आशु चौधरी
वृषभानु की लली देख
ऐसो चढ्यो राग-रंग
मोरपंख धारी यों
टेढ़े मुसक्यावत हैं
ललिता-विशाखा कूं दै
चकमा भये यों चम्पत
अकेली कर श्यामा जू के
चरण पखरावत हैं
असीम लीला करत श्याम
भनक न नैकूं दैके
रसिकन कूं बीच ठौर
टेढो नचावत हैं
राखत हैं दूरी पर
दूर राखत रागन ते
बाबरौ बनाइ कै
बैरागी कहलावत हैं।
भावार्थ:
-वृषभानु की लाली हमारी प्रिय श्री श्यामा जू को देख कर श्री श्याम पर ऐसा प्रेम का रंग चढ़ता है कि उन्हें देख कर मोरपंख सर पर धरने वाले हमारे श्री लाल जू टेढ़े-टेढ़े मुस्कुराते हैं।
-श्री ललिता,श्री विशाखा आदि सखियों ( जो सदैव श्री श्यामा जू के साथ रहतीं हैं , क्षण भर को भी उन्हें अपनी दृष्टि से दूर नहीं करतीं ) को चकमा दे श्री लाल जू श्री लाडली जू को एकांत में ले जा उनके चरण पखारने का आनंद लेते हैं।
-श्री लाल जू समझ की सीमा से परे लीला करते हैं, जिसकी तनिक सी भी भनक तक न लगने देते हैं और रसिकों ( श्री श्यामा-श्याम के रसानुरागियों ) को बीच यात्रा में ही टेढ़ा नाच नचाते हैं।
रसिकों से दूर रहने का सब जतन करते लाल जी उन पर ही कृपा कर उन्हें रागों से दूर रखते हैं और उन्हें ही पागल बना कर स्वयं बैरागी कहलाते हैं।