26 जनवरी 2025: 76 वां गणतंत्र दिवस
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- डॉ.ब्रह्मदीप अलूने
‘गांधी है तो भारत है’ के लेखक और राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक
भारत के बहुसांस्कृतिक समाज की अपने में सब कुछ समा लेने की शक्ति से जिन्ना भी डरते थे और पाकिस्तान के सिपहसालार आज भी डरते है। पाकिस्तान बन जाने के करीब 35 साल बाद पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह जनरल जिया उल हक़ से एक पत्रकार ने पूछा कि पाकिस्तान भारत के साथ जानबूझ कर दुश्मनी निभाने की नीति क्यों अपनाएं हुए है? इस पर जिया हल हक ने बेबाकी से डर को स्वीकार करते हुए कहा,अगर तुर्की और मिस्र अपनी मुस्लिम पहचान को पूरे जी जान से न जताएं तो भी वह वही रहेंगे जो वह है तुर्की और मिस्र। लेकिन पाकिस्तान अगर इस्लामिक पहचान को अपनाने के साथ उसे जाहिर न करता रहे तो वह हिंदुस्तान हो जाएगा। हिंदुस्तान के साथ दोस्ताना मेलजोल का मतलब होगा हिंदुस्तान का सब कुछ अपने आगोश में समेट लेने वाले अपनेपन के दलदल में फंस जाना।
भारत की सार्वभौमिकता को चुनौती देकर द्विराष्ट्रवाद के आधार पर पाकिस्तान बनाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना का कोई भी नजदीकी वंशज अब पाकिस्तान में नहीं रहता है। 1948 को जिन्ना की मौत के बाद उनकी जायदाद की एक मात्र वारिस उनकी बहन फातिमा जिन्ना 1967 में चल बसी। मादर-ए-मिल्लत के नाम से मशहूर फातिमा 1964-65 में फील्ड मार्शल अयूब खान के खिलाफ राष्ट्रपति पद का चुनाव भी लड़ी। लेकिन उन्हें शिया होने से गैर इस्लामिक कहकर नकार दिया गया और इसके बाद उन्होंने कभी न खत्म होने वाली ख़ामोशी ओढ़ ली। जिन्ना की बेटी दीना अपने पिता के साथ रहने कभी पाकिस्तान ही नहीं गई। वह केवल 1948 में जिन्ना की मैयत में शामिल होने कराची गई थी। दीना और उनके पति नेविल वाडिया ने मुंबई में अपना घर बनाया। जिस पाकिस्तान का जन्म भारत से नफरत के कारण हुआ था,उसके जन्मदाता के रिश्तेदार भारत में ही रहते है। बदहाल पाकिस्तान में जिन्ना की कब्र की ख़ामोशी सब कुछ बयां करती है जबकि भारत में प्यार का ताजमहल सदा आबाद है। जिन्ना काश यह समझ गए होते की अपनी हिन्दुस्तानी पहचान को नकारने का मतलब अपनी हस्ती मिटा देना है।
दरअसल, जिन्ना भारत में रहकर भी यह समझ ही नहीं पाएं थे कि इस जमीन की असल पहचान सार्वभौमिकता और मानवीयता है जो सहस्रों वर्षों से जनमानस के आचरण, व्यवहार और विचारों में पाई जाती है। भारत ने आज़ादी मिलने के बाद इसे संवैधानिक दायित्वों का आवश्यक अंग बनाया। इस समय दुनिया के कई देश धर्म आधारित पहचान को लेकर संघर्षरत है वहीं भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक और पंथ निरपेक्ष राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बनाकर दुनिया के सामने मानवीयता के आदर्श प्रस्तुत करता है। सांवैधानिक आदर्शों और भारतीय मूल्यों का असर भारत और पाकिस्तान की नई पीढ़ी और लोगों में देखने को भी मिलता है।
कोरोना की दहशत अभिशाप की तरह मानव जाति को निगलने को आमादा थी और इससे बचाव का तरीका अपने को घर में कैद कर लेना बताया गया। रमज़ान की इबादत के साथ भारतीय मुसलमानों के लिए सरकार ने कुछ गाइडलाइंस जारी की, जिनमें यह हिदायत दी गई कि मस्जिदों के बजाय मुसलमान अपने घरों में नमाज़ पढ़ें और लॉकडाउन में मस्जिदों से लाउडस्पीकर से अज़ान भी बंद कर दे। रोज़ा खोलने के बाद रात में पढ़ी जाने वाली नमाज़ भी घरों में पढ़ें। मस्जिदों में इफ़्तार पार्टी का आयोजन न करे। रमज़ान की ख़रीदारी के लिए घरों से बाहर न निकले। कश्मीर से कन्याकुमारी तक बसने वाले करोड़ों मुसलमानों ने सरकार की गाइड लाइन का पालन करते हुए अपनी धार्मिक प्रतिबद्धताओं को निभाया। ऐसा करने से कानून व्यवस्था कि स्थिति बिल्कुल प्रभावित न हुई। हजारों वर्षों के इस्लामिक इतिहास में शायद ही ऐसा कभी हुआ हो कि रमज़ान के महीने में नमाज मस्जिद में जाकर सामूहिक रूप से न पढ़ी गई हो लेकिन कोरोना काल में ऐसा हुआ।
