मां की मौत पर नहीं रोया…
इस तरह/ मरने के बाद भी/ मेरे लिए/ तीन दिन और जिंदा रहीं मां…
मां की मौत पर नहीं रोया… जारी >
इस तरह/ मरने के बाद भी/ मेरे लिए/ तीन दिन और जिंदा रहीं मां…
मां की मौत पर नहीं रोया… जारी >
पद्मश्री डॉ. सुरजीत पातर जिन्हें पंजाब के युग कवि पुकारा गया और जिन्हें शब्दों का समर्थ कवि की संज्ञा दी गई। उनकी कविताएं भले ही पंजाबी में लिखी गईं लेकिन उनमें सारे जहान की अनुभूति समाहित है और इसी कारण कविताएं अनुवाद के रूप में पंजाब, भारत का दायरा लांघ कर पूरे विश्व में पहुंची हैं।
दाड़ी पगड़ी वाला कवि जो जादूगर समझा गया… सच में जादूगर था जारी >
विगत दिनों एक ऐसी पेंटिंग या कहूं चित्रकृति पर नजर ठिठक गईं जिसमें प्रदर्शित कम हो रहा था मगर जो छुपे हुए अर्थ वह पेंटिंग बताना चाह रही थी उसकी आवाज मुझ तक जाने कैसे पहुंच गई कह नहीं सकता। इस आवाज को आप भी सुनें।
बोलते संगीत वाद्यों का चित्रकार नागनाथ मानकेश्वर जारी >
फिल्म को मोस्ट वायलेंट फिल्म की तरह से प्रमोट करते हुए फिल्ममेकर एक तरह से नये जॉनर की घोषणा कर रहा है। सवाल है कि क्या फिल्म को मोस्ट वायलेंट कहते हुए प्रमोट करना ठीक है?
‘एनिमल’ हो चुके समाज का मोस्ट वायलेंट यात्रा में स्वागत जारी >
आज विश्व पुस्तक दिवस है, हम जैसे पुस्तक प्रेमियों के लिए एक खास दिन। कहने वाले कहेंगे कि क्या किताब पढ़ने का भी कोई एक दिन हो सकता है? नहीं हो सकता है लेकिन जब अपने आसपास मोबाइल में डूबे और 10 से 30 सेकंड की फेसबुक-इंस्टा रील में डूबे युवाओं को देखती हूं तो मुझे लगता है कि किताबों की बात करना कई वजहों से जरूरी है
जो किताबें पढ़कर बिगड़े वो जीवन में इंसान बन गये जारी >
इन दिनों जबकि प्रोपगंडा आधारित फिल्मों का बोलबाला है, इस फिल्म की खूबसूरती यही है कि यह फिल्म इतिहास के एक ऐसे घटनाक्रम से दर्शकों को रूबरू कराती है जिसके बारे में उन्हें कुछ खास नहीं पता है।
केवल सच की घुट्टी से तोड़ा जा सकता है झूठ का नशा जारी >
यह एक बहुत ही प्यार से बनायी गयी फिल्म है जो हमें प्यार, दोस्ती और मासूमियत का जश्न मनाने का मौका देती है। यह हमें हमारे ही बनाये गये ‘हम बनाम वे’ के दायरे से बाहर ले जाती है।
आपको यह फिल्म तो देखनी ही चाहिए जारी >
रक्तगर्भा की चाह में जलता रहा मन/शेष सभी रंगों से आगे जा चुकी है/जीवन नौका।
अंजुरी में शृंगार का सफेद चंदन जारी >
आज के नेताओं का ध्येय एक ही है, किसी तरह सत्ता बनी रहनी चाहिए, विचार की सत्ता जाए तो जाए। अगर आज के ऐसे नेताओं को दादा माखनलाल चतुर्वेदी का एक अनुभव बताएं तो देखना दिलचस्प होगा कि वे आंखें चुराते हैं या मोटी चमड़ी का प्रदर्शन करते हैं।
माखन दादा की यह बात जान लें तो आंखें शर्म से झुक जाएं… जारी >
होली और रंग एक दूसरे के पर्याय हैं। रंग उल्लास के प्रतीक भी हैं और रंग हमारी भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम भी। हर रंग कुछ कहता है, क्योंकि हम हर रंग में एक अलग रंगत पाते हैं। बल्कि यूं कहिए, हर रंग की हर समय एक अलग रंगत होती है। यह रंगत हमारे मन के रंग पर निर्भर करती है। जानिए, प्रख्यात कवि एकांत श्रीवास्तव की कलम से जानिए कि हर रंग क्या कहता है।
ये रंग हैं, और ये है इनकी रंगत जारी >