पंकज शुक्ला, पत्रकार-स्तंभकार
दुनिया के सबसे अमीर उद्योगपतियों में शुमार आदमी मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी इन दिनों चर्चा में हैं। अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट का विवाह का उत्सव गुजरात के जामनगर में शुरू हो गया है। इस ग्रेंड सेलिब्रेशन के पहले अंबानी परिवार के छोटे बेटे ने एक ‘बड़े काम की शुरुआत की है। यह काम है, वनतारा नामक वन्यजीव बचाव और पुनर्वास कार्यक्रम। खुद अनंत अंबानी ने अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट के बारे में बताया है। वनतारा का अर्थ है जंगल का तारा। यह विशेष रूप से कोई चिड़ियाघर या पशु अस्पताल नहीं है, बल्कि भारत और विदेशों में घायल, खतरे में पड़े जानवरों के बचाव, उपचार, देखभाल और पुनर्वास का कार्यक्रम है।
वनतारा में हाथियों के लिए विशेष शेल्टर बनाए गए हैं। हाथियों के नहाने के लिए जलाशय हैं। जकूजी और मसाज जैसी सुविधाएं भी हैं। 200 हाथियों का ख्याल रखने के लिए 500 से ज्यादा प्रशिक्षित कर्मचारी और महावत हैं। एक्स-रे मशीन, लेजर मशीन, हाइड्रोलिक पुली और क्रेन, हाइड्रोलिक सर्जिकल टेबल और हाइपरबेरिक ऑक्सीजन चेंबर और हाथियों के उपचार का तमाम आधुनिक सुविधाओं से लैस एक अस्पताल भी सेंटर में खोला गया है। अन्य जानवारों के लिए 650 एकड़ में एक पुनर्वास सेंटर और 1 लाख वर्गफीट का अस्पताल भी यहां बनाया गया है।
अनंत अंबानी ने मीडिया को बताया है कि उनके मन में बचपन से ही जानवरों के प्रति प्रेम रहा और वो उनके लिए कुछ करना चाहते थे। वंतारा में दूसरे जानवरों की देखभाल की जाएगी, खासकर हाथियों पर ज्यादा ध्यान दिया जाएगा। वंतारा ने 200 हाथियों, रेंगने वाले जीवसें और पक्षियों को बचाया है। उन्होंने महावत से हाथियों के संवाद का तरीका भी सीखा है।
रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और रिलायंस फाउंडेशन बोर्ड के निदेशक अनंत अंबानी ने बताया कि उन्होंने बचपन में गर्मी से परेशान एक हाथी को देखा तब से उनकी देखभाल के लिए केंद्र बनाने की इच्छा जागी थी। फिर मां नीता अंबानी और पिता मुकेश अंबानी से प्रेरणा मिली और दादा धीरूभाई अंबानी के स्वप्न शहर जामनगर में वनतारा बन कर तैयार हो गया।
मीडिया और सोशल मीडिया में अनंत अंबानी के इस कार्य की जमकर तारीफ की जा रही है। जिन लोगों ने छह साल पहले रिलायंस के कार्यक्रम में अनंत अंबानी को बोलते हुए सुना थे वे अब उनकी बातों को सुन कर कह रहे हैं कि तब का संरक्षित बालक आज जब वन्यप्राणियों के प्रति अपने प्रेम और वनतारा की बात करता है तो आत्मविश्वास और संवेदना से भरा हुआ प्रतीत होता है।
लोग खुश है कि इतने बड़े परिवार का सदस्य हो कर भी अनंत अंबानी इतने संवेदनशील है! यानी धन के साथ आने वाला घमंड उनमें दिखाई नहीं दे रहा। अहो, भाग्य। सोशल मीडिया अनंत अंबानी के यशोगान से भरा पड़ा है। संवेदना की तारीफ के बीच कुछ मैसेज ऐसे भी दिखाई दे जाएंगे जो साफ एक टीम द्वारा किए जा रहे प्रोजेक्शन का हिस्सा लगेंगे। जैसे यह मैसेज :
