काव्य: कविता
रेखांकन : वत्सल विभोर राय
प्यारे-प्यारे लप्पूजी
लगते बिल्कुल लड्डु जी,
इधर लुढ़कते, उधर लुढ़कते
न्यारे-न्यारे अप्पुजी
मम्मा इनकी मोटी ताजी
पापा है भाई गप्पूजी
किसे पता है बोलो-बोलो
कौन है अपने झप्पूजी?
सुनो-सुनो सब ध्यान से देखो
ये है हमारे हप्पुजी
दादा के हैं खूब दुलारे
दादी के हैं चप्पूजी
मीठे-मीठे मोदक जैसे
सबके प्यारे बप्पूजी।