पद्मश्री शायर डॉ. बशीर बद्र साहब और उनके परिजन से एक मुलाकात
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अशोक मनवानी, साहित्यकार एवं रंगकर्मी
बीते सप्ताह जाने-माने शायर पद्म श्री डॉ. बशीर बद्र साहब के 89 वें जन्म दिवस पर उनके निवास जाने का अवसर मिला। चुनिंदा लोग ही उनसे मिल पाए होंगे इस दिन। शायद उनका परिवार इसके लिए सहमत न होता लेकिन साहब प्रशंसक तो जिद्दी होते हैं। हम भी ऐसे ही हैं। और जब मुलाकात हुई तो क्या ही मुलाकात हुई। स्वयं बद्र साहब के शब्दों में कहें तो ‘वो चेहरा किताबी रहा सामने, बड़ी खूबसूरत पढ़ाई हुई…’ यहां पढ़ाई को मुलाकात कहने का मन कर रहा है।
उर्दू के विद्वान और मशहूर उद्घोषक और कमेंटेटर उर्दू अकादमी के पूर्व निदेशक हिसामउद्दीन फारुकी के साथ हमने भोपाल की रेहाना कॉलोनी में पद्मश्री डॉ. बशीर बद्र साहब से तीन दिन पहले मुलाकात की। बीते सालों में मुंबई में जानी मानी अभिनेत्री वहीदा रहमान, साधना शिवदासानी, दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर, राजनेता लालकृष्ण आडवाणी से इन्हीं तरीकों से समय लेकर मिलने का मेरा अनुभव काम आया है। ख्यात लोगों के रिश्तेदार इस काम में अक्सर मददगार होते हैं और ऐसे टोटके उपयोगी हो जाते हैं। डॉ. राहत बद्र जी के रिश्ते के भाई जनसंपर्क विभाग के सेवानिवृत संयुक्त संचालक ताहिर अली जी के माध्यम से भेंट हुई। इस मौके पर मेरे दफ्तर के सहयोगी सिद्दीक अहमद और विजय शर्मा जी भी डॉ. बद्र साहब के निवास पर साथ चले।
डिमेंशिया की तकलीफ झेल रहे डॉ. बशीर बद्र साहब और उनके परिवार के सदस्यों के साथ उनके निवास पहुंचकर मुलाकात में डॉ. साहब की शेरो -शायरी की परंपरा, उनके सुदीर्घ साहित्य सृजन से जुड़ी बातें हुईं। रेहाना कालोनी स्थित उनके निवास में मुलाकात भी पारिवारिक स्तर की थी। बशीर बद्र की धर्मपत्नी डॉ. राहत अभी भी ऑल सेंटस स्कूल में अपनी सेवाएं दे रही हैं। उनका इकलौता बेटा तैयब एक प्राइवेट कंपनी में जॉब कर रहा है।
डॉ. राहत जी ने हमें बैठक कक्ष में खुश असलूबी के साथ बैठाया गया था। थोड़ी देर बातचीत होती रही। डॉ. राहत बद्र ने बशीर बद्र साहब के पास जाकर उनकी तबियत और हालात का जायजा लिया। फिर उनसे मुलाकात के लिए बुलाया। बशीर ब्रद साहब एक बड़े हालनुमा कमरे में बड़े बिस्तर में लेटे थे। डॉ. राहत ने उन्हें बताया कि उनसे कुछ लोग मिलने आए हैं। बद्र साहब कुछ बोल रहे थे लेकिन साफ समझ में नहीं आ रहा था। लेकिन इतना जरूर एहसास हुआ कि उनके दिमाग में उर्दू और शायरी से जुड़ी यादें और बातें चल रही हैं। वे उन्हीं में खोए हुए हैं।
डॉ. बशीर बद्र की धर्मपत्नी डॉ. राहत बद्र और बेटे तैयब से मिलकर लगा कि यह एक शालीन, सुसंस्कृत, उच्च शिक्षित परिवार है। डॉ. बशीर बद्र की समृद्ध विरासत उनकी जीवन संगिनी डॉ. राहत बद्र बखूबी संभाल रही हैं। इतनी तकलीफ के बावजूद डॉ. बशीर बद्र को देख कर उनके चेहरे पर अभी भी वही मुस्कान झलक रही थी जो उनके मुशायरे में शेर पढ़ते वक्त झलकती थी। कहते हैं, ‘‘वह शमा क्या बुझेगी जिसे रोशन खुदा करे’’ ऐसा ही कुछ बद्र साहब के साथ हुआ है।
