मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का तर्क: भगवान को चोर कहना गलत, जागरूकता अभियान चलाएंगे

– आरबी त्रिपाठी
लेखक स्तंभकार हैं।
प्रभु श्रीकृष्ण, नाम को लेकर व्यर्थ की भ्रांति क्यों?
योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण दिवस को बीते बमुश्किल एक पखवाड़ा ही बीता कि उन्हें ‘माखन चोर’ पुकारे जाने पर एक गैर-जरूरी विवाद और बहस शुरू करने की कोशिश की जा रही है। दरअसल, भगवान श्रीकृष्ण को किसी जाति विशेष, समुदाय विशेष, धर्म पंथ या संप्रदाय से जोड़े जाने की बजाय उन्हें संपूर्ण ब्रह्मांड, संपूर्ण सृष्टि के स्वामी के परिप्रेक्ष्य में व्यापक दृष्टि से देखा जाना श्रेयस्कर होगा। भक्तजन श्रीकृष्ण को मोर मुकुट बंशीवाले, गोपाल, मुरारी, बांकेबिहारी, राधारमण, राधाकृष्ण, गोपीवल्लभ, माधव, मुकुंद, दामोदर, नटवर, गोविंद इत्यादि नामों से भजते रहे हैं। गर्गाचार्य जी ने श्रीकृष्ण के हजारों नाम का उल्लेख किया था ऐसा श्रीमद्भागवत में वर्णित है। इसी क्रम में माखन चोर का उल्लेख श्रीमद्भागवत और गर्ग संहिता सहित अन्य ग्रंथों में है। इसका आशय यह नहीं समझा जाना चाहिए कि उन्हें कथित रूप से चोर संबोधन किया गया है। बल्कि सर्वविदित है कि श्रीकृष्ण ने बाल्यकाल में अनेक लीलाएं की, इनमें माखन लीला भी श्रद्धाभाव से शामिल है। यह एक भावाभिव्यक्त्ति है जो गोपियों और उनके मध्य का विषय रहा है। इसे संकुचित दृष्टिकोण से कदापि नहीं देखा जाना चाहिए।
श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध में कहा गया है, “ब्रजे बसंतं नवनीत चौरं गोपांगनाणाम दुकूल चौरं, अनेक जन्मारजित पाप चौरं चौराग्रगण्यं पुरुषं नमामि।” गोपी वस्त्र हरण का शास्त्रोक्त तथ्य यह है कि गोपी रूपी आत्मा परब्रह्म प्राप्ति के लिए तरस रही है। श्रीकृष्ण ने इस प्रसंग में गोपियों के आत्मा के आवरण रूपी वस्त्र यानी आवरण को दूर किया क्योंकि ब्रह्म की प्राप्ति ही श्रीकृष्ण प्रादुर्भाव का कारण है। एक अन्य श्लोक में वर्णित है, बंशी विभूषित करान्नवनीर दाभात… तो अब क्या वस्त्रहरण प्रसंग को भी गलत साबित किया जाकर इसके कुछ और अर्थ निकाले जाएंगे?
युगों-युगों से श्रीकृष्ण की लीलाओं, कथा प्रसंगों का वर्णन अनेक विद्वान पंडित, संतजन और श्रीमद्भागवत के प्रवचनकार करते आ रहे हैं। इस पर कभी कोई विवाद नहीं हुआ ना ही सवाल खड़े किए गए। लेकिन अब इतने युगों बाद हाल ही में एक निजी न्यूज चैनल तथा कतिपय अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश सरकार और उसके कतिपय नुमाइंदे माखन चोर के शास्रोक्त् उल्लेख को नकारात्मक मानकर उसे जनमानस से हटाने का कथित संकल्प ले रही है। इसके लिए कोई अभियान भी चलाया जाएगा। स्कूली पाठ्यक्रम, धर्म गुरुओं, कथावाचकों और मीडिया के माध्यम से सनातन को मानने वालों के बीच इस कथित भ्रांति को दूर किया जाएगा। इसके पीछे उद्देश्य कथित मिथ्या धारणा की ओर ध्यान दिलाना भी बताया गया है। यानी अब सरकार बताएगी कि ईश्वर को किस नाम, किस रूप में भजना है?
