मैक्लोडगंज: बेरंग जीवन में, ललछौहीं आभा लिए दिव्य स्थान
अनुजीत इकबाल, लखनऊ
अवलोकितेश्वर के रत्नजटित मुकुट सा झिलमिलाता, महान जागृति का स्थान, मैक्लोडगंज हिमाचल की धरती के शीश पर सुसज्जित है। तिब्बती संस्कृति को खुद में समाए हुए, हिमाचल का ये शहर छोटे ल्हासा के रूप में भी जाना जाता है। यहां आपको तिब्बती जीवन की झांकी देखने को मिल जाएगी। इसके अलावा तिब्बती गुरू दलाई लामा का घर भी यही है। यहां आपको असंख्य बौद्ध मठ भी देखने को मिल जाएंगे, जो दुनिया के हर पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
इस सम्मोहक इलाके के अलौकिक सौंदर्य से छूटना लगभग असंभव है। वहां के दर-ओ-दीवारों पर एक पल को भी धूप टिकती नहीं, धूप की जितनी गति उतने क्षण-प्रतिक्षण मैक्लोडगंज के नए रूप। दृष्टि की एक सीमा है, किस सीमा तक जाएगी! बुद्ध की चेतना से रोशन इस महारहस्यमयी भूमि को शब्दांकित करना क्या संभव है?
पारस्परिक सहयोग और पड़ोसी देश से प्रेम की महान घटना का साक्षी यह स्थान किसी हिमालय भिक्षु की तरह ध्यानमग्न बैठा नजर आता है। निर्वासित तिब्बती सरकार का मुख्यालय यहीं है, जिनको भारत ने मुश्किल समय में दिल खोल कर सहयोग दिया था और यह स्थान रहने के लिए दे दिया था। बौद्ध भिक्षुओं की आवाजों से धीमे-धीमे गुंजरित अनाम झींगुरों के समूह राग अलाप भरता यह स्थान कितना जीवंत है। इस क्षेत्र का उल्लेख ऋग्वेद और महाभारत जैसे प्राचीन हिंदू ग्रंथों में है। इसके अलावा चीनी यात्री ह्यून त्सांग द्वारा भी इस क्षेत्र का उल्लेख किया गया है। बाद में, मैक्लोडगंज का नाम तत्कालीन पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर डोनाल्ड फ्रेल मैक्लोड के नाम पर रखा गया था। मई 1960 में, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दलाई लामा और उनके अनुयायियों को मैक्लोडगंज में बसने की अनुमति दी, जहां उन्होंने नामग्याल मठ की स्थापना की और बाद में तिब्बती कार्यों और अभिलेखागार की लाइब्रेरी खोली जो तिब्बती विज्ञान के लिए सबसे महत्वपूर्ण संस्थानों में से एक है।
यहां की औसत ऊंचाई 6,831 फीट है और यह कांगड़ा घाटी में, धौलाधार पहाड़ों की छाया में स्थित है। यह स्थान हर पल कहानी सुनाता है उस युवा राजकुमार की, जिसने दुनिया के सभी कष्टों और पीड़ाओं को समाप्त करने की तलाश में आत्मज्ञान प्राप्त किया। जिसने गहन ध्यान की अवस्था में शून्यता के अनंत होने का साक्ष्य पाया। ‘बुद्ध होना’ निश्चित ही सीमाबद्ध होगा जैसे कि वो राजकुमार जो लगभग छब्बीस सौ साल पहले था। शून्यता के द्वारा ही जीवन का, अस्तित्व का, अनंत विस्तार संभव है, यह ज्ञान सहज सुलभ ही मैक्लोडगंज में गूंजते हुए मंत्र दे देते हैं। यहां लगभग हर तिब्बती के हाथ में माला होती है, दुनियादारी निभाते हुए भी वो बुद्ध की चेतना में रचे बसे रहते हैं। सुंदर मठ, झरनें, झीलें और शांत कैफे, जहां आज का कर्कश विदेशी संगीत नहीं बल्कि धीमे स्वर में चलते बौद्ध मंत्र मैक्लोडगंज को एक दिलचस्प पर्यटन स्थल बनाने में योगदान करते हैं।
