
- आशीष दशोत्तर
साहित्यकार एवं स्तंभकार
अपना ही लौटकर आता है अपने तक
बारिश शराब-ए-अर्श है ये सोच कर ‘अदम’
बारिश के सब हुरूफ़ को उल्टा के पी गया।
शाइरी में इश्को-मुहब्बत, हुस्नो-जमाल, हिज्रो-विसाल का समावेश कर अपने वक़्त के मक़बूलतरीन शाइरों में शुमार होते रहे बेहतरीन शाइर अब्दुल हमीद ‘अदम’ का यह शेर बहुत सलीस लहजे में कहा गया मानीखेज़ शेर है। इसमें लफ़्ज़ों का उलटफेर भी है, पहेली भी है और गहराई भी। दिखने में बहुत सादा यह शेर काफी गहरी पड़ताल की ज़रूरत बयां करता है। लफ़्ज़ी मआनी पर ग़ौर करें तो यहां बारिश को अर्श से आने वाली शराब की बूंदें मानकर पीने की बात कही गई है। ज़ाहिर सी बात है कि बारिश ऊपर वाले की नेमत है जो ज़मीन को शादाब करती है।
यहां एक पहेली भी नज़र आती है जो बारिश के हर्फ़ को उल्टाने की बात कह रही है। बारिश लफ्ज़ जिन तीन हर्फ़ों से मिलकर बना है। उन्हें अगर उल्टा दिया जाए तो वह शराब लफ्ज़ के हर्फ़ों में तब्दील हो जाता है। इस लिहाज़ से बारिश और शराब को हर्फ़ों के उलटफेर के रूप में समझा जा सकता है, परंतु यहां बात इतनी ही सीमित नहीं है। यह बहुत गहराई से इसके भीतर जाने की चाहत रखती है।
अर्श इस बात के मूल में है। शेर में भी अर्श को केंद्र बनाया गया है। अर्श यानी आसमान या सूफ़ीवाद के नज़रिए से इसे समझें तो अर्श यानी एक जिस्म जो समस्त अज्साम पर फैला हुआ है। अर्श नाम रखा गया है, ऊँचाई के कारण या फ़रिश्तों के साथ उपमा दिए जाने के कारण। अर्श जिसे फ़रिश्ते उठाए हुए हैं और दैवीय आदेश के समय पूर्वनियति या नियति संबंधी आदेशों का अवतरण उसी जगह से होता है। यानी ईश्वरीय स्थान जहां से नेमत की बूंदें ज़मीन को शादाब करने के लिए भेजी जाती हैं।
शाइर कहता है कि बारिश सिर्फ़ आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाए बादलों का न्यौछावर होना नहीं है। बारिश सिर्फ़ आसमान से आने वाली बूंदें ही नहीं हैं , ये बादलों से बहुत ऊपर स्थित अर्श से आने वाली पवित्र बूंदें हैं। यह ऐसी शराब है, जो इस पूरी ज़मीन को मदहोश करती है। उसे अपने आप में खोने पर मजबूर करती है। उसे बेहतरीन बनाती है। इस शराब को पीने वाला और कोई नहीं ज़मीन का वह हर एक ज़र्रा है जो इसे अर्श से आने वाली शराब के रूप में देखता है और पी लेता है। इसके हुरूफ़ को उल्टा कर पीने में तसव्वुफ़ और साइंस का मेल है। विज्ञान के नज़रिए से देखें तो ज़मीन का पानी जलवायु चक्र के कारण आसमान तक पहुंचता है। आसमान से ये बूंदे ही बारिश की शक्ल में फिर से ज़मीन पर आती है। शाइर यहां कहना चाहता है कि जो बूंदें ज़मीन से आसमान तक पहुंची हैं ,वे फिर लौटकर आसमान से ज़मीन पर आई हैं। आसमान से आने वाली बून्दों को जब उल्टा गया तो वे फिर से ज़मीन की बूंदें बन गईं , यानी जो बूंदें ज़मीन से चली थीं फिर से ज़मीन में जज़्ब हो गई। ज़मीन अपनी ही बून्दों से फिर हरी-भरी हो गईं। तसव्वुफ़ और विज्ञान का बहुत सुंदर मेल शेर में दिखाई देता है।
यहां बारिश और शराब तो मेटाफर की तरह इस्तेमाल किए गए हैं। दरअसल बारिश यहां बारिश नहीं है और शराब यहां शराब नहीं। ये मेटाफर कई सारे संकेतों की तरफ इशारा कर रहे हैं। इस ज़ाविए से शेर को समझें तो शेर यह भी कहता है कि जो कुछ हम अपनी ज़िन्दगी में कर रहे हैं वही सब-कुछ वाष्प बूंदों की तरह अर्श तक पहुंच रहा है। अर्श से पुनः लौटकर वही चीज़ हम तक पहुंच रही है। अब जो चीज़ हम तक पहुंच रही है, उसे हम क्यों स्वीकार नहीं करते हैं? हम तक पहुंचने वाली हर चीज़ को अगर हम उलट कर देखें तो वह हमें अपनी ही चीज़ नज़र आएगी। हम अगर अपनी ज़िन्दगी में कुछ बुरा काम कर रहे हैं तो वह लौटकर हम तक ही आना है। अगर हम किसी को तकलीफ़ दे रहे हैं तो हमें भी तकलीफ़ मिलना है। जब कभी हमें कोई तकलीफ़ मिले तो हम उसे उलट कर देखें, तब समझ में आएगा कि यह ऊपर वाले की कोई सज़ा नहीं है, बल्कि वही है जो हमने अपनी ज़िन्दगी में किया था।
शाइर यहां कहना भी यही चाहता है कि हमें जो कुछ मिल रहा है, उसे ऊपर वाले की नेमत समझकर स्वीकार करें। और यह मानें कि हमने अपनी ज़िंदगी में ऐसा ही कुछ किया होगा, जो हमें आज मिल रहा है। अभी जो कुछ हमें मिल रहा है उसे आईने में परखने की कोशिश करें, तब यह समझ आएगा कि यह हूबहू वही है जो हमने अपने जीवन में कभी किया था। जैसा बीज होते हैं, वैसा ही फल मिलता है। यह प्रकृति का भी नियम है। प्रकृति के नियम को कोई उलट नहीं सकता। बजाय इसके हमें प्रकृति से जो कुछ मिल रहा है उसे स्वयं उलट कर देखना होगा। ऐसा करने पर हमें महसूस होगा कि अपना किया हुआ ही फिर से हमें मिल रहा है। जब हम इन हुरूफ़ों को उलट कर देखेंगे तो पाएंगे कि हमें जो कुछ मिला वह ठीक मिला है। जब ठीक मिला है तो उसे किसी ज़हर की तरह नहीं बल्कि शराब की तरह पीना चाहिए। ताकि उसे पीकर एक ऐसा नशा तारी हो जो हमें अपनी हक़ीक़त से रूबरू करा सके।
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