जिस समय यह समाचार देखने-पढ़ने को मिला उन दिनों हम श्रीमद भागवत के कथावाचक पंडित इंद्रेश उपाध्याय महाराज के मुखारविंद से राजस्थान के रैवासा और जयपुर में आयोजित भागवत कथा तथा भक्तमाल कथा ऑनलाइन सुन रहे थे। उनके द्वारा श्रीकृष्ण भगवान की लीलाओं का भी अदभुत वर्णन किया जाता है जिसमें माखन लीला भी है। हम बीते साल भर से उन्हें फॉलो कर रहे हैं। भारत के विभिन्न स्थानों के साथ विदेशों में भी उनके प्रवचन होते हैं।
शास्त्री रामचंद्र डोंगरे महाराज ने श्रीमद्भागवत रहस्य की रचना की थी। वे भागवत के मर्मज्ञ थे। डोंगरे महाराज दसवें स्कंध के पूर्वार्द्ध में कहते हैं, “एक गोपी ने यशोदा मैया से आकर कहा कि तुम्हारा कन्हैया माखन चोरी करता है। तब यशोदा धीरे से उसके कान में कहती है कि जरा आहिस्ता बोल यह बात अगर फैल गई तो लाला को कन्या कौन देगा। शुकदेव स्वामी बड़े विवेक के कथा में कहते हैं, श्रीकृष्ण चोर है ऐसा कहा नहीं गया किंतु ब्रज की गोपियां यशोदा से माखन चोरी लीला कहती थी। एक गोपी कहती है, उसने सपने में देखा कि कान्हा अपने मित्रों के साथ उसके घर आया, माखन चुराया और मित्रों के बीच लुटा दिया।“ डोंगरे महाराज रचित इस पुस्तक में भागवत के अनेक गूढ़ अर्थ वर्णित है जिनमें भावपूर्ण ढंग से कृष्ण चरित्र पर प्रकाश डाला गया है।
यह भी स्पष्ट है कि शास्त्रों में श्रीकृष्ण को ‘लीला पुरुषोत्तम’ तथा भगवान राम को ‘मर्यादा पुरुषोत्तम’ माना गया है, इसमें कहीं कोई संदेह नहीं है। हमारे पूज्य पिताजी ब्रह्मलीन पंडित प्रेम नारायण त्रिपाठी ने आजीवन श्रीमद्भागवत कथा अनेक स्थानों पर सुनाई। खराब स्वास्थ्य के बावजूद उन्होंने हमारे आग्रह पर “अमर संदेश स्मृति भागवत कथा सार” लिखी जिसके प्रकाशन को तीन दशक से ज्यादा बीत गए हैं। पुस्तक में विशेष रूप से प्रभु श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं सहित गोवर्धन लीला, रास लीला आदि का अदभुत वर्णन है। इसमें माखन चोरी और गूजरी लीला, साकेत प्रस्थान के पूर्व उद्धव को दिया गया ज्ञान भी समाहित है। दरअसल, श्रीकृष्ण की बाल्यावस्था में उनके नटखट रूप का विस्तार से उल्लेख है। गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली के नाखून पर धारण कर ब्रजवासियों की रक्षा की तभी कहा गया है, “नख पर धरकर श्रीगिरिराज नाम गिरधारी पायो है।” कवि रसखान ने कहा है, “ताहि अहीर की छोहरिया छछिया भर छाछ पे नाच नचायो।” इसी प्रकार, “काग के भाग बड़े सजनी हरि हाथ से ले गयो माखन रोटी।” सूरदास जी, मीरा बाई, रसखान सहित अन्य कृष्ण अनुरागियों ने प्रभु के स्वरूप और लीलाओं का सांगोपांग वर्णन किया है। कहां तक कहें, ” नैति नैति कहि वेद पुराणा।”
सो, हमारे विनम्र अभिमत में भगवान श्रीकृष्ण के प्रादुर्भाव से लेकर उनके चरित्र और लीलाओं पर किसी अलग ढंग से विचार करने और किसी लीला विशेष को लेकर नई बहस या विवाद ना तो समीचीन कहा जाएगा और ना ही उचित।
“हरि को भजे सो हरि का होय, जात पात पूछे नहीं कोय…..।”
क्या है मामला
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव का कहना है कि भगवान को ‘चोर’ कहना उचित नहीं है और इस नाम के पीछे की सच्चाई लोगों तक पहुंचानी होगी। उन्होंने ऐलान किया है कि अब “कृष्ण को माखन चोर कहने” की परंपरा को सही मानने के खिलाफ अभियान चलाया जाएगा। सरकार का तर्क है कि मुगलों के समय में षड्यंत्र के तहत भगवान कृष्ण को ‘चोर’ कहकर बदनाम किया गया। सरकार का दावा है कि कृष्ण के घर में हजारों गाय थीं, ऐसे में उन्हें चोरी करने की कोई जरूरत ही नहीं थी। यही नहीं, कई भजनों में भी लिखा है कि “मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो”, यानी कृष्ण खुद चोरी से इनकार करते हैं।
खबरों के अनुसार मोहन सरकार इस अभियान को बड़े स्तर पर चलाने की तैयारी कर रही है। इसके लिए लेख, सोशल मीडिया कैंपेन, मीडिया डिबेट और संगोष्ठियों का सहारा लिया जाएगा। साधु-संतों और कथावाचकों से भी अपील की गई है कि वे अपने प्रवचनों में इस विषय पर चर्चा करें और लोगों को समझाएं कि भगवान कृष्ण को ‘चोर’ कहकर संबोधित करना गलत है।