जे.पी.सिंह, वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ
फोटो: गिरीश शर्मा
जानलेवा है हाइपोथर्मिया या कोल्ड एक्सपोजर
उत्तर भारत कड़ाके की ठंड के चपेट में है। शीतलहर चल रही है। 2025 यानि नए साल की शुरुआत से पड़ रही कड़ाके की ठंड ने लोगों की सेहत बिगाड़ दी है। अस्पतालों में सर्दी, खांसी, बुखार, निमोनिया और सांस संबंधी बीमारियों के मरीजों की भीड़ उमड़ रही है। मधुमेह, अस्थमा, उच्च रक्तचाप और दिल की बीमारी इसमें कोढ़ में खाज सिद्ध हो रही है। अस्पतालों में ठंड से होने वाली इन बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या में 45 फीसदी तक इजाफा हुआ है। नाक और मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश कर रही ठंडी हवा साइनस और टॉन्सिल की समस्या भी बढ़ा रही है। हालात यह हैं कि शुगर और हृदय रोगियों को खास तौर पर सावधान रहने की सलाह दी जा रही है। डॉक्टरी की भाषा में इसे हाइपोथर्मिया कहा जाता है।
हाइपोथर्मिया या कोल्ड एक्सपोजर एक ऐसी स्थिति है जो तब होती है जब शरीर का तापमान 95 डिग्री फॉरेन्हाइट (35 डिग्री सेल्सियस) से नीचे चला जाता है। हाइपोथर्मिया के कारण कई गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है और व्यक्ति की मृत्यु भी हो सकती है। हाइपोथर्मिया विशेषरुप से इसलिए खतरनाक माना जाता है क्योंकि यह व्यक्ति के सोचने की क्षमता को अधिक प्रभावित करता है। मानव शरीर का सामान्य तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है लेकिन हाइपोथर्मिया की स्थिति में शरीर का तापमान 35 डिग्री सेल्यियस से कम हो जाता है। चूंकि हाइपोथर्मिया ठंडे मौसम के संपर्क में आने या ठंडे पानी में नहाने के कारण होता है इसलिए इसे कोल्ड एक्सपोजर कहा जाता है। बॉडी का तापमान कम होने के कारण हृदय, नर्वस सिस्टम और शरीर के अन्य अंग सामान्य रुप से कार्य नहीं कर पाते हैं। इससे हृदय और रेस्पिरेटरी सिस्टम फेल होने का जोखिम रहता है।
अकारण नहीं है कि जाड़े के मौसम में बुजुर्गों की मौत का सिलसिला अचानक बढ़ जाता है। लगातार छींक आना, आंखों से पानी आना,सिर में भारीपन, सीने में जकड़न, शरीर में दर्द, साँस लेने में परेशानी, तेज सांस लेना, थायराइड की कमी, मधुमेह, एनीमिया, हल्का वजन, निर्जलीकरण, ठंड बर्दाश्त न करना, रक्त संचार खराब होना और विटामिन बी-12 की कमी इसका लक्षण हो सकते हैं। हाइपोथर्मिया से पीड़ित व्यक्ति को मानसिक विकार भी हो सकता है। जैसे- डिप्रेशन, चिंता,घबराहट या व्यवहार में बदलाव।
ठंड का मौसम हाइपोथर्मिया का मुख्य कारण है। जब शरीर में अधिक ठंड लगती है तो इसकी गर्माहट तेजी से घटने लगती है जिसके कारण हाइपोथर्मिया होता है। ठंडे पानी में अधिक देर तक तैरने या नहाने से भी शरीर पर हाइपोथर्मिया का प्रभाव पड़ता है। कोल्ड एक्सपोजर के कारण हाइपोथर्मिया होना आम समस्या है। इसके साथ ही कम गर्म कपड़े पहनने, ठंडे वातावरण में रहने के कारण भी हाइपोथर्मिया होता है। कुछ स्वास्थ्य समस्याओं जैसे डायबिटीज, थायराइड, गंभीर ट्रॉमा, ड्रग्स एवं कुछ दवाओं के सेवन के कारण भी हाइपोथर्मिया होता है। मेटाबोलिक डिसऑर्डर के कारण शरीर में कम मात्रा में हीट जनरेट होता है जिसके कारण व्यक्ति को हाइपोथर्मिया हो सकता है। साथ ही पिट्यूटरी और एड्रिनल ग्लैंड के कमजोर होने एवं ठंढे पानी में स्नान करने से भी यह समस्या हो सकती है।
