हर बादल में इंद्रधनुष खोजना चाहिए…
तथाकथित नैतिक, सामाजिक व्यवहार या जीवन-संस्कार, आडंबर-प्रियता व्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वाधीनता को प्रतिबंधित रखना चाहते हैं। इसलिए एक सहज और सरल प्राकृतिक मुद्दे को अप्राकृतिक बना दिया जाता है।
तथाकथित नैतिक, सामाजिक व्यवहार या जीवन-संस्कार, आडंबर-प्रियता व्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वाधीनता को प्रतिबंधित रखना चाहते हैं। इसलिए एक सहज और सरल प्राकृतिक मुद्दे को अप्राकृतिक बना दिया जाता है।
चलिए ना! आज विश्व पर्यावरण दिवस पर करिए एक शुरूआत मेरे संग अपनी धरती और प्रकृति की खिलखिलाहट बचाये रखने के लिये। यकीन मानिये… ज्यादा ना तो एफर्ट्स लगते हैं और ना ही समय! बस राई के दाने जितने प्रयत्न और जागरूक हो जाने भर से ‘राई के पहाड़’ वाले पहाड़ नहीं बल्कि प्रयत्नों के सकारात्मक पहाड़ बना लीजिए। जिनके नीचे दब जाएं देशभर और फिर विश्वभर के एकड़ों में फैले टनों कचरे के ढ़ेर।
शहरों के लगातार फैलने से कांक्रीट के जंगल बनते जा रहे हैं। बेतहाशा निर्माण कार्यों की वजह से जलवायु पर भी अनदेखा असर पड़ रहा है। हर बड़े महानगर में तापमान में अंतर दिखता है। जहां हरियाली ज्यादा है, वहां पर पारा 2-3 डिग्री नीचे रहते हैं, लेकिन जहां कम है, वहां गर्मी ज्यादा है। इसे अर्बन हीट आइलैंड कहते हैं।
मैं उस चिल्ला-चोट के बीच अचानक मुस्करा उठी। सामने वाला पक्ष हतप्रभ था। उसे वह रिएक्शन नहीं मिल पा रहा था जिसके लिए मुझे तलब करवाया गया था। आप समझे मैं क्यों मुस्करा रही थी…
क्या मां की ममता, करुणा, त्याग का मोल मात्र एक दिवसीय शुभकामनाएं हो सकती हैं? क्या हमें साल में एक दिन के महिमा-मंडन से खुश-संतुष्ट हो सालभर उस यशगान की धुन गाते-गुनगुनाते अपनी सभी परेशानियां ताक पर रख देनी चाहिए?
जीना, असल में सरल आचरण और मनोभाव का समुच्च्यन है। हम विज्ञान, विचारणा, वितर्क और चिंतन के जंगल में मानवीयता को लगभग भूल चुके हैं, ऐसे में कुछ लोग मिले जो फरिश्तों जैसे हैं।
लोगों की पसंद और मजहब के तथाकथित प्रहरियों के द्वारा तय किये जा रहे मापदंडों के बीच किसी तरह संतुलन बनाते हुए लेकिन अंतत: अपने संगीत में रमे हुए चमकीले की कहानी जानने योग्य और चौंकाने वाली है।
उसने अंतिम चाकू अपनी पत्नी के सीने को लक्ष्य कर पूरी ताकत से फेंक दिया …वहीं जहां दिल होता है। आंखों से पट्टी हटाकर देखा तो पाया निशाना चूक गया था वह क्या चीज होती है जो एक अभ्यस्त हाथ को अपने लक्ष्य से जरा भी विचलित होने से रोक लेती है।
एक तबका ऐसा है जो कभी कर्ज डिफॉल्ट नहीं करता। दूसरा हमेशा बैंक का एनपीए (Non performing loan डूबा हुआ कर्ज) बढ़ाता है। हमारी व्यवस्था का बर्ताव आर्थिक लेनदेन की ईमानदारी से नहीं बल्कि सामाजिक स्तर से तय होता है। हैसियत देख कर व्यवहार करने वाली व्यवस्था से मिला एक कटु अनभव।
किसी भी शहर को देखने का, उसे याद रखने का सबका एक अलग नजरिया होता है। यायावरी के जुनून को पंख देकर आज उड़ चली हूं मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में स्थिति दो प्रसिद्ध मंदिरों के प्रांगण में।