अपने भीतर ज्‍यादा से ज्‍यादा शून्‍यता पैदा करें …

राघवेंद्र तेलंग, सुपरिचित कवि,लेखक,विज्ञानवेत्ता

चित्रकार: नागनाथ मानकेश्वर

आज हम शून्यता, खालीपन, वैक्यूम, स्पेस या कहें जीरो स्टेट के बारे में बातें करेंगे। इस स्टेट को साइंस ने जब-जब इस्तेमाल किया है वह नए-नए आविष्कार और खोजों से समृद्ध हुआ है। जी, हां! यह खाली करके खाली स्थान में किसी नए का आह्वान करने की प्रक्रिया के बारे में है। आपने गौर किया होगा कि अधिकतर साइंस-दां के बारे में हम सोचते हैं कि वे नास्तिक हुआ करते हैं। और ऐसा देखा गया है उनका धार्मिक लोगों से समांतर रेखा रूपी प्रतिद्वंद्विता का रिश्ता रहा आया है।

दिलचस्प तथ्य यह भी है कि डार्विन, न्यूटन, फैराडे, मैक्सवेल, डाल्टन, थाम्प्सन, वोल्टा, हाईजनबर्ग, एडिंग्टन, मोर्स जैसे कई वैज्ञानिकों की पृष्ठभूमि धार्मिक रही है। हालांकि यह एक अघोषित तथ्य है तभी तो अपनी वैचारिक स्वतंत्रता छिन जाने के भय से आज तक किसी वैज्ञानिक ने इस बात का खुलासा नहीं किया कि शून्यता के परिक्षेत्र का निर्माण एक कला है जो ध्यान के समय ईश्वरीय साधना से आती है। इसी परिक्षेत्र में बने रहने पर अंतर्दृष्टि विकसित होती है और नए प्रकार के विचार अनुभूति के माध्यम से आते हैं। इस शून्यता का पता विभिन्न सभ्यताओं को पूर्व से ही रहा है। जैसे मिस्र, मेसोपोटामिया, सीरियन, सिंधु घाटी आदि।

नास्तिकता इस शून्य को जानने का शॉर्टकट जरूर है पर इससे अर्जित शक्ति अंतत: स्वयं साधक का ही विध्वंस कर देती है। इस तथ्य के परोक्ष उदाहरणों की कमी नहीं है। हाल ही में देखी गई फिल्म ‘ओपनहाइमर’ ने मेरी इस कही बात की पुष्टि की है। हिरोशिमा, नागासाकी प्रकरण में भी इस बात की गंध मिलती है। साधना के माध्यम से शून्यता में जाकर मानव कल्याण के लिए वरदान प्राप्त करने के पश्चात अब यह मानव पर है कि वह अपनी थैंकफुलनेस सुप्रीम पॉवर के प्रति अभिव्यक्त करे या फिर इसका श्रेय स्वयं मनुष्य के इगो, अहं को पुष्ट करते हुए मानव इंटेलिजेंस को दे। दोनों ही स्थितियों के परिणाम इतिहास में देशों, व्यक्तियों के विकास व विनाश की घटनाओं के रूप में देखे जा सकते हैं। ध्यान रहे आज हम सर्वशक्तिमान वैक्यूम, शून्य, खाली, स्पेस की यानी मेरे हिसाब से शिवशक्ति की बात कर रहे हैं।

जब आपका एक पैर आगे की ओर उठा हुआ होता है तो उसकी दिशा भविष्य की ओर है। मगर यह न भूलें कि अभी आपका एक पैर जमीन से टिका हुआ है। जब आपका एक पैर पीछे की ओर जाने को उठा है तो उसकी दिशा भूतकाल की ओर है। मगर यहां भी अभी एक पैर जमीन से टिका हुआ है। जब दोनों पैर साथ-साथ हैं, एक दूसरे से जुड़े हुए हैं तब ऐसी स्थिति में आप वर्तमान काल में हैं। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने बहुत सुंदर दृष्टिकोण के अंतर्गत इस स्थिति को भविष्य की आधुनिकता और विरासत में मिली परंपरा से जोड़कर देखा है। शून्यता, जो कि मध्य की स्टेट है, की बातों के अंतर्गत हम इसे देखेंगे। जब आप वर्तमान में ठहरने के लिए दोनों पैरों के लिए बराबर स्पेस का निर्माण कर लेते हैं, तब आपकी क्षमता या केपेसिटी दूसरों की तुलना में दुगुनी हो जाती है। क्योंकि दूसरे लोग भूतकाल में बहुत अधिक या फिर भविष्य काल के ख्याली पुलाव बनाने में डूबे हुए होते हैं। यह साफ कर दूं कि आज हम शून्य को ऊर्जा स्थान के संदर्भ में देखने जा रहे हैं। स्पेस-टाइम के सापेक्ष। सृष्टि के अस्तित्व के बारे में प्रचलित नागार्जुन के शून्यवाद या सांख्य दर्शन या निहिलिज्‍म या पदार्थ से जुड़े संसार निर्माण की अवधारणाओं की हम चर्चा नहीं करेंगे। यहां हम विशुद्ध ऊर्जा की दुनिया में हैं।

