पंकज शुक्ला, पत्रकार-स्तंभकार
दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में पीएचडी चयन प्रक्रिया पर आक्रोश में विद्यार्थी
शीर्ष से फर्श से पहुंचा दिए गए शोध के आकांक्षी विद्यार्थी सवाल कर रहे हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय का हिंदी विभाग चुप है। हम हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा को उनके साहित्य के लिए जानते हैं। हम विभागीय शोध समिति के सदस्य प्रो. अपूर्वानंद को उनके बेबाक अंदाज और तीखे तेवर के कारण जानते हैं। संवेदनशीलता और पारदर्शिता की उम्मीद ऐसे ही लोगों से न की जाए तो किनसे की जाए? विद्यार्थी आक्रोशित हैं, वे दु:खी है। एक परीक्षा उन्हें टॉपर मानती है तो दूसरी प्रक्रिया उन्हें फिसड्डी। वे हैरान हैं कि कितनी बार वे अपनी योग्यता साबित करें? अब चुप्पी तोड़िए, प्रो. कुमुद शर्मा जी, प्रो. अपूर्वानंद जी, क्योंकि सवाल उस सिस्टम से है जिसके कर्ताधर्ता आप दोनों हैं।
वे पढ़ना चाहते हैं, किताबों की दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करना चाहते हैं। उनके इरादे शोध के नए अध्याय खोलने के हैं। वे देश के सबसे चर्चित विश्वविद्यालयों में से एक दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लेकर पीएचडी करना चाहते हैं। इसके लिए वे महीनों से परिश्रम कर रहे हैं। लेकिन आज उनके हाथों में कलम-किताब नहीं मशाल है। वे उस सिस्टम को फूंक देना चाहते हैं जो उनके सपनों पर अनियमितता से खाई खोद चुका है। कैसी विडंबना है कि जो विद्यार्थी शोध के लिए आयोजित अखिल भारतीय केंद्रीय परीक्षा में टॉपर रहे वे दिल्ली विश्वविद्यालय में आ कर शून्य हो गए।
यह विडंबना ही तो हैं कि बरसों से पढ़ाई कर रहे, महीनों से परिश्रम कर रहे, दिनों तक चयन प्रक्रिया में जुटे रहे, घंटों का सफर कर दिल्ली पहुंचे विद्यार्थियों से मात्र दो मिनट या उससे भी कम में बात कर तय कर लिया गया कि वे शोध के लिए योग्य है या अयोग्य!
यह सिस्टम की पोल ही तो है कि रिजल्ट जारी हो गया लेकिन अब तक सार्वजनिक रूप से यह पता नहीं है कि चयन प्रक्रिया क्या है? जब डीयू के अन्य विभाग पीएचडी चयन के लिए यूजीसी की गाइडलाइन का पालन कर रहे हैं तो हिंदी विभाग इस गाइडलाइन का पालन कर रहा है या नहीं, यह कोई नहीं जानता है।
अरमान झुलसे तो पुतला फूंका
दिल्ली विश्विद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा 22 फरवरी को जारी की गई पीएचडी की चयन सूची सार्वजनिक होते ही विवादों से घिर गई है। दिल्ली विश्वविद्यालय पिछले कई वर्षो से पीएचडी में चयन को लेकर अनियमितताओं के आरोप झेल रहा है लेकिन इसबार विद्यार्थियों के आरोपों को देख कर लगता है कि जैसे हिंदी विभाग ने अनियमिता की सीमाएं पार कर दी हैं। आरोप है कि सेकंड फेज के लिए CUET द्वारा आयोजित पीएचडी प्रवेश परीक्षा में जिन 20 लोगों ने सर्वश्रेष्ठ अंक प्राप्त किए थे, हिंदी विभाग ने उन्हें ही अयोग्य माना। मतलब देश के कई केंद्रीय विश्वविद्यालयों और राज्य विश्वविद्यालयों में विभिन्न एकीकृत/स्नातक, स्नातकोत्तर और शोध कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए आयोजित होने वाली अखिल भारतीय केंद्रीय विश्वविद्यालय-संयुक्त प्रवेश परीक्षा में जो विद्यार्थी अव्वल थे उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय ने सिरे से खारिज कर दिया। राष्ट्रीय परीक्षा में योग्य डीयू में पहुंचे तो अयोग्य करार दिए गए। ऐसे में सवाल तो उठेंगे ही और जब सवाल उठे तो हिंदी विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. कुमुद शर्मा और विभागीय शोध समिति के सदस्य प्रो. अपूर्वानंद निरूत्तरित रह गए। इसके बाद आक्रोशित विद्यार्थियों ने पूतला फूंक कर आंदोलन का बिगुल बता दिया है। चयन में अनियमितिताओं के लेकर आर्ट्स फैकल्टी में विभागाध्यक्ष और डीन को ज्ञापन सौंपा कर विभागाध्यक्ष का पुतला जलाया गया। विश्विद्यालय प्रशासन को चेतावनी दी गई है अगर चयन सूची निरस्त नहीं की गई तो बड़े स्तर पर आंदोलन किया जाएगा।
क्या वाकई चयन में हुई है गड़बड़ी?
