ज्ञानरंग

काम में आनंद ढूंढना और आनंद से काम करना, जिनका जीवन दर्शन

आज हम बात कर रहे हैं ऑर्गेनिक संवाद को बनाए रखने के लिए गठित प्रोफेशनल्स के समूह संवाद और संपर्क की। इस ग्रुप में के सदस्‍य बंद दरवाज़ों के लोग नहीं हैं बल्कि ये सब फ्रेश हवा की दुनिया के लोग हैं।

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ईश्वर आपकी यात्रा सफल करे… कहने का अर्थ क्या है

सोचकर देखिए! यात्रा में एक बार बगल में किसी की नेविगेटर सीट पर अगर ईश्वर सहयात्री के रूप में बैठ जाए तो फिर उस सफर को तो तब सफल होना ही है।

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जीवन महज एक अनुभव है, हमें जिसे केवल देखना है

रातों में तारों को हमारा निहारना कहीं हमारे होने की दिशा से हमारा बतियाना ही तो नहीं! एक फूल जब झरता है तो अंततः वह अपनी ही जड़ों के सबसे निकट होता है। जड़ें जहां से वह चला था। जड़ों के निकट ही तो बने रहते हैं सोते, झरने, जो अस्तित्व के हर हाल में होने, होते रहने की ओर एकमात्र इशारा हैं।

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अपने में से गुजरकर मिलने वाली नई राह!

विचार हमारे अंदर इस कदर जमे हुए हैं कि इनसे अपने आपको खाली करने का विचार कभी हमें आता ही नहीं। इस तरह कुल मिलाकर हम विचारों के ही पूंजीपति होकर रह जाते हैं। जरा सोचिए विचार के अलावा भला हम और आप आखिर हैं ही क्या!

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भक्ति पर हम जीएन देवी के विचारों से मतभेद व्यक्त करते हैं …

हम समझना चाहते हैं कि यूरोप में जहां ‘रूमानियत’ और ‘आधुनिकता’ की धारणा में धर्म और धार्मिक रूढ़िवाद का कोई स्थान नहीं है, वहीं भारत में ‘रूमानियत’ और ‘आधुनिकता’ के कथित समानार्थी ‘भक्ति’ की धर्म और संप्रदाय तथा उनसे जुड़ी राजनीति में प्रमुख भूमिका क्यों और कैसे हैं ?

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ऐसे देखते हैं जैसे देखा ही नहीं…

आपके भीतर ही बना-बैठा एक स्पीड ब्रेकर है एवरेस्ट जितना ऊंचा, जो आपको कहीं भी न पहुंचने देने के लिए सदा से कटिबद्ध है, और वह है मन।

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खामोशी को जान लिया तो अपना सूरज उगा लेंगे आप

जब आप साइलेंस का चुनाव करते हैं तो आप अपना चुनाव करते हैं। साइलेंस अगर आपकी दिनचर्या की प्राथमिकता बन जाए तो एक दिन आप अपने भीतर अपना एक सूरज उगा सकेंगे, अगर आपको अपनी ही रोशनी की तलाश है तो !

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जिनमें आत्मा नहीं वे चेहरा ही बने रहते हैं

आपके भीतर ही बना-बैठा एक स्पीड ब्रेकर है एवरेस्ट जितना ऊंचा, जो आपको कहीं भी न पहुंचने देने के लिए सदा से कटिबद्ध है, और वह है मन।

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सत्य की खोज क्‍या है? चीजों को वैसे देखना जैसी वे हैं

उपयोगितावादी दृष्टिकोण के चलते चीजों की ही तरह, विचारों को भी हम इकट्ठा करते चले जाते हैं। इस तरह पुरानी होती चली जाती चीजों के साथ-साथ आप पुराने होते जाते हैं। फिर इस भार के नीचे हम दबते चले जाते हैं।

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इस तरह की प्रतीक्षाओं का अंत हो जाता है…

हर बार आप आश्चर्य से सीखते हैं। जो ज्ञान अचानक प्रस्फुटित हो, वही सिखा जाता है। हर अचानक घटना एक आश्चर्य का होना है।

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