मैक्लोडगंज में रहने का आनंद बस वहां ‘उपस्थित होना’ है और बर्फ से ढंके धौलाधार को देखते हुए कुछ शांत समय बिताना है। यहां रहने के लिए गेस्ट हाउस से लेकर होमस्टे और रिसॉर्ट्स तक पर्याप्त विकल्प प्रदान करता है। चारों तरफ ‘फ्री तिब्बत” के स्लोगन वाले पोस्टर, वाल पेंट खुद में तिब्बतियों के संघर्ष की कथा सुनाते हैं। अगर आपको एक क्रांति और तिब्बत की संस्कृति की झलक देखनी हैं तो मैक्लोडगंज एक सबसे बेहतर जगह है।
सड़कों पर घूमते हुए बहुत आनंद आता है। सड़कों और कैफे में भिक्षु, तिब्बती मसाज पार्लर, टैटू स्टूडियो, हस्तशिल्प, पेंटिंग और विचित्र थांगका कलाकृतियां आप ले सकते हैं। यहां की स्थानीय वाइन भी अच्छी है, जो प्लम, ऐप्पल, कीवी जैसे विभिन्न स्वादों में उपलब्ध हैं। यदि आप खाने के शौकीन हैं, तो मैक्लोडगंज आपके लिए स्वर्ग है। स्वादिष्ट थुकपा, मसालेदार शप्ता और टिंगमो का भोजन अद्वितीय है। इज़राइली, अमेरिकी, चीनी खाना भी सहज प्राप्त हो जाता है।
पूरा शहर पैदल घूमा जा सकता है। सबसे सुंदर है दलाई लामा मंदिर जो धर्मशाला क्षेत्र की अन्य सभी इमारतों से ऊपर है। मैरून और सुनहरे रंग के इस सुंदर भवन के पीछे ऊंचे पहाड़ हैं। मंदिर का बाहरी भाग देखने योग्य वस्तुओं से भरा हुआ है। बाहरी क्षेत्र में मूर्तियां और विशिष्ट तिब्बती सजावटें हैं। मंदिर में शांति की वास्तविक अनुभूति होती है, हर वक्त वहां प्रार्थना चल रही होती है।गर्भगृह में प्रतिष्ठित प्रतिमा में बुद्ध की मूर्ति बहुत ही जीवंत है। यह बुद्ध की बड़ी प्रसिद्ध मुद्रा है और बुद्धत्व-प्राप्ति में आखि़री अड़चन पर विजय की मुद्रा है। परिभाषाएं, कथाएं समाप्त हो जाती हैं लेकिन अपरिभाषित और अकथ्य बना रहता है। बैठे हुए बुद्ध ऐसे लगते हैं मानो अभी ही वो धर्मचक्र प्रवर्तन के लिए उठ खड़े होंगे। चीजें समाप्त हो जाती हैं, सिर्फ अनंत सत्ता बनी रहती हैं। प्रकृति के विशाल प्रांगण में किसी एकांत कोने में ‘अनिमेश लोचन’ बुद्ध सदियों से किसी रहस्य को छिपाए खड़े हैं, जिसको कोई रहस्यदर्शी भी न सुलझा पाए। वो रहस्य जो चेतना की सतह पर प्रतिबिंबित हो जाता है। इसको देखकर सृजनात्मक शून्यता का अहसास होता है। निःसंदेह यह रूपांतरण और जीवन में शांति प्राप्त करने का प्रतीक बना हुआ है। रंग बिरंगे पताकाओं की लड़ियां, जीवन के अंधेरे में आशा का दामन थामे लोगों को आश्वस्त करती प्रतीत होती हैं। जीवन के भिक्षापात्र में सबको सुख, दुख, निंदा, घृणा, करुणा, स्नेह, त्याग, ईर्ष्या जैसे भावों का मधुर, कटु, तिक्त और काषाय भिक्षान्न मिलता है लेकिन बुद्ध समझा रहे हैं कि वीतरागी मन से सब कुछ निर्लिप्त भाव से निगल जाओ। पंचभौतिक रसों से कौन बच पाता है।
