जे.पी.सिंह, वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में नकली दवाई का 35 फीसदी हिस्सा भारत से ही जाता है। इसका करीब 4000 करोड़ रुपए के नकली दवा बाजार पर कब्जा है। भारत में बिकने वाली लगभग 20 फीसदी दवाइयां नकली होती हैं और जेनरिक दवाइयों के बारे में माना जाता है कि ये कम गुणवत्ता की होती हैं। सिर दर्द और सर्दी-जुकाम की ज्यादातर दवाएं या तो नकली होती हैं या फिर भी घटिया किस्म की होती हैं। 38 फीसद दवाएं मानकों के अनुरूप न होने के कारण पर्याप्त असर नहीं करती हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देश पर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोलॉजिकल्स ने सर्वे किया तो बाजार से ज्यादा दवाओं की खराब गुणवत्ता सरकारी अस्पतालों में मिली।
घरेलू दवाओं में लगभग 25% का हिस्सा नकली दवाओं का है। इस वजह से देश में एक वर्ष में 10 लाख लोगों की मौत हो जाती है। नकली दवाएं कभी वियाग्रा जैसी विदेशी और महंगी गोलियों तक ही सीमित थीं मगर अब यह कैंसर, कफ सिरप, एंटीबायोटिक,विटामिन सप्लीमेंट और दर्द निवारक दवाओं जैसे क्रोसिन, बीटाडीन, कोसाविल सिरप और कई अन्य लोकप्रिय दवाओं तक फैल गई हैं। इसप्रकार मूल ब्रांडेड उत्पादों के समान पैकिंग, रंग, नाम, लोगो और डिजाइन वाले अनगिनत डुप्लिकेट उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं। इस प्रकार, इन डुप्लिकेट उत्पादों के निर्माता और आपूर्तिकर्ता बड़ा मुनाफा कमाते हैं।
भारत जेनेरिक दवाओं का दुनिया का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता होने के नाते नकली और बेअसर दवाओं का केंद्र बन गया है। ‘द लैंसेट’ द्वारा किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि दक्षिण-पूर्व एशिया में बेची जाने वाली 3 में से 1 मलेरियारोधी दवा नकली हैं। भारत में परीक्षण की गई लगभग 7% दवाएं खराब गुणवत्ता की पाई गईं और कई नकली थीं। कथित तौर पर भारत में हर साल मलेरिया के 15 लाख मामले दर्ज होते हैं। हैरानी की बात यह है कि दुनिया भर में आपूर्ति की जाने वाली 75% नकली दवाएं भारत में उत्पन्न होती हैं, इसके बाद 7% मिस्र से और 6% चीन से आती हैं।
एक आंकड़े के अनुसार नकली दवाओं का सालाना 200 अरब डॉलर से अधिक का अवैध वैश्विक कारोबार बन गया है। बेची जाने वाली दवाओं के प्रकार में मधुमेह और हृदय रोग के लिए पुरानी दवाओं से लेकर कैंसर की दवाओं और एचआईवी के लिए एंटीरेट्रोवाइरल तक शामिल हैं। साथ ही, इंटरनेट और सोशल मीडिया पर फेंटेनल युक्त नकली प्रिस्क्रिप्शन दवाएं बेची जा रही हैं, जिससे पूरे अमेरिका में घातक ओवरडोज़ में वृद्धि हो रही है। नकली दवाएं गंभीर दुष्प्रभाव पैदा कर सकती हैं और उस बीमारी का इलाज करने या रोकने में विफल हो सकती हैं जिसके लिए वे दी जा रही हैं।
दवाओं में पर्याप्त डोज भी नहीं
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, प्रत्येक 10 में से एक दवा निम्न और मध्यम आय वाले देशों में विफल हो जाती है क्योंकि वे घटिया या नकली होती हैं। इससे न केवल स्वास्थ्य सेवा में जनता का विश्वास कम होता है, बल्कि इससे मौत भी होती हैं जबकि इन मृत्यु को रोका जा सकता है। उदाहरण के लिए, नकली एंटीबायोटिक्स लेने के बाद हर साल 72,430 से 169,271 निमोनिया प्रभावित बच्चों की मृत्यु हो जाती है। कुछ नकली दवाओं में असली एंटीबायोटिक्स या एंटीवायरल होते हैं लेकिन उत्पाद लेबल पर सूचीबद्ध खुराक की तुलना में बहुत कम मात्रा में होते हैं। यह बीमारी का पूरी तरह से इलाज करने के लिए पर्याप्त नहीं है। मतलब बीमारी को ठीक करने के लिए पर्याप्त डोज नहीं मिलता है।
अब, ऑनलाइन फ़ार्मेसी के उद्भव के कारण, दुनिया भर के देश नकली दवाओं और उनके प्रभावों से जूझ रहे हैं। ग्लोबल एलायंस फॉर सेफ ऑनलाइन फार्मेसीज के 2021 के सर्वेक्षण के अनुसार अमेरिका में उत्पाद बेचने वाली सभी ऑनलाइन फ़ार्मेसी FDA अनुमोदित हैं और सुरक्षा नियमों का अनुपालन करती हैं। हालांकि, उसी अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 95% ऑनलाइन फार्मेसी अवैध रूप से चल रही हैं।
खराब गुणवत्ता का आरोप वाली दवा कंपनियों ने खरीदा इलेक्टोरल बांड
