अपने में से गुजरकर मिलने वाली नई राह!

विचार हमारे अंदर इस कदर जमे हुए हैं कि इनसे अपने आपको खाली करने का विचार कभी हमें आता ही नहीं। इस तरह कुल मिलाकर हम विचारों के ही पूंजीपति होकर रह जाते हैं। जरा सोचिए विचार के अलावा भला हम और आप आखिर हैं ही क्या!

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भक्ति पर हम जीएन देवी के विचारों से मतभेद व्यक्त करते हैं …

हम समझना चाहते हैं कि यूरोप में जहां ‘रूमानियत’ और ‘आधुनिकता’ की धारणा में धर्म और धार्मिक रूढ़िवाद का कोई स्थान नहीं है, वहीं भारत में ‘रूमानियत’ और ‘आधुनिकता’ के कथित समानार्थी ‘भक्ति’ की धर्म और संप्रदाय तथा उनसे जुड़ी राजनीति में प्रमुख भूमिका क्यों और कैसे हैं ?

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खामोशी को जान लिया तो अपना सूरज उगा लेंगे आप

जब आप साइलेंस का चुनाव करते हैं तो आप अपना चुनाव करते हैं। साइलेंस अगर आपकी दिनचर्या की प्राथमिकता बन जाए तो एक दिन आप अपने भीतर अपना एक सूरज उगा सकेंगे, अगर आपको अपनी ही रोशनी की तलाश है तो !

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सत्य की खोज क्‍या है? चीजों को वैसे देखना जैसी वे हैं

उपयोगितावादी दृष्टिकोण के चलते चीजों की ही तरह, विचारों को भी हम इकट्ठा करते चले जाते हैं। इस तरह पुरानी होती चली जाती चीजों के साथ-साथ आप पुराने होते जाते हैं। फिर इस भार के नीचे हम दबते चले जाते हैं।

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बाबा जान: एक अनकही कथा

उनका ‘अम्मा साहब’ कहलाना भी एक गहरे आध्यात्मिक अर्थ को धारण करता था। उनका अस्तित्व, उस एकता के महासागर में विलीन हो चुका था, जहां न स्त्री थी, न पुरुष, केवल ईश्वर के प्रेम की अनंत धारा थी।

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गोल-गोल रानी,इत्ता-इत्ता पानी, उजाले के खेल की कहानी

बचपन से ही इस खेल को बूझने की तमन्ना थी जिसके बोल हैं-गोल-गोल रानी,इत्ता-इत्ता पानी। आइए आज इस खेल की कहानी को समझते हैं। शरद पूर्णिमा की रात समझते हैं कि गोल का आखिर चक्कर क्या है!

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सबसे जरूरी थी ऐसी घड़ियों की मौत …

ऐसी घड़ियों की मौत सबसे जरूरी थी जिनके बूते चला करती थी घरों की शांत और संतोषप्रद जिंदगी। संस्कृति-समाज-घर के ताने-बाने के टूटने के लिए बस एक घड़ी के लुप्त होने की जरूरत होती है।

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