
- आशीष दशोत्तर
साहित्यकार एवं स्तंभकार
अंतर्विरोध और द्वंद्व की ख़ूबसूरती से गढ़ा शेर
यारो, बाहम गुंथे हुए हैं कायनात के बिखरे टुकड़े
एक फूल को जुंबिश दोगे तो इक तारा कांप उठेगा।
फ़िक्रो-फन के ऐतबार से सदी के बड़े शाइर फ़िराक़ गोरखपुरी साहब का यह शेर बहुत मानीखेज़ है। इस शेर के जितने भीतर आप उतरते जाएंगे यह अपनी उतनी तहें खोलता जाएगा। हर तह में एक नया अध्याय मौजूद मिलेगा। शेर के लफ़्ज़ी मआनी पर ग़ौर करें तो शाइर यहां कहना चाहता है कि कायनात की हर चीज़ एक दूसरे से जुड़ी हुई है। आप अगर एक सिरे को भी छेड़ने की कोशिश करेंगे तो दूसरा सिरा प्रभावित होगा। यानी इस कायनात के भीतर जो कुछ है वह सब कुछ एक दूसरे से राब्ता रखता है। किसी भी चीज़ को किसी से आप अलग नहीं कर सकते। आपकी नज़र एक जैसी होनी चाहिए तभी आप इस पूरी कायनात को एक समान रूप से देख पाएंगे।
लेकिन इस शेर के और भीतर क़दम रखें तो कुछ ज़ाविए भी खुलते हैं। इस शेर में मौजूद तसव्वुफ़ के रंग को देखें और उसे वैज्ञानिक सोच से समझने की कोशिश करें तो एक अलग ही मंज़र सामने आता है। गीता में कृष्ण कहते हैं कि कर्म ही फल का आधार है। जैसा कर्म करेंगे फल उसी अनुसार मिलेगा। न्यूटन अपने गुरुत्वाकर्षण के तीसरे नियम में यह कहते हैं कि प्रत्येक क्रिया के विपरीत और बराबर प्रतिक्रिया होगी। यानी आप जो कुछ दे रहे हैं वही आपको मिलना है। यहां शाइर भी कुछ ऐसी ही बात कह रहा है। शाइर कहना चाहता है कि आप कायनात के किसी अंग को तकलीफ़ पहुंचा कर यह उम्मीद करें कि आपको कभी तकलीफ़ नहीं मिलेगी या किसी के प्रति दुर्भावना रखकर यह अपेक्षा रखें कि आपको सदैव सद्भावना ही मिलेगी तो यह सोचना ग़लत है। यहां जो कुछ भी है वह एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। आप एक जगह ग़लत काम कर रहे हैं तो उसका फल आपको कहीं और मिलेगा ज़रूर। यानी आपके ग़लत काम से इस पूरी कायनात में कहीं न कहीं कोई हलचल हुई है जो आपको प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ दिनों, महीनों या बरसों के बाद फिर से महसूस करना पड़ेगी। अर्थात आप अच्छा देंगे तो अच्छा पाएंगे भी। आप किसी फूल का दिल दुखा कर यह उम्मीद करें कि चंद्रमा की रोशनी आपको मिलती रहेगी तो यह आपकी भूल है। इस पर आप यह कहें कि चंद्रमा को तो मैंने कुछ कहा ही नहीं, मैंने तो फूल को दिल दुखाया था, तो बंधु, ऐसा नहीं होता।
शाइर यही कहना चाह रहा है कि आपको सब कुछ यहीं पर महसूस करना है और हर क्रिया के बाद एक प्रतिक्रिया सहनी ही है। क्रिया बेहतर होगी तो प्रतिक्रिया भी सुखकर ही होगी।
यह शेर वैज्ञानिक भी है। विज्ञान के अध्ययन की शुरुआत में हम पढ़ते हैं कि प्रत्येक पदार्थ कई कणों से मिलकर बना होता है और प्रत्येक कण एक दूसरे से जुड़ा होता है। इन कणों के बंधन के कारण ही पदार्थ का एक आकार तय होता है। इसी आधार पर हम ठोस, द्रव और गैस की अवधारणा को समझते हैं। शेर यही समझा रहा है कि यह कायनात पदार्थ की उस अवस्था की तरह है जिसमें सारे कण एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। आपने किसी एक कण को छेड़ा तो पूरे पदार्थ में हलचल मच सकती है। इस एक कण के अव्यवस्थित होने से हो सकता है पदार्थ अपना स्वरूप बदल ले और उसमें कोई विकृति आ जाए! हमने आज कितनी ही विकृतियां पैदा की हैं। अपनी कायनात के ऐसे ही छोटे-छोटे कणों को अव्यवस्थित करके इंसान यह कहता है कि मुझे इससे क्या? मैं यह कर लूंगा तो क्या होगा? यहां शाइर इंसान को भी याद दिला रहा है कि तेरे अकेले कुछ करने से भी इस पूरी कायनात में हलचल होना तय है।