मुलाकात के दौरान डॉ. बशीर ब्रद की धर्मपत्नी डॉ. राहत बद्र ने बताया कि ब्रद साहब की शायरी के कद्रदान और चाहने वाले उनसे मुलाकात करने अक्सर आ जाते हैं। हाल ही में भोपाल में एक शादी में शरीक होने लखनऊ के कुछ लोगों को जब बशीर बद्र साहब के भोपाल में निवास का पता चला तो वे एक बड़े टेम्पो में अचानक उनके घर आ पहुंचे। करीब 15-20 लोग जिनमें महिलाएं और पुरूष दोनों ही इसमें शामिल थे। डॉ. राहत ने बताया कि उनका इतना प्रेम देखकर न चाहते हुए भी उनसे मुलाकात करवाना पड़ी। लोगों की चाहत बशीर बद्र साहब को बस एक नजर भर देखने की रहती है।
कोविड का खतरनाक दौर भी इस बीच आया। बड़ी फिक्र के साथ परिवार ने डॉ. बशीर बद्र साहब की बखूबी देखभाल और सुरक्षा की। आज भी उनकी दिनचर्या का ध्यान परिवार की प्राथमिकता है। परिवार से मुलाकात और बातों में ज्ञात हुआ कि कोविड के दौर में किस तरह इंफेक्शन से बचने के लिए परिवार ने सावधानी बरती। कोविड काल में विद्यार्थियों के साथ ही अदब से जुड़े लोग मुलाकात के लिए आते थे। इसके लिए मजबूर होकर उन्हें एक कांच के कमरे से अपने प्रिय शायर से बात करने और दीदार करने का इंतजाम करना पड़ा था।
डॉ. राहत बद्र ने बताया कि बशीर बद्र साहब अपने आपको अयोध्या से जुड़ा हुआ बताते थे क्योंकि बचपन उनका फैजाबाद में ही गुजरा। वे अयोध्या को बहुत शिद्दत से याद करते रहे हैं।
पद्मश्री बशीर बद्र को देखकर इस बात का इत्मीनान हुआ कि आज भी हिंदुस्तान में उर्दू की एक अजीम हस्ती मौजूद है। इस बात का भी फख्र हुआ कि उनका परिवार इस हस्ती की खिदमत उसी तरह कर रहा है जिसके वे हकदार हैं। हालांकि मुलाकात एक तरफा ही थी। डॉ. साहब अपनी ही दुनिया में खोए हुए थे। डॉ. बशीर बद्र से और उनके परिवार से की गई हमारी यह मुलाकात एक यादगार रहेगी।
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डॉ. बद्र साहब के कुछ यादगार शेर
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता,
किसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता।।
बड़े लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समुंदर से मिला दरिया नहीं रहता।।
मुखालेफत से ही शख्सियत सवंरती है
मैं दुश्मनों का बड़ा अहतराम करता हूं।।
मैं अपनी जेब में अपना पता नहीं रखता
सफर में सिर्फ यही एक अहतमाम करता हूं।।
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
इतना मत चाहो उसे वह बेवफा हो जाएगा।।
तुम्हें कोई जरूरी चाहतों से देखेगा
मगर वह आंखें हमारी कहां से लाएगा।।
यहां लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं
मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे।।
मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी।।
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो।।
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में।।
मोहब्बत एक ख़ुशबू है हमेशा साथ चलती है
कोई इंसान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता।।
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों।।
कंटेंट सहयोग: सिद्दीक अहमद खां