प्रकाश सृष्टि का सबसे महीन धागा है, आंखों के लिए बना हुआ। तरंग रूप में डोलता-डोलता,हर समय जैसे हमारी ही तरफ आता हुआ। आवाज हमारी गुरू है इस महीन तरंग के लिए हमें तैयार करती हुई। यदि आप में संकेतों को पढ़ने और बूझने की समझ है तो आप हर क्रिया के कारण और उस क्रिया के होने को पहले ही पकड़ लेंगे। और यदि यही समझ आपने लगातार अपने में विकसित की हुई हो तो हर क्रिया के आने वाले कारण की निम्नतम आवृत्ति को भी पढ़ पाने, महसूस करने में आप सक्षम होंगे। आवाज हमें सृष्टि की हर प्रकार की तरंग के प्रति प्रशिक्षित करती है और अंतत: प्रकाश की तरंग के प्रति भी। इस तरह एक दिन हम लाइट एंड साउंड के संसार के ऑर्केस्ट्रा के साथ झूमने के लिए तैयार हो जाते हैं।

जैसे हर रोग या बीमारी जो वातावरण में मौजूद है वह वातावरण में अपनी उपस्थिति के संकेत छोड़ती रहती है और इन संकेतों को उनके विशेषज्ञ पहचान जाते हैं। ठीक इसी तरह रोग जब वातावरण के बाद शरीर में प्रवेश करता है तो रोग के संकेत अधिक स्पष्ट रूप से शरीर दर्शित करता है। इस तरह कहा जा सकता है कि मनुष्य जीवन से संबंधित उपयोगी या हानिकारक संकेत सूक्ष्म रूप से यानी निम्नतम आवृत्ति में वातावरण में पहले से मौजूद होते हैं, शरीर नामक यंत्र में प्रवेश के पहले। अगर इस निम्नतम आवृत्ति के प्रति सजग नहीं हुए तो अगली बढ़ी हुई आवृत्ति के रूप में यह रोग मनुष्य शरीर में दर्शित होता है।

प्रकृति में ऊर्जा का आना यानी प्रवेश और ऊर्जा का निकल जाना यानी निर्गम एक निश्चित अंतराल में स्वत: घटता रहता है। रोग या बीमारी ऊर्जा के निर्गम के लिए बने हुए द्वार हैं। जैसे पहिए में से हवा बाहर न निकल जाए इस हेतु उसमें वाल्व यानी द्वारपाल की व्यवस्था होती है, ठीक वैसे ही हमारी पांचों इंद्रियां और इंट्यूशन शरीर की ऊर्जा के संरक्षण के लिए नियुक्त द्वारपाल, गार्ड या गेट्स हैं।

प्रश्न उठता है इस शरीर नाम के यंत्र में शून्यता का निर्माण किया कैसे जाए? यह शरीर तो एक समुंदर जैसा ठहरा जहां हर पल लहर दर लहर उठती ही रहती है। ऐसा लगता है इस समंदर को रोक सके ऐसी कोई ताकत ही नहीं। किसी शायर ने कहा है-

एक दिन ये होगा कि आंख से आंसू भी न बहेंगे,
ये चांद सितारे भी ठहर जाएंगे एक दिन।

यानी जिस दिन आप ग्रेविटी का राज जान जाएंगे उस दिन दुनिया की सारी ताकत आपकी मुट्ठी में होगी। अब आगे बढ़ते हैं।
हमारे हर विचार में बारीक ग्रेविटी होती है जिसमें सतत् वृद्धि आते-जाते विचार ग्रहण कर हम स्वयं करते हैं। आपको हैरत होगी जानकर कि एक दिन में हम अपने भीतर तकरीबन साठ हजार प्रकार के विचारों का सामना करते हैं। तभी तो विचारों का झंझावात इतना सघन होता है कि इस अरण्य से सही-सलामत बाहर निकल आना किसी चमत्कार से कम नहीं। इसके लिए संकल्प चाहिए, तपस्या चाहिए। विचार ही आपके धन या ऋण प्रकार के व्यक्तित्व को तैयार करते हैं।

जैसा कि हमने ऊपर जिक्र किया कि वैज्ञानिक इसलिए अपने नए विचारों को धर्म के मंच से जाहिर करने से बचते हैं क्योंकि इतिहास में धार्मिक डॉमिनेंस के समाज ने नए विचारों का खुलकर स्वागत करने की बजाय क्रूर रवैया ही अपनाया। ब्रूनो को जिंदा जलाने और गैलीलियो को जेल की सजा की कहानी से हम सब परिचित हैं ही। विज्ञान और धर्म के बीच जो एक अलग फोर्स काम करती है वह है आध्यात्मिकता जिसका इंस्टिट्यूटलाइजेशन धर्म की तुलना अब तक बेहद कम है। यही वह फोर्स है जो नए विचारों की खिड़की खोलती है और श्रेय मिलता रहा है विज्ञान और धर्म की प्रेरणाओं की कथाओं को। याद करें कि एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जॉब्स या बीटल्स के प्रेरणा पुरूष भारतीय आध्यात्मिक विभूतियां ही थे।

