सुना है कि मंज़िल क़रीब आ गई है…
मंज़िल का मिलना उतना ख़ास नहीं है जितना ख़ास रास्तों की तकलीफ़ों का सामना करना और समझना।
सुना है कि मंज़िल क़रीब आ गई है… जारी >
मंज़िल का मिलना उतना ख़ास नहीं है जितना ख़ास रास्तों की तकलीफ़ों का सामना करना और समझना।
सुना है कि मंज़िल क़रीब आ गई है… जारी >
प्रख्यात जनवादी कथाकार-आलोचक नीलकांत का 14 जून 2025 की सुबह 90 साल की उम्र में निधन हो गया है। वे उस पीढ़ी के कथाकार और आलोचक थे जिनके लिए विचारधारा के विशेष मायने थे।
नीलकांत जी एक व्यक्ति नहीं, एक सतत विचार थे जारी >
कहने को यह हास्य नाटक था पर अपनी प्रस्तुति में ऐसी शिक्षाएँ और संकेत लिए था जिससे जनसमाज सचेत हो सके।
हास्य चूड़ामणि: हमारी उम्मीदों से भी कई कदम आगे विहान जारी >
आज विश्व पर्यावरण दिवस है। संयुक्त राष्ट्र ने तीन पर्यावरणीय मुद्दों को समूचे विश्व के लिए चिंता का विषय बताया है। “ट्रिपल प्लेनेटरी क्राइसिस” यानी जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव विविधता की हानि हम सबके फिक्र का केंद्र होना चाहिए। जहां बाहरी पर्यावरणीय अंसतुलन हमारे भीतर असर डाल रहा है वैसे ही हमारे मन का पर्यावरणीय असंतुलन हमारे पूरे जीवन को प्रभावित कर रहा है। विश्व पर्यावरण दिवस पर मन के पर्यावरण की सुध लेने को सचेत करता हुआ यह आलेख।
ओवरथिंकिंग से आजादी: मन के पर्यावरण की फिक्र कितनी? जारी >
नागनाथ जी के चित्र संग्रह देखकर ऑर्गेनिक फीलिंग्स पैदा होती हैं। ये चित्र एक सुघड़ सोच, विश्वास और कॉन्सेप्ट के तहत निर्मित हैं इसीलिए ये वैसा ही असर देखने में पैदा करते है और दर्शक-पाठक को रोककर थाम लेते हैं।
नागनाथ की पेंटिंग्स में सुनिए साइलेंस का म्यूज़िक जारी >
इसे ज़िन्दगी की ज़रूरियात और इंसानी हक़ों के नज़रिए से समझना नए अर्थ खोलता है। सरपरस्त जब अपनी रिआया को नज़रंदाज़ कर देता है तो उसे कहीं सहारा नहीं मिलता है।
जिस को तुम भूल गए याद करे कौन उस को… जारी >
जो बंदा बंदगी के रंग में डूबता है वह दुनियादारों से कुछ इसीलिए अलग होता है क्योंकि वह अपने भीतर छुपे हुए राज़ को राज़ नहीं रहने देता। वह सब कुछ सामने लाने की हिम्मत करता है।
मंज़िल पर पहुंचने की चाह में रास्तों से गुज़रना भूल जाते हैं… जारी >
सत्यजीत की फिल्मों में स्त्री वस्तु नहीं है, वह सज्जा की सामान भी नहीं है। वहाँ महिलाओं के अधिकारों को बरकरार रखने की जद्दोजहद है लेकिन पुरुषों की कीमत पर नहीं।
सत्यजीत रे: स्त्रियों को ऊँचा करने के लिए पुरुषों को कमतर नहीं आँका जारी >
संगीत से जुड़े मनुष्य के मनोवैज्ञानिक और व्यवहारगत पक्षों से भी हर कलाकार को परिचित होना चाहिए। आज की भाग-दौड़ भरी जीवनशैली में बढ़ते स्ट्रेस और एंग्जायटी से निपटने के लिए भी लोग संगीत के निकट आ रहे हैं। यह उजला पक्ष भारतीय समाज के जागृत विवेक का स्वत: परिचायक है।
गुरु के सान्निध्य में रियाज़ की प्रोसेस जारी >
दो मिसरों में दो ख़याल बांधते हुए उनमें रब्त कायम करना यह शाइर की ख़ूबी होती है। इस लिहाज से जनाब जसवंत राय शर्मा उर्फ़ नक्श लायलपुरी का यह शेर विराधाभासों में ख़ूबसूरती पैदा करता है।
अभी तो खुश्क पैरों पे मुझे रिमझिम भी लिखनी है… जारी >