जो लोग थोड़े से ही नोटों की गर्मी में उछलने लगते हैं वो ये देख लें… जिनके पास हजारों नहीं लाखों नौकर चाकर हैं वो मुकेश अंबानी अपने छोटे बेटे की प्री वेडिंग की शुरूआत अपने पैतृक गांव चोरवाड़, जामनगर से करते हैं और जय श्री कृष्ण कहते हुए…शुद्ध शाकाहारी भोजन खुद अपने हाथों से परोस रहे हैं।
इन संदेशों के बीच ऐसे भी मैसेज हैं जो कहते हैं कि वन्यप्राणियों के लिए काम करना अच्छा लेकिन एक जामनगर जाकर देख लीजिए… यहां संकेत में काफी कुछ गया है।
समर्थ द्वारा दान की हमारे यहां लंबी परंपरा रही है। दान की बात आती है तो उद्योगपति वॉरेन बफेट, बिल गेट्स आदि का नाम लिया जाता है लेकिन टाटा समूह के संस्थापक जमशेद टाटा दुनिया के सबसे बड़े दानदाता हैं। हुरुन रिपोर्ट और एडेलगिव फाउंडेशन द्वारा तैयार विश्व के 50 दानवीरों की सूची में जमशेदजी को पिछले 100 सालों में दुनिया का सबसे बड़ा दानवीर चुना गया है। उनके द्वारा स्थापित टाटा समूह ने सबसे ज्यादा 102 अरब डॉलर (करीब 75 खरब 70 अरब 53 करोड़ 18 लाख रुपए) का दान दिया है। दानदाताओं की इस सूची में अजीम प्रेमजी का नाम भी है।
आजादी के बाद देश निर्माण के दौर में टाटा-बिड़ला का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता था। उदारीकरण के बाद टाटा-बिड़ला की जगह अब अंबानी और अडानी का नाम लिया जाता है। अंबानी परिवार अपने चैरिटी कार्यक्रमों के लिए जाना जाता है तो अडानी समूह के गौतम अदाणी दो वर्ष पहले अपने जन्मदिन पर 60 हजार करोड़ रुपए दान देते हुए कहा था कि ये राशि समाज सेवा में काम आएगी।
फिर भी जब उपादेयता की बात आती है तो आज भी टाटा-बिड़ला के योगदान के आगे बाकी के कार्य कुछ फीके महसूस होते हैं। इसका एक कारण सीएसआर की व्यवस्था भी है। असल में, सीएसआर यानी कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (Corporate Social Responsibility-CSR) (सामाजिक कार्पोरेट उत्तरदायित्व) को कारण भी सामाजिक कार्यों पर धन खर्च करना इन कंपनियों की मजबूरी है। यूं तो दुनिया में सीएसआर की अवधारणा 1953 में आई थी लेकिन कंपनी अधिनियम, 2013 में संशोधन के बाद अप्रैल 2014 में भारत CSR को अनिवार्य बनाने वाला दुनिया का पहला देश बना। सीएसआर का प्रावधान उन कंपनियों पर लागू होता है, जिनकी नेट वर्थ 500 करोड़ से अधिक हो या कुल कारोबार (टर्नओवर) 1000 करोड़ से अधिक हो या शुद्ध लाभ 5 करोड़ से अधिक हो। सीएसआर के तहत उपरोक्त कंपनियों को अपने पिछले तीन वर्षों के शुद्ध लाभों के औसत का 2 प्रतिशत पैसा गरीबी व भूख खत्म करने, शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने, लिंग समानता व नारी सशक्तीकरण, पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य, प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष या अनुसूचित जाति/जनजाति, महिला, अल्पसंख्यक तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के सामाजिक-आर्थिक विकास में खर्च करना होगा। तथ्य यह है कि अगस्त 2023 में जारी आंकड़े के अनुसार रिलायंस इंडस्ट्रीज का सीएसआर फंड 1271 करोड़ रुपए था। यानी, रिलायंस ने एक हजार दो सौ इकहत्तर करोड़ रुपए सामाजिक कार्यों पर खर्च किए।
