‘एनिमल’ हो चुके समाज का मोस्‍ट वायलेंट यात्रा में स्‍वागत

फिल्म को मोस्ट वायलेंट फिल्म की तरह से प्रमोट करते हुए फिल्ममेकर एक तरह से नये जॉनर की घोषणा कर रहा है। सवाल है कि क्या फिल्म को मोस्ट वायलेंट कहते हुए प्रमोट करना ठीक है?

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जो किताबें पढ़कर बिगड़े वो जीवन में इंसान बन गये

आज विश्व पुस्तक दिवस है, हम जैसे पुस्तक प्रेमियों के लिए एक खास दिन। कहने वाले कहेंगे कि क्या किताब पढ़ने का भी कोई एक दिन हो सकता है? नहीं हो सकता है लेकिन जब अपने आसपास मोबाइल में डूबे और 10 से 30 सेकंड की फेसबुक-इंस्टा रील में डूबे युवाओं को देखती हूं तो मुझे लगता है कि किताबों की बात करना कई वजहों से जरूरी है

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केवल सच की घुट्‌टी से तोड़ा जा सकता है झूठ का नशा

इन दिनों जबकि प्रोपगंडा आधारित फिल्मों का बोलबाला है, इस फिल्म की खूबसूरती यही है कि यह फिल्म इतिहास के एक ऐसे घटनाक्रम से दर्शकों को रूबरू कराती है जिसके बारे में उन्हें कुछ खास नहीं पता है।

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आपको यह फिल्‍म तो देखनी ही चाहिए

यह एक बहुत ही प्यार से बनायी गयी फिल्म है जो हमें प्यार, दोस्ती और मासूमियत का जश्न मनाने का मौका देती है। यह हमें हमारे ही बनाये गये ‘हम बनाम वे’ के दायरे से बाहर ले जाती है।

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माखन दादा की यह बात जान लें तो आंखें शर्म से झुक जाएं…

आज के नेताओं का ध्‍येय एक ही है, किसी तरह सत्‍ता बनी रहनी चाहिए, विचार की सत्‍ता जाए तो जाए। अगर आज के ऐसे नेताओं को दादा माखनलाल चतुर्वेदी का एक अनुभव बताएं तो देखना दिलचस्‍प होगा कि वे आंखें चुराते हैं या मोटी चमड़ी का प्रदर्शन करते हैं।

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ये रंग हैं, और ये है इनकी रंगत

होली और रंग एक दूसरे के पर्याय हैं। रंग उल्‍लास के प्रतीक भी हैं और रंग हमारी भावनाओं की अभिव्‍यक्ति का माध्‍यम भी। हर रंग कुछ कहता है, क्‍योंकि हम हर रंग में एक अलग रंगत पाते हैं। बल्कि यूं कहिए, हर रंग की हर समय एक अलग रंगत होती है। यह रंगत हमारे मन के रंग पर निर्भर करती है। जानिए, प्रख्‍यात कवि एकांत श्रीवास्‍तव की कलम से जानिए कि हर रंग क्‍या कहता है।

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चोबा, चंदन, अरगजा वीथिन में रच्यौ है गुलाल

होली मूलतः रंगों का त्यौहार है। वृंदावन के श्रीधाम गोदा विहार मंदिर स्थित ब्रज संस्कृति शोध संस्थान में कई ऐसी दुर्लभ पाण्डुलिपि भी संग्रहित हैं जिनमें होली के अवसर पर गाये जाने वाले विभिन्न ब्रजभाषा पद संकलित हैंI

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राजीव वर्मा: नौकरी छोड़ी, मुंबई छोड़ा मगर शौक न छोड़ा, आज पहुंच गए यहां

यह इस गाने के बोल और गायक पंकज उधास की आवाज का जादू था कि जब-जब यह गाना बजा, पैर घर की ओर भाग चले। और जो पैरों पर पाबंदियां लगीं तब मन को कोई रोक नहीं पाया।

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अहसास होता है, सच में हम शुतुरमुर्ग बने रहे हैं

सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शांतिलाल जैन के हाल ही में प्रकाशित व्यंग्य संग्रह ‘… कि आप शुतुरमुर्ग बने रहें’ का हर व्यंग्य अपने आप में एक सामान्य विषय को बहुत रोचकता के साथ प्रस्तुत करने में सफल दिखाई पड़ता है।

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