हेडलाइन

क्या अदृश्य शक्ति के प्रभाव में कोई अपने बच्चों की हत्या कर सकता है!

एक मां ने अपनी बेटियों की हत्या की और अदृश्य प्रभाव का दावा किया। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सजा कम की, मानसिक अस्थिरता को ध्यान में रखते हुए, लेकिन यह विवादास्पद और जटिल है।

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हम एआई से डरते हैं क्योंकि वह मुनष्‍य न हो कर भी निर्णय ले सकता है…

जेन एआई अर्थात् जनरेटिव एआई को एक सभ्यतागत परिवर्तन के हेतु के रूप में देखना सचमुच सिर्फ एक कॉरपोरेट आकलन नहीं है।

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समाचार एजेंसी ने किया एक शब्‍द का गलत अनुवाद और हुआ सर्वनाश

राष्‍ट्र युद्ध की कगार बैठा था। शांति कायम करने के प्रयत्‍न परवान चढ़ रहे थे। मगर दुर्भाग्‍य से समाचार एजेंसी के अनुवादकों ने प्रधानमंत्री के वक्‍तव्‍य में एक शब्‍द का गलत अंग्रेजी अनुवाद कर दिया। इस गलती ने विश्‍व को ऐतिहासिक त्रासदी दे दी। अचरज तो इस पर भी है कि सब कुछ खोने की कगार पर बैठे राष्‍ट्र के नियंताओं ने उस शब्‍द की गलती सुधारने पर ध्‍यान क्‍यों नहीं दिया?

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साथ-साथ चलने चाहिए वैचारिक स्वतंत्रता और जनसंघर्ष

जर्मनी के उदाहरण में भी, जो बुद्धिजीवी नाज़ियों के साथ ‘समझौता’ करते रहे, वे अंततः उसी व्यवस्था के शिकार हुए। इसलिए, वैचारिक स्वतंत्रता और जनसंघर्ष दोनों साथ-साथ चलने चाहिए।

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जब वास्तविकता और कल्पना के बीच अंतर करने में कठिनाई हो

स्किट्ज़ोफ्रीनिया के लगभग 20 प्रतिशत नए मामले 45 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में होते हैं। ये मामले पुरुषों में अधिक होते हैं। बच्चों में स्किट्ज़ोफ्रीनिया दुर्लभ है लेकिन संभव है।

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दक्षिण भारत में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई हर समुदाय में क्‍यों इस विवाह का चलन?

उत्तर भारत में एक ही परिवार में कम शादियां होने का एक कारण गोत्र है। यहां एक जाति में तो शादी हो सकती है लेकिन एक गोत्र में नहीं। यहां के लोग मानते हैं कि एक गोत्र वाले लोगों के पूर्वज भी एक ही होते हैं, लेकिन दक्षिण भारत में गोत्र के आधार पर शादी का ट्रेड नहीं है।

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मेरिट यानी योग्यता: भ्रम या सचाई?

मेरा कहने का अर्थ है कि क्या आपका संस्थान लोगों को नौकरी देते वक्त या आप अपनी टीम चुनते वक्त यह ध्यान में रखते हैं कि उसमें समाज के सभी तबकों-जातियों और वर्गों का उचित प्रतिनिधित्व हो सके?

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टैरिफवाद केवल आर्थिक नीति नहीं, इसे वैचारिक युद्ध की घोषणा समझें

टैरिफवाद अब कोई अर्थनीति नहीं रहा—वह एक घोषित रणनीति है, जो व्यापार को सैनिक युद्धों के स्थान पर रखकर, उसे उन्हीं उद्देश्यों का औजार बना देती है।

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खाली जेबें और आकांक्षी मन

महंगी होती शिक्षा देश के गरीब, वंचित, निम्नमध्यवर्गीय परिवारों की राह को मुश्किल कर रही है। वे अपने बच्चों को पढ़ाना तो चाहते हैं लेकिन शिक्षा का लगातार महंगा होना उनकी राह रोक रहा है।

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अभिव्यक्ति की आजादी सबसे कीमती, इसे दबाया नहीं जा सकता

यह मामला दिखाता है कि हमारे संविधान के अस्तित्व में आने के 75 साल बाद भी राज्य की कानून प्रवर्तन मशीनरी नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकार के बारे में या तो अनभिज्ञ है या इस मौलिक अधिकार की परवाह नहीं करती है।

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