअवसर मुझे देने के लिए मैं मेवाती गुरूकुल ऑफ सितार के शिरोमणि उस्ताद सिराज खान व उस्ताद असद खान साहब का ह्रदय से आभारी हूं। कवि की इस पहली कृति को प्रख्यात लेखिका एवं भोपाल के वनमाली सृजन पीठ की अध्यक्ष डॉ. वीणा सिन्हा का आशीर्वाद प्राप्त है, ब्लर्ब उन्होंने ही लिखा है। आगे की यशस्वी यात्रा के लिए कवि को हम सबकी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं।
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