‘थ्योरी ऑफ कनेक्टिविटी’ इस शेर के ज़रिए बखूबी समझी जा सकती है। इस दौर में या कहें हर दौर में यह शेर एक ऐसा अहसास करवाता है जिसे महसूस कर हमारे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हमारे बीच इंसानियत का रिश्ता है। हर प्राणी से हम मुहब्बत का भाव रखते हैं । हम इस पूरी कायनात को अपना एक परिवार भी मानते हैं। इस परिवार में तरह-तरह के लोग हैं। उनके रंग अलग हैं। उनका धर्म अलग है। उनकी नस्ल अलग है। उनकी भाषा अलग है। उनके रहन-सहन का तरीका अलग है लेकिन इन सबके बीच फिर भी कोई न कोई रिश्ता है। वह डोर कायनात के हर ज़र्रे ज़र्रे को बांधे हुए है। शाइर यहां सतर्क करना चाहता है कि यदि तुमने किसी इंसान को सिर्फ़ इसलिए अलग करने की कोशिश की कि वह तुम्हारे धर्म का नहीं है, किसी प्राणी को सिर्फ़ इसलिए दूर रखने की कोशिश की कि वह तुम्हारी पसंद का नहीं है, किसी भाषा को इसलिए परायी बनाने की कोशिश की कि उसे तुम पसंद नहीं करते हो, किसी भाषा के शब्दों को चुन-चुन कर अलग करने की मंशा अगर रखते हो तो यह सब तुम्हारे पतन का कारण बनेगा। एक इंसान को उसकी हदों में क़ैद करना सबसे बड़ा गुनाह है। यह गुनाह करते हो तो पूरी कायनात इसके लिए तुम्हें ही ज़िम्मेदार मानेगी।
यहां बिखरने और गुंथने के बीच रब्त पैदा कर इस शेर को बहुत बड़ा बनाया गया है। जहां बिखराव है वहां यकज़हती (एकता) होना और जहां यकज़हती है वहां बिखराव होना ही है। यह विरोधाभास ही ज़िंदगी का फलसफा है। जिंदगी को समझने के लिए इन दोनों को एक साथ समझना बहुत ज़रूरी। जिसने ज़िन्दगी में सिर्फ़ बिखराव को समझा, वह एक होने की प्रक्रिया नहीं जान पाएगा और जिसने एक होने को समझ लिया, वह बिखरने का दर्द महसूस नहीं कर पाएगा। यह अंतर्विरोध और द्वंद्व की स्थिति ही इस शेर को और ख़ूबसूरत बना रही है। हक़ीक़त में ज़िंदगी का फलसफा यही है कि यहां बिखराव में भी एकता देखना ज़रूरी है। दुर्भाग्य से लोग आजकल कायनात को बिखरने पर मजबूर कर रहे हैं। रिश्तों के दर्मियान कड़ुवाहट पैदा कर रहे हैं। संबंधों की सांसें छीन रहे हैं। मनुष्य को मनुष्य से जुदा कर रहे हैं। उन्हें इस शेर से यह समझना ज़रूरी है कि पूरी कायनात के मरासिम मुहब्बत के फूल के साथ जुड़े हैं। उसे दिया गया दर्द कायनात का हर एक ज़र्रा महसूस कर रहा है।
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मुझे उर्दू का ज्ञान बिल्कुल नहीं है। इसलिए, बहुत कुछ, शब्दशः समझ नहीं पड़ता किन्तु पढ़ते हुए बराबर लगता रहा कि बात मुझ तक पहुँच रही है।
आशीष का लिखा, मुझे पढ़ना ही पड़ता है। मजबूरी है। लेकिन अधिकांशतः मुझे तृप्ति नहीं मिलती। किन्तु इस आलेख में आशीष का घनत्व अनुभव होता है। मेरे तईं यह बहुत बड़ी खुशी और तसल्ली है।
यह आलेख पढ़वाने के लिए धन्यवाद।
मैने आपकी आसानी के लिए गूगल से यह जाना कि
बाहम का अर्थ है – आपस में, परस्पर, एक दूसरे के साथ