सवाल यही है कि क्या पीएचडी चयन परीक्षा में सच में गड़बड़ी हुई है? विद्यार्थियों की बात सुनेंगे तो जवाब हां होगा। विद्यार्थी तर्क दे रहे हैं कि यूजीसी ने विभिन्न विश्विद्यालयों में PhD प्रवेश के लिए वर्ष 2022 में अधिसूचना जारी कर साफ किया था कि प्रवेश परीक्षा के जरिए प्रवेश में 70 फीसदी अंक और साक्षात्कार के आधार पर 30 फीसदी अंक देने का प्रावधान है। दिल्ली विश्विद्यालय में ही इस गाइडलाइन का पालन पूरी तरह नहीं हुआ है। एक तरफ जहां संस्कृत, राजनीति विज्ञान सहित अन्य विभाग तो इस गाइडलाइन का पालन कर रहे है वहीं हिंदी विभाग ने अपनी पीएचडी प्रवेश के लिए साफ नहीं किया कि प्रवेश की प्रक्रिया क्या होगी? विद्यार्थी कह रहे हें कि साफ है कि शुरू से ही हिंदी विभाग की मंशा अनियमिततापूर्ण प्रवेश को लेकर थी।
विद्यार्थी रोष के साथ आरोप लगा रहे हैं कि दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग ने ऐसे नियम बना रखे हैं जो कतिपय लोगों को सर्वसमर्थ बनाते हैं। सबसे पहले आपको एक ‘गुरु’ को प्रसन्न करना होगा। फिर प्रवेश के लिए राजनीतिक-सामाजिक संगठनों से अनुशंसा करवानी होगी। इस सबके बाद भी चयन तब होगा जब विभागाध्यक्ष की कृपा हो। अन्यथा टॉपर भी अंतिम सूची में बाहर हो सकता है।
विद्यार्थियों के इस तर्क में दम है कि CUET में प्राप्त अंकों को आधार न बना कर मनमानी प्रक्रिया की गई है। क्या 2 मिनिट के इंटरव्यू में योग्यता का आकलन किया जा सकता है? यदि विश्वविद्यालय सही है तो उसे पीएचडी अंकों को सार्वजनिक करना चाहिए। तथा आगे ऐसी गड़बडि़यों को रोकने के लिए प्रवेश नियमों को स्थाई बना कर उन्हें भी सार्वजनिक किया जाए।
टॉकथ्रू ओपिनियन
यह बात सामान्य और नजर अंदाज करने योग्य नहीं है की CUET के टॉपर्स और JRF टॉपर्स को दिल्ली विश्वविद्यालय सिरे से नजरअंदाज कर दे। मध्यप्रदेश में पटवारी परीक्षा के परिणाम जुलाई 23 में आए और विवाद से जुड़ गए। एक ही कॉलेज से टॉपर और अव्वल रहे परीक्षार्थी प्रदेश में जिलों की संख्या भी नहीं जानते। जाहिर है परीक्षा परिणाम रोकने पड़े। अब यूपी में आरक्षी नागरिक पुलिस के पदों पर आयोजित परीक्षा 2023 को निरस्त कर दिया गया। सीएम योगी आदित्यनाथ ने अगले छह माह में फिर से परीक्षा करवाने के आदेश दिए हैं। उन्होंने एक्स पर घोषित किया है कि परीक्षाओं की शुचिताओं से कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
नई शिक्षा नीति में पढ़ाई को आसान बनाने की राह बुनी गई है लेकिन ये उदाहरण बताते हैं कि पढ़ना आसान नहीं है। सबके लिए पढ़ाई का सपना ही अधूरा है, शोध के इच्छ़ुक हर विद्यार्थी को शोध का वातारण मिल सके, यह आसानी तो ख्याल में भी नहीं है। हर प्रवेश परीक्षा की अनियमितताओं के दोषियों को सजा के कड़े प्रावधान होने चाहिए। गुरु तानाशाह और ‘वसूली’ में मास्टर न हो और सिस्टम बाधा दौड़ तैयार करने वाला नहीं, सुगम हो, क्या यह मांग करना भी आपत्तिजनक है?
Its true..
आजकल लगभग सभी विश्वविद्यालयों का यही हाल है सर,कहीं कम तो कहीं घनघोर।