कलारंग

तेरी गली से गुज़रता हूं इस तरह ज़ालिम…

इस शेर को अगर सिर्फ़ प्रेम के पहलू से देखा जाए तो एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को देखने की चाह में उसकी गली से इस तरह गुज़रने की बात करता है कि उसे ख़बर नहीं होती लेकिन वह उसे छू कर गुज़र जाता है।

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लॉकडाउन के 6 साल: सत्‍यम श्रीवास्‍तव के मार्फत स्मृतियाँ हिसाब माँग रही हैं…

सत्‍यम श्रीवास्‍तव की किताब ‘स्मृतियाँ जब हिसाब माँगेंगी’ को पढ़ते हुए हम कोविड 19 से मिले दंश को दोबारा महसूस करते हैं। बल्कि यह कहना सतही होगा। उपयुक्‍त तो यह है कि इस पुस्‍तक को पढ़ते हुए हम उन बातों से रूबरू होते हैं जो उस वक्‍त बड़े समाज के गौर में नहीं आई।

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जब शब्द नहीं पहुंचते, चुप्पी पहुंचाने की कोशिश करता हूँ…

ग्राम्‍य जीवन के साथ रिश्‍तों और प्रेम की महीन गुंथन सुदर्शन व्‍यास की रचनाओं की विशिष्‍टता है। उनकी रचनाओं में शब्‍दों का आडंबर नहीं भाव की सादगी झलकती है।

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नदी किनारे जाऊंगा, कुछ तैरूंगा और डूब जाऊंगा…

‘दीवार में एक खिड़की रहती थी’ के लिए ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित विनोद कुमार शुक्‍ल की कविताएं हर बार पाठ के साथ सोच, समझ और संवेदना का नया दरवाजा खोलती हैं।

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अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ –

उमर खैय्याम की रूबाइयां से प्रेरित ‘मधुशाला’, ‘मधुबाला’ और ‘मधुकलश’ बच्चन की रचना-त्रयी है। मधुशाला की रचना के कारण हरिवंश राय बच्‍चन को ‘हालावाद का पुरोधा’ भी कहा जाता है।

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झाड़ ऊँचे और नीचे चुप खड़े हैं आँख भींचे…

गांधी दर्शन को जीने वाले भवानी प्रसाद मिश्र आपातकाल में विरोध में खड़े हुए थे और प्रतिदिन नियम पूर्वक सुबह, दोपहर और शाम तीनों समय प्रतिरोध की कविताएं लिखा करते थे।

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तुम हृदय के गोदना से पहचान लेना मुझे…

हिंदी के सुख्‍यात कवि एकांत श्रीवास्तव की यह कविता मानव मन और प्रेम के उस कोमल स्‍वरूप और नाते को प्रस्‍तुत करती है जो हर युग में सर्वोत्‍तम भाव कहा गया है।

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कोई कभी वापस लौटता नहीं, सो लौटने का मार्ग ही न बनाया

सतत इवॉल्यूशन प्रकृति के पहिए का ही एक नाम है,इसे उल्टा नहीं किया जा सकता। खलील जिब्रान इसी सत्य को अपनी कविता ‘ फियर’ में नदी के भय के माध्यम से समझाते हैं।

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किए जो वादे मैंने, याद मुझे आ जाते हैं

बीसवीं सदी के महान अमेरिकी कवि फ्रॉस्ट महान जीवन मूल्यों वाले लेखक थे। यूं तो लेखन के लिए कई सम्मान मिले लेकिन उनकी काव्‍य की ताकत को इसी बात से समझा जा सकता है कि सिर्फ कविता लेखन के लिए ही फ्रॉस्ट को चार बार पुलित्सर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

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आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी…

दुष्यंत कुमार की यह रचना बहुत प्रभावित करती है क्योंकि यह उस युग में भी सामयिक थी और आज भी सामयिक है। यह कविता संघर्ष करते रहने की प्रेरणा देती है।

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