संजीव शर्मा, सेहत और आहार के मुद्दों पर स्वतंत्र लेखक
चिकित्सा विज्ञान ने अनेक ऐसी खोजें की हैं जिसने हमारे जीवन को पूरी तरह बदल दिया है और हमें बहुत सी ऐसी समस्याओं से छुटकारा दिला दिया है जिनसे मुक्ति पाने की हम सोच भी नहीं सकते थे। इन्हीं खोजों में से एक थी विटामिन बी-12 या कोबालमिन की खोज, जो एक खास किस्म के एनीमिया ‘परनिसियस एनीमिया’ का इलाज खोजने के दौरान हुई थी। जैसे-जैसे शोध आगे बढ़े यह समझ आने लगा कि बी-12 की भूमिका सिर्फ इस एनीमिया के उपचार तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह मानव शरीर में अनेक जरूरी क्रियाओं, अंग-तंत्रों जैसे नर्वस सिस्टम आदि के लिए भी बहुत जरूरी है।
विटामिन बी-12 की खोज
विटामिन बी-12 की खोज का श्रेय अमेरिकी वैज्ञानिक मिनोटा और मरफ़ी को जाता है, जिनको 1934 में नोबेल पुरस्कार भी मिला था। प्रयोगशाला में बी-12 बनाने में सफलता 1973 में हासिल हुई थी, जिसमें अनेक देशों के वैज्ञानिकों के प्रयास शामिल थे और उनमें सबसे महत्वपूर्ण थे हावर्ड यूनिवर्सिटी के आरबी वुडवर्ड, उनकी टीम और स्विटज़रलैंड के इशनमोर के साथ जुड़ा वैज्ञानिकों का समूह। यह खोज एक वरदान बन कर आयी।
शरीर में बी-12 का महत्व
यह विटामिन हमारी हमारी नर्व या तंत्रिकाओं को स्वस्थ रखने के लिए बहुत जरूरी है। लाल रक्त कणिकाओं या रेड ब्लड सेल के निर्माण में भी इसका योगदान होता है। हड्डियों को स्वस्थ रखने ऑस्टिओपोरोसिस को रोकने में भी इसकी भूमिका है। इसकी कमी से मस्तिष्क और मन से संबंधित समस्याएं भी होने लगती हैं जैसे डिप्रेशन आदि। जोड़ों को ठीक रखने और दर्द को दूर रखने में भी इसकी भूमिका है। कुल मिलाकर यह एक ऐसा विटामिन है जिसकी बहुत कम मात्रा की जरूरत होती है लेकिन उसका शरीर में उपयोग बहुत ज्यादा होता है।
किसे बी-12 की कमी ज्यादा होती है
बी-12 की कमी किसी को भी हो सकती हैं क्योंकि विकास और प्रगति के साथ स्वस्थ जीवाणुओं की संख्या कम होती जा रही है और भोजन को बहुत ज्यादा प्रोसेस किया जाता है जिससे आहार में इसकी मात्रा कम होती जा रही है। डायबिटीज, ऑस्टिओपोरोसिस, ऑस्टिमाइलायटिस, आर्थ्राइटिस, इरिटेटिव बावल सिंड़्रोम के मरीज़ों में इसकी कमी अक्सर देखी जाती है।
बी-12 के स्रोत
बी-12 शाकाहारी भोजन में लगभग न के बराबर होता है। गेहूं घास, फरमेंटेड भोजन आदि में ही इसकी कुछ मात्रा होती है। सोशल मीडिया पर चलने वाले तरह-तरह के दावे जिनमें किसी खास तरह के शाकाहारी भोजन से इसकी पूर्ति करने की सलाह दी जा सकती है वह निराधार होते हैं इसलिए उनसे बच कर रहने की जरूरत है। मांस, मछली, डेरी आदि में यह पाया जाता है। लेकिन फिर भी इसकी कमी शाकाहारियों और मांसाहारियों दोनों में देखी जाती है। वास्तव में बड़ी आतों के बैक्टीरिया इसका निर्माण करते हैं लेकिन हमारा शरीर वहां से इसे ग्रहण नहीं कर पाता है।
बी-12 की जांच
बी-12 की कमी का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है। खून में इसकी मात्रा 200 पिकोग्राम से लेकर 900 पिकोग्राम तक प्रति मिलीलीटर होनी चाहिए। स्वस्थ रहने के लिए 400 पिकोग्राम प्रति मिलीलीटर की मात्रा आदर्श होती है।
बी-12 के सप्लिमेंट
यदि एक बार बी-12 की मात्रा कम हो जाए तो भोजन से उसकी पूर्ति करना लगभग असंभव हो जाता है और हमको इसके सप्लीमेंट लेने पड़ते हैं। इसके सप्लीमेंट टैबलेट, इंजेक्शन और नेजल स्प्रे के रूप में आते हैं। हल्की-फ़ुल्की कमी या मेंटेनेंस डोज़ का काम टेबलेट से हो जाता है लेकिन ज्यादा कमी होने पर इंजेक्शन या नेजल स्प्रे ही लेना पड़ता है। कुछ लोगों को इसकी डोज से घबराहट, बेचैनी और सिर में हल्कापन महसूस होता है, लेकिन अधिकांश मामलों में सामान्य होता है और अपने आप ठीक हो जाता है। इसकी टॉक्सिसिटी या विषाक्तता आम तौर पर कम ही होती है लेकिन फिर भी इसका सेवन डॉक्टर की सलाह से ही करना चाहिए।
इसकी कमी बहुत आम है, इसलिए सभी को अपने शरीर में इसकी मात्रा का ध्यान रखना चाहिए और कभी भी इसकी कमी नहीं होने देने चाहिए। जो पूर्ण शाकाहारी हैं उनको तो हमेशा ही विशेषज्ञ की सलाह से इसके सप्लीमेंट की नियमित खुराक लेते रहना चाहिए। इसे शाकाहारी ढंग से बनाया जाता है इसलिए वीगन या पूर्ण शाकाहारी भी इसे ले सकते हैं।
नोट: यह आलेख सेहत के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए है। किसी भी प्रकार के सप्लीमेंट्स का उपयोग चिकित्सकीय सलाह से ही किया जाना चाहिए।