बेरंग दिखते जीवन में, ललछौहीं आभा लिए यह स्थान दिव्य है।
यहां गुरु रिंपोचे या सरल शब्दों में गुरु पदमसंभव जी की मूर्ति भी है। अपनी ही असंभव सीमाओं से रोमांचित लगभग दो हजार साल पहले जन्मे इस दिव्य योगी को देख लोग कितने आल्हादित हुए होंगे, जब उनको दूसरा बुद्ध कहा गया होगा। ‘बुद्धं शरणं गच्छामि” हर दृष्टि को एक नए कोण सा दिखता और समझ आता यह मंत्र, ज्यामिति की किसी प्रमेय सा जटिल लेकिन उतना ही सरल, इतना विशुद्ध और सुवासयुक्त कि सारे संसार को इस मंत्र को, अपने हृदय के अंतरतम कोष्ठ में प्रवेश देना ही पड़ा।
आप यहां संग्रहालय और पुस्तकालय का आनंद ले सकते हैं जो परिसर के भीतर है। आप क्षेत्र के इतिहास, धर्म और अन्य विशिष्ट विवरणों के बारे में पढ़ सकते हैं। अपने आप को बुद्ध की कृपा और तिब्बती इतिहास में डुबाना भी एक विशिष्ट अनुभव है।
आध्यात्मिक अनुभव के इलावा तिब्बती लोगों से बात करना, उनको ‘ताशी डेलेक’ बोलकर गुजरना बहुत अच्छा लगता है। वहां आपको तिब्बती विधि से बने याक चीज़ केक, गाजर का केक, चुकंदर रूट केक, सेब दालचीनी केक सब मिलेंगे।
दो किलोमीटर दूर भगसूनाग तक पैदल चलें और झरने तक के लिए ट्रेक करें और शिव कैफे में चाय का आनंद लें। इसके इलावा तुषिता ध्यान केंद्र धर्मकोट, त्रिउंड ट्रेक, डल लेक, नड्डी, ग्युटो मठ सिद्ध बाड़ी, डिप त्से-चोक लिंग मठ, सेंट जॉन इन द वाइल्डरनेस 1850 के दशक में बना एक बहुत पुराना चर्च इत्यादि भी वहां की सुंदरता बढ़ाते हैं। सीट ऑफ हैप्पीनेस टेम्पल, डेडेन त्सुग्लाखांग, मैक्लोडगंज से 15 किलोमीटर दूर नोरबुलिंग्का इंस्टीट्यूट के अंदर स्थित है। यह संस्थान तिब्बती कला और संस्कृति का प्रमुख केंद्र है। यहां पेंटिंग, मूर्तिकला, कपड़े, लकड़ी का काम जैसे विभिन्न तिब्बती कला रूपों को सिखाया जाता है। इसमें तिब्बती संस्कृति को दर्शाने वाला एक गुड़िया संग्रहालय भी है जो कि बहुत ही सुंदर है।
यहां सबको आना चाहिए। हवाई मार्ग से गग्गल हवाई अड्डा पास है, लेकिन उड़ान की आवृत्ति कम है और टिकट की कीमत अधिक है। सड़क मार्ग से बहुत सारी आरामदायक एचआरटीसी बसें उपलब्ध हैं। बसें मुख्य चौराहे मैक्लोडगंज पर रुकती हैं। धर्मशाला से मैक्लोडगंज सिर्फ 9-10 किलोमीटर दूर है। धर्मशाला बस स्टेशन से मैक्लोडगंज के लिए लगातार टैक्सियां उपलब्ध हैं। इसके अलावा प्राइवेट कार से आना नि:संदेह सब से आसान है।
हिमाचल की धरती पर बना मैक्लोडगंज इतना सुंदर स्थान है कि जिसे शब्दों की सीमा में नहीं बांधा जा सकता। जो अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता, हम उस अनुभव को अभिव्यक्त करने का प्रयास करते हैं लेकिन यह काम आसान नहीं।
बेहद खूबसूरत वर्णन किया गया है।