शून्यता दरअसल बासीपन और ताजगी के बीच बनी हुई एक लकीर है जिसका आकार अधिक बड़ा करने की जरूरत है। यह जगह अपने आप में बड़ी डायनामिक है। यह परमानंद का ठिकाना है। यहां रहकर आप दृष्टा या स्क्रीन हो जाते है। निर्विकार एकदम कमल पुष्प की तरह निर्लिप्त। इसी जगह पर पारंपरिक गुणवत्ता के विचारों से दूरी बनाते ही नए आयाम के विचार निकट आते हैं। यहां ‘मैं’ के तिरोहित होने, निश्चेष्ट और निष्प्रभ हो जाने की स्थिति है। पारंपरिक यानी जो संसार के विचार हैं। यानी माया की दुनिया के विचार, द्वैत की दुनिया के विचार, कहीं पहुंचने न देने के लिए अनादि काल से कुख्यात।

चौथे आयाम के बाद के आयामों की दुनिया समय को शून्य करने के बाद सामने आती है। जिस दिन चार आयामों वाले दर्पण में से ग्रेविटी चली जाती है आप मोह से मुक्त हो जाते हैं। हां! सभी प्रकार के मोह से मुक्त, अंदरूनी व बाहरी। अब आप तर्क और भावना से परे जा चुके हैं। यह दु:ख और सुख की अनुभूति से परे का बिंदु है। यह एक तरंग के फेज ट्रांजिशन के वक्त का ठीक-ठीक समय है। यहीं स्खलन भी है, निवृत्ति है। समंदर ऐसे में थम जाता है, जम जाता है। ऐसा होते ही आप समतल हो जाते हैं, सारे आयामों के प्रति ग्राह्य। अब कोई भी, किसी प्रकार का विभ्रम, कन्फ्यूजन नहीं है। अब समुंदर का ठहर जाना आपके हाथ में हो गया है। आप पाते हैं कि यही वह जगह है जहां आकर समय ठिठक जाता है। हां! यही स्थान समय का स्टीयरिंग है। इंतजार है तो बस थामने वाले का और वह कोई भी हो सकता है, आप भी। अब चांद-सितारे आपके इशारे पर ठहर जाने को बेताब हैं। पर अब आपको मालूम है ऐसा करने की जरूरत नहीं। दुनिया को अपनी रफ्तार से,अपने ढंग से चलने देना चाहिए। अब आप स्पेस-टाइम के मुताबिक हैं। तभी तो अपनी सतह को पारदर्शी करते ही,शफ़्फाफ़ करते ही तेज प्रकाश से आपका समूचा आसपास जगमगा उठता है। फिर एक शायर आपसे कुछ यूं मुखातिब होता है-

शफ़्फाफ़ बदन चितवन नजर भी है,
तुम क्या हो गए हो कुछ खबर भी है।

तभी तो कहता हूं कि-

तुम जब मेरा ध्यान करती हो
तब मैं तुमको देखते हुए तुममें प्रकाश रोपता हूं।
हां, प्रकाश! उसका दिया प्रकाश
बिल्कुल सही,उसके दिये का प्रकाश!
प्रकाश जो पूरा करता है सब कुछ, वह प्रकाश!
वह प्रकाश जिसकी प्रतीक्षा हर सुरंग करती है
अपनी उम्र तक
सबकी प्रतीक्षित आंखों में आकर
ठहर जाने वाला प्रकाश!
एक बार आ जाए तो
फिर कभी न जाए वो प्रकाश
हां! वह प्रकाश!

सूचना और ज्ञान के बीच विज्‍डम का, बोध का, समझ का बादल हो तो दोनों के बीच खिंचा एक तार जाहिर हो आता है। ब्रह्म मुहूर्त के बाद अलस्सुबह ध्यान के बाद ध्यान से देखने पर उस तार पर आ बैठी ओस की बूंद बताती है कि चैतन्य का बादल यहीं कहीं है। अबकी बार अपने वाहन में पेट्रोल भरवाने जाएं तो पम्प के पास वहां यह लिखा जरूर देखें और अपने और ऊर्जा के संदर्भ में सोचें: इंश्योर जीरो बिफोर डिलीवरी।

एक शायर की बात से आज की इस पूरी बात को विराम देते हैं –

हजारों-हजार साल नर्गिस अपनी बेनूरी पर रोती है
तब कहीं जाकर होता है चमन में दीदावर पैदा।

raghvendratelang6938@gmail.com

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