हमने यह कैसा समाज रच डाला है…क्‍यों रच डाला?

आज शिक्षक दिवस है और हमारी बात भी बिना शिक्षा के संदर्भों के पूरी नहीं हो सकती है कि बढ़ती आधुनिकता और भौतिक सुविधाओं के बीच एक मनुष्य के रूप में हम आखिर विकृत क्यों होते जा रहे हैं?

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Mobile Etiquette: यूं खर्च होते हैं, जैसे लूट जाता है कोई …

यह समय सोचने का है कि क्‍या मोबाइल एटिकेट्स की कोई क्‍लास शुरू करनी चाहिए क्‍योंकि पढ़े लिखो से लेकर निरक्षर तक हर व्‍यक्ति को ऐसी क्‍लास की जरूरत है। ऐसी क्‍लास जो यह सिखाए कि सार्वजनिक स्‍थानों पर तेज तेज आवाज में बात करने से क्‍या होता है।

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नहीं चाहिए तुम्‍हारी शुभ कामनाएं, मेरा कोई मित्र नहीं…

कैसा हतभाग है कि उम्र बढ़ रही दिन प्रतिदिन, मगर अब तक कोई विपदा में हाथ बढ़ाने वाला न मिला, न फरिश्‍ता ही आया कोई। न हेठी दिखाता बाल सखा है, न बुद्धिमान का विवेक बढ़ाता मित्र।

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भरोसा करें या नहीं …

अक्‍सर लगता है वह मदद मांग रहा है, 10-20 रुपए देने से क्‍या होगा और थोड़ी ज्‍यादा रकम उसके हवाले कर कसम खाता हूं कि अगली बार धोखा नहीं खाऊंगा।

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प्‍यार एक छाता है, छाता एक प्‍यार है…

हे संसार के पिताओं! अपने असर से बच्‍चों को जितना दूर रख सकें उतना अच्छा होगा। उन्हें अपने आप ही खिलने दें, अपने संस्कारों का अनावश्यक बोझ उनपर न डालें।

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फादर्स डे: बाप रे बाप!

हे संसार के पिताओं! अपने असर से बच्‍चों को जितना दूर रख सकें उतना अच्छा होगा। उन्हें अपने आप ही खिलने दें, अपने संस्कारों का अनावश्यक बोझ उनपर न डालें।

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हर बादल में इंद्रधनुष खोजना चाहिए…

तथाकथित नैतिक, सामाजिक व्यवहार या जीवन-संस्कार, आडंबर-प्रियता व्‍यक्ति की स्वतंत्रता और स्वाधीनता को प्रतिबंधित रखना चाहते हैं। इसलिए एक सहज और सरल प्राकृतिक मुद्दे को अप्राकृतिक बना दिया जाता है।

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बात दिखने में छोटी है, कर के देखिए बड़ा काम होगा

चलिए ना! आज विश्व पर्यावरण दिवस पर करिए एक शुरूआत मेरे संग अपनी धरती और प्रकृति की खिलखिलाहट बचाये रखने के लिये। यकीन मानिये… ज्यादा ना तो एफर्ट्स लगते हैं और ना ही समय! बस राई के दाने जितने प्रयत्न और जागरूक हो जाने भर से ‘राई के पहाड़’ वाले पहाड़ नहीं बल्कि प्रयत्नों के सकारात्मक पहाड़ बना लीजिए। जिनके नीचे दब जाएं देशभर और फिर विश्वभर के एकड़ों में फैले टनों कचरे के ढ़ेर।

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कटते पेड़ और कांक्रीट के बढ़ते जंगल से तपती जिंदगी

शहरों के लगातार फैलने से कांक्रीट के जंगल बनते जा रहे हैं। बेतहाशा निर्माण कार्यों की वजह से जलवायु पर भी अनदेखा असर पड़ रहा है। हर बड़े महानगर में तापमान में अंतर दिखता है। जहां हरियाली ज्यादा है, वहां पर पारा 2-3 डिग्री नीचे रहते हैं, लेकिन जहां कम है, वहां गर्मी ज्यादा है। इसे अर्बन हीट आइलैंड कहते हैं।

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