लोकसभा ने कंपनी संशोधन विधेयक, 2019 पारित कर नियम बना दिया है कि यदि कोई कंपनी अपने द्वारा निर्धारित कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (CSR) फंड की राशि एक निश्चित अवधि में खर्च नहीं करेगी, तो वह राशि खुदबखुद केंद्र सरकार के एक विशेष खाते (राहत कोष) में जमा हो जाएगी।
इसका मतलब है कि चैरिटी करो या पैसा सरकार को दो। सामान्य बिजनेस बुद्धि कहती है कि अपने पैसे से किसी ओर का या सरकार का नाम करने देने का क्या लाभ? जब सीएसआर में पैसा जाना ही तो क्यों न उसे खुद ही खर्च करें। इसी समझ के आधार पर उद्योग संस्थाएं चैरिटेबल ट्रस्ट बना कर अस्पताल, शिक्षा संस्थान, पर्यावरण संरक्षण सहित कई काम करते हैं। इसतरह, उनका पैसा सरकार के पास भी नहीं जाता और देश भर में महिमा गान भी हो जाता है। यानी, हींग लगे न फिटकरी रंग भी चोखा आए।
शायद यही सीएसआर की अनिवार्यता जैसा एक तार है जो कहीं न कहीं आज के उद्योगपतियों के प्रति आम जनता के मन में वैसी आस्था नहीं जगने देता जैसी पहले के उद्योगपतियों के प्रति हुआ करती थी।
फिर एक तर्क यह भी है कि प्रकृति, समाज, देश से अकूत मात्रा में संसाधन उलीच कर एक तय प्रतिशत पैसा सामाजिक उत्तरदायित्व में खर्च कर देना बहुत बड़ा कार्य नहीं है। इस तरह सामाजिक कार्य करके तो अपनी ब्रांडिंग पर ही खर्च किया जाता है। उद्योगपति नहीं करेंगे तो सरकार उस पैसे को उन्हीं कामों में खर्च करेगी।
जय जयकारे के बीच यह सवाल कम महत्व का नहीं है कि ज्यादा छीन कर न्यूनतम लौटाने की कवायद से क्या क्षति की भरपाई हो जाती है? क्या हर्जाने के रूप में कुछ सहायता देने की रस्म सबकुछ उजाड़ देने का हक दे देती है? साध्य हासिल हो जाने से क्या साधन पर लगे रक्त के निशान कम हो जाते हैं?
वनतारा की बात करते हुए अनंत अंबानी संवेदना से भरे नजर आते हैं। उनकी आंखों में वन्य प्राणियों के लिए कुछ कर जाने के संतोष से उपजी चमक दिखती है। सभी चाहते हैं कि शीर्ष पर बैठे लोगों में यह संवेदनशीलता बनी रहे। अनंत जैसे युवा मन से भावपूर्ण नहीं होते तो संभव है रोटी मांगने पर वे भी ब्रेड क्यों नहीं खा लेते सवाल करते। वे तारीफ के हकदार हैं कि जो काम सरकार को करना चाहिए वे कर रहे हैं। हमारे हिस्से उनकी इतनी संवेदनशीलता तो आई! आगे उन्हें उद्योग का नेतृत्व करना है। वे ‘सिद्धार्थ’ की तरह जीवन के निर्मम सत्य से परिचित होंगे तो शायद संवेदन के स्तर पर ‘बुद्ध’ हो पाएंगे।
फिलहाल यह यशगान का समय है, आप तय कीजिए, कितनी प्रशंसा की जानी चाहिए।