स्‍मरण कुमार गंधर्व: अजुनी रुसून आहे, खुलतां कळी खुले ना

जिनकी प्रेम की निगाहें होतीं हैं वे बहुत दूर तक देखते हैं तारों को पढ़ते रहते हैं। जैसे प्रेम का सूत संकेतों की भाषा में काता जाता है, फिर प्रेम संबंध की गुंथी हुई डोर बनती है, आप किसी से आबद्ध होते हैं, उसी तरह प्रकृति भी आपकी प्रेयसी है।

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घर के जोगी: मानो वे कह रहे थे, किसी ने हमारी सुध ली नहीं, किसी ने हमें समझा नहीं

शुरुआत में यह सोचा भी नहीं था कि एक शहर को खड़ा करने में इतने कलमकारों का हाथ हो सकता है। इस पुस्तक में अपने घर के रचनाकारों पर लिखने की कोशिश में यह भी पता चला कि मेरा शहर तो बहुत सौभाग्यशाली है।

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पर्दा गिरा… हिंदी रंगमंच के नटसम्राट आलोक चटर्जी विदा

‘मृत्युंजय’, ‘नटसम्राट’ और ‘अंधा युग’ के अश्वत्थामा में आलोक भाई ने अभिनय की उत्कृष्ट मिसाल पेश की। आलोक चटर्जी का जाना देश के रंगमंच से अभिनय के आलोक का स्‍याह हो जाना है।

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घर के जोगी: रतलाम के कवित्‍त और उसकी विशिष्‍टता का लेखा

इस पुस्‍तक में युवा साहित्यकार आशीष दशोत्तर ने अपने शहर ‘रतलाम’ के 56 रचनाकारों के कविकर्म से परिचित करवाने का बेहद अहम् कार्य किया है।

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उस्‍ताद का तबला तो बहुत सुना होगा, उनका बोलना सुनिए, अनूठा है

क्‍या कभी आपने उस्‍ताद ज़ाकिर हुसैन को बोलते हुए सुना है? तबले के पर्याय उस्‍ताद अल्‍ला रक्‍खा के इस विलक्षण बालक के तबला उस्‍ताद बनने की यात्रा उनके ही वक्‍तव्‍य से जानना अनूठा है।

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तू जहां तक दिखाई देता है, उससे आगे मैं देखता ही नहीं

शायरी वो कमाल की है कि सीधे दिल में उतरती है। वैसे ही जैसे दिल से कही जाती है। उन्‍हें खूब सुना गया। जितना सुना गया उससे ज्‍यादा सुनाया गया। कभी अपने हाल बताने के लिए, कभी अपने दिल की कहानी जताने के लिए।

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जम गए, जाम हुए, फंस गए; अपने ही कीचड़ में धंस गए

अपने समय में साहित्य जगत में गंभीर दस्तक के बावजूद मुक्तिबोध सही मायनों में वह पहचान हासिल नहीं कर सके थे जिसके वह हकदार थे। उनके निधन के तत्काल बाद उनकी ख्याति का ऐसा बवंडर उठा जिसने सारे हिंदी साहित्याकाश को ढंक लिया।

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शैलेंद्र: तेरी चाहत का दिलबर बयां क्या करूं?

आज गीतकार शैलेंद्र की जयंती है। आज का दिन शैलेंद्र और रेणु की दोस्‍ती को याद करने का भी दिन है। शैलेंद्र के गीत को गुनगुनाते हुए अपने दोस्‍तों को याद करने का दिन।

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आपकी हँसी इस देश की संपदा है, आप यूं ही हँसती रहें…

यह बात सरलादेवी चौधरानी ने अपनी आत्मकथा में लिखी है कि गांधी ने उनको ऐसा कहा। पर कहां पर कहा, यह मेरी कल्पना है। मेरा ऐसा कोई अजेंडा नहीं था कि गांधी की मूर्ति को ध्वस्त किया जाए या कि उस रिश्ते को एक सनसनीखेज रिश्ते के तौर पर पेश किया जाए।

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