हाइपोथर्मिया के सबसे अधिक शिकार बच्चे या वृद्ध होते हैं। ग्रामीण क्षेत्र में अधिकतर शिशुओं की मृत्यु जन्म लेते ही हो जाती है। ये बच्चों हाइपोथर्मिया के ही शिकार हो जाते हैं। असल में जब तक बच्चा मां के गर्भ में रहता है तब उसका तापमान कुछ ओर रहता है लेकिन पैदा होने के साथ ही वह बाहर के तापमान में आ जाता है, जिसके कारण बच्चा बाहर के तापमान को एकदम नहीं सह पाता। इस समय ही बच्चों को ठंड लगती है और या तो वह निमोनिया का शिकार हो जाता है या थोड़ी ही देर में दम तोड़ देता है।
हाइपोथर्मिया के लक्षणों में मुख्य हैं – धीमी, रुकती आवाज, आलस्य, कदमों में लड़खड़ाहट, हृदयगति और सांस और ब्लड प्रेशर बढ़ना आदि। इससे युवाओं और बुजुर्गों को, खासकर जिनको मधुमेह या इससे जुड़ी बीमारियां हैं या जो मदिरापान या ड्रग का प्रयोग ज्यादा करते हैं, उन्हें होता है। सर्दी में मदिरापान के बाद यदि गर्मी महसूस होती है तो ये एक चेतावनी है कि हाइपोथर्मिया के शिकार हो सकते हैं। जब ठंड लगती है तो हृदय गति बढ़ती है। कई अंगों की मांसपेशियां तापमान बनाये रखने के लिए ऊर्जा उत्सर्जन करती हैं। इस समय रक्त-प्रवाह भी कम हो जाता है जिससे पैरों और हाथों में ठंड महसूस होती है। मदिरा-सेवन करने से हाथ और पैरों की रक्त शिराएं फैलती हैं। यही नहीं, इस बात का भ्रम होता है कि हाथ, पैर गर्म हैं।
अध्ययनों एंव आंकड़ों के अनुसार हाइपोथर्मिया से होने वाली करीब 50 प्रतिशत मृत्यु 64 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों में होती हैं। वृद्धों को कम उम्र के लोगों की तुलना में हाइपोथर्मिया से पीड़ित होने की आशंका सबसे अधिक होती है क्योंकि ठंड से बचाव की शरीर की प्रणाली उम्र बढने के साथ कमजोर होती जाती है। इसके अलावा उम्र बढने के साथ सबक्युटेनियस वसा में कमी आ जाती है और ठंड को महसूस करने की क्षमता भी घट जाती है। इसके अलावा शरीर की ताप नियंत्रण प्रणाली भी कमजोर पड़ जाती है। हाइपोथर्मिया के कारण मरने वालों में अधिकतर लोग मानसिक रोगी, दुर्घटना में घायल लोग, मधुमेह, हाइपोथायराइड, ब्रोंकोनिमोनिया और हृदय रोगी तथा मदिरा का अधिक सेवन करने वाले होते हैं।
हाइपोथर्मिया एक सामान्य डिसॉर्डर है। ये महिला और पुरुष दोनों में सामान प्रभाव डालता है। पूरी दुनिया में लाखों लोग हाइपोथर्मिया से पीड़ित हैं। हाइपोथर्मिया बच्चों, बुजुर्गों, मानसिक रोगों से पीड़ित व्यक्तियों, लंबे समय तक ठंडे तापमान में रहने वाले लोगों, एल्कोहॉल और ड्रग का सेवन करने वाले लोगों और डायबिटीज सहित अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों पर अधिक प्रभाव डालता है।
घर से बाहर निकलते समय सिर, गला और कान पूरी तरह से ढका हुआ रखना चाहिये। घर से बाहर निकलने से पहले अल्पाहार या खाना खाकर जरूर निकलें। अगर काफी थके हों तो आराम कर लें क्योंकि थकान के दौरान खुद को गर्म रख पाना काफी मुश्किल होता है। शरीर को गर्म रखने के लिए कपड़े खूब पहनें। खुद को गर्म रखने के लिए नशीले पेय जैसे कॉफी या चाय का सेवन न करें। फिर भी यदि समस्या ज्यादा हो तो चिकित्सक से तुरंत परामर्श लें।