अभी पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट द्वारा इलेक्टोरल बांड योजना को असंवैधानिक घोषित करने के बाद फार्मा सेक्टर के जो आंकड़े अधिकारिक रूप से सामने आये हैं वे बहुत चौंकानेवाले और अत्यंत चिंताजनक हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 14 मार्च को चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि भारत में पैंतीस दवा कंपनियों ने चुनावी बांड के माध्यम से राजनीतिक दलों को लगभग 1,000 करोड़ रुपये का योगदान दिया है। इनमें से कम से कम सात कंपनियों की खराब गुणवत्ता वाली दवाओं के लिए जांच की जा रही थी जब उन्होंने बांड खरीदे थे। डेटा को खंगालने पर पता चला है कि 23 फार्मा कंपनियों और एक सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल ने इलेक्टोरल बांड के जरिये करीब 762 करोड़ रुपए का चंदा राजनीतिक दलों को दिया है।
इलेक्टोरल बांड खरीदने वाली कंपनियों में शामिल हैं:
- टोरेंट फार्मास्यूटिकल लिमिटेड
- सिप्ला लिमिटेड
- सन फार्मा लेबोरेटरीज लिमिटेड
- जाइडस हेल्थकेयर लिमिटेड
- हेटेरो ड्रग्स लिमिटेड और हेटेरो लेब्स लिमिटेड
- इंटास फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड
- आईपीसीए लेबोरेट्रीज़ लिमिटेड
- ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड
- हैदराबाद स्थित एमएसएन फार्माकेम प्राइवेट लिमिटेड
- डिवीज़ लैब्स
- ल्यूपिन
- मैनकाइंड
- माइक्रो लैब्स
ऐसे भी उदाहरण हैं जिनमें किसी कंपनी ने इलेक्टोरल बांड खरीदे और कुछ दिन बाद उस पर छापेमारी हुई और उसके बाद कंपनी ने फिर इलेक्टोरल बांड खरीदे। इन कंपनियों में भी कुछ फार्मा कंपनियां और एक अस्पताल शामिल हैं:
यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल (मुख्यालय तेलंगाना), डॉ. रेड्डी’ लैब (मुख्यालय तेलंगाना का हैदराबाद), मेघा इंजीनियरिंग, ऑरबिन्दो फार्मा (मुख्यालय तेलंगाना का हैदराबाद), नैटको फार्मा (मुख्यालय हैदराबाद), एमएसएन फार्माकेम लिमिटेड (मुख्यालय हैदराबाद),यूजिया फार्मा स्पेशलिटीज (मुख्यालय हैदराबाद),अलेम्बिक फार्मास्युटिकल्स (मुख्यालय गुजरात का वडोदरा), एपीएल हेल्थकेयर लिमिटेड (मुख्यालय हैदराबाद)
100 रुपए में बनी की कैंसर की दवा 3 लाख में
पिछले दिनों दिल्ली पुलिस ने नकली दवा बनाने वाले गिरोह का भंडाफोड़ किया है। हद तो तब हुई जब यह पता चला कि 100 रुपये खर्च कर ये लोग तीन लाख में कैंसर की दवा बेच रहे थे। दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच की टीम कैंसर के इलाज के दौरान होने वाली कीमोथेरेपी की नकली दवा बनाने और इसे बेचने वाले सिंडिकेट का भंडाफोड़ किया है। मोती नगर में पैकिंग यूनिट थी। ये लोग नामी कंपनियों की दवा की शीशी 5000 रुपये में खरीद कर 100 रुपये की नकली दवा भरते थे। इसके बाद उसी दवा को 1 से 3 लाख रुपये में बेचते थे।
जानलेवा कैंसर का इलाज पहले से ही महंगा है और अब इस नकली दवा की मार से जिंदगी से तो खिलवाड़ हो ही रहा है साथ ही उम्मीद भी मर रही है। दवा उम्मीद है और इंसान अपना सबकुछ बेचकर भी आखिरी दम तक उस उम्मीद को खरीदने की कोशिश करता है। देश की राजधानी दिल्ली में जब यह हाल है तो बाकी जगहों के लिए क्या कहा जा सकता है। नकली दवा सिर्फ कैंसर ही नहीं बल्कि दूसरी बीमारियों के लिए भी खतरनाक है।
सरकार यह कर सकती है
नकली दवाओं का कारोबार न केवल एक अपराध है, बल्कि यह मानवता के खिलाफ अपराध भी है। हमें इस समस्या के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और इसे पूरी तरह से खत्म करने के लिए प्रयास करना चाहिए। कैंसर के मरीजों के साथ नकली दवाओं का इस्तेमाल एक अमानवीय कृत्य है। इस समस्या से निपटने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने चाहिए और सरकार को इस दिशा में कड़े कदम उठाने चाहिए। इस समस्या से निपटने के लिए कठोर कानून की जरूरत है। नकली दवाओं के कारोबार में शामिल लोगों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए।
क्या सरकार और हॉस्पिटल यह सुनिश्चित करेंगे कि दवा के इन केंद्रों (उनकी ओर से बताए सेंटर) से असली दवा ही मिले साथ ही आसानी से उपलब्ध हो। केवल विश्वसनीय दवा केंद्रों को ही सीएमओ से मान्यता चाहिए। सरकार और स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों को मिलकर एक ऐसा मैकेनिज्म तैयार करना चाहिए जो इस बात की पूरी गारंटी दे सके कि मरीजों को दवा असली ही मिले।