इस्लामिक संस्कृति को अलग बताकर हिंदुस्तान से अलग हुए जिन्ना के पाकिस्तान का माहौल इस सबसे जुदा था। कोरोना के कहर से बचने की सरकार की हिदायत से इतर इस्लामाबाद की मशहूर लाल मस्जिद में जुमे की नमाज़ पढ़ी गई जिसमें भारी संख्या में लोग जमा हुए और कोरोना से जुड़े तमाम एडवाइज़री और सरकारी आदेशों का जमकर उल्लंघन हुआ। कराची में हुई एक प्रेस वार्ता में दो नामी धर्म गुरुओं मुफ़्ती मुनीबुर्रहमान और मुफ़्ती तकी उस्मानी ने सरकार को चुनौती देते हुए कहा कि मस्जिदें और मदरसे अनिश्चित काल के लिए बंद नहीं रह सकते, इसलिए रमज़ान के महीने में इन्हें खोला जाएगा और सामान्य दिनों की तरह मस्जिदों में नमाज़ पढ़ी जाएगी।
लॉकडाउन के दौरान पाकिस्तान में स्थानीय प्रशासन को मस्जिदों पर प्रतिबंध लगाने में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा। कोरोना के डर से बेखौफ मस्जिदों में भारी भीड़ जमा हुई और पुलिस ने ऐसी मस्जिदों को बंद कराने की कोशिश की तो रूढ़िवादी लोगों के समूह ने पुलिस के साथ भीड़ बदसलूकी की। पाकिस्तान में कट्टरपंथियों से खौफ़जदा तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को मीडिया के सामने आकार सफाई देनी पड़ी और उन्होंने अपनी लाचारी को जाहिर करते हुए कहा कि हम आज़ाद देश हैं। हम कैसे लोगों को मस्जिदों में जाने से रोक सकते हैं अगर वो वहां जाना ही चाहते हैं।
इस समय हम देखते है कक द्वेष और द्विराष्ट्र सिद्धान्त के आधार पर बना पाकिस्तान एक नाकाम राष्ट्र है जबकि सार्वभौमिकता का सम्मान करने वाला भारत दुनिया में एक मजबूत राष्ट्र के रूप में पहचान बनाने में सफल रहा है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण योगदान हमारे संविधान का है जो विविधताओं का सम्मान करते हुए देश की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करता है। यह भारत के नागरिकों के आचरण और व्यवहार में प्रतिबिम्बित होता,जहां भिन्न भिन्न संस्कृतियाँ फलीभूत होते हुए भारतीयता में आत्मसात होकर आनंदित होती है। यहाँ भिन्न भिन्न भाषाएं बोली जाती है लेकिन उसमें मानवीयता के इतने गहरे संदेश होते है कि वह भारतीयता में समाहित रहती है।
इतिहास का वह खास दिन बन गया जब संसद में अपने भाषण के दौरान पंथनिरपेक्ष शब्द का इस्तेमाल कर पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने यह संदेश देने की कोशिश कि थी कि धर्म आस्था का विषय है जबकि हम सबकी पहचान भारतीय ही हो सकती है। डॉ. कलाम ने अपने जीवनकाल में कोई भी एक ऐसा कार्य नहीं किया या आचरण नहीं किया जिससे यह लगे कि किसी धर्म विशेष के प्रति उनका लगाव या झुकाव था। न्याय दर्शन के प्रथम प्रवक्ता और भारतीय ज्ञान परम्परा के महान मनीषी ऋषि गौतम की कही गई यह उक्ति सदैव प्रासंगिक है कि हमारा देश विभिन्न संस्कृतियों का देश है जो समूचे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। अलग अलग संस्कृति और भाषाएं होते हुए भी हम सभी एक सूत्र में बंधे हुए हैं तथा राष्ट्र की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं।