पंछी बनूं उड़ती फिर नील गगन में… यह एक गाने की पंक्ति भर नहीं है बल्कि लगभग हर इंसान ने अपने जीवन में एक बार तो ऐसा सोचा ही होगा। शायद यही कारण है कि पंछियों की दुनिया हमें बहुत लुभाती हैं। उनका आसमान हमें ललचाता है। उनके रंग हमें हैरान करते हैं। उनकी चहचहाहट हमें संगीत से भर देती है। परिदें हमारी दुनिया की खींची लकीरों को नहीं मानते हैं। वे हर साल मीलों दूर से एक देश से दूसरे देश चले आते हैं। ये प्रवासी समय पूरा होने पर अपना डेरा उठा कर चल भी देते हैं। बिना किसी कम्पास, बिना किसी नक्शे के।
परिंदों की इस दुनिया पर कई तरह के कहर भी हैं, जिनके कारण पक्षियों की कई प्रजातियां खतरे से घिर गई हैं। जलवायु परिवर्तन व ग्लोबल वार्मिंग ने पक्षियों का उतना ही नुकसान किया है जितना उनके शिकार ने। पक्षी हमारी दुनिया को खूबसूरत ही नहीं बनाते हैं बल्कि वे पारिस्थितिकी तंत्र का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। इसलिए पक्षियों की रक्षा करना हमारे खुद के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। यह तब संभव होगा जब हम परिंदों के बारे में जानेंगे, उन्हें जरा और पहचानेंगे। इसी कोशिश का नाम है, रंग आसमानी। रंग आसमानी में हम जानेंगे परिंदों की दुनिया और उसके विविध आयाम। -संपादक
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फोटो और विवरण: देवेंद्र दुबे
सीनियर फोटो जर्नलिस्ट एवं पक्षी गाथा फेसबुक पेज के संचालक
ये है चमकीले काले रंग का ब्लैक ड्रोंगो पक्षी। इसकी निडरता, हौसला और आक्रामकता के कारण इसे जंगल का कोतवाल कहा जाता है। ये अपने से काफी बड़े चील, बाज जैसे पक्षियों को भी अपने क्षेत्र में घुसने नहीं देता और उनपर हमला कर भगा देता है। ये जंगली कौए जैसे गुस्सैल पक्षी से भी भिड़ जाता है, इसलिये इसे King crow भी कहा जाता है।अपने बच्चों को बचाने के लिए अपने से कई गुना बड़े शिकारी पक्षियों से भिड़ जाने की आदत के कारण ही इन्हें कोतवाल का दर्जा मिला है। विशाल चील भी इसके हवाई हमले से बचकर भागती है। अपने से बड़ी टिटहरी पर भी यह हमला कर देता है।
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इनके इस आक्रामक रवैये के कारण दूसरे पक्षी शिकारियों से सतर्क हो जाते हैं। शायद यही कारण है कि छोटे पक्षी इन ब्लैक ड्रोंगो पक्षियों के आसपास घोंसला बनाते हैं ताकि इनकी सुरक्षा में उन पक्षियों के बच्चे सुरक्षित रह सके। इसके काले रंग के कारण इसे भुजंगा भी कहा जाता है। गर्मियों मे इसका प्रजनन काल होता है। इस समय ये और आक्रामक हो जाता है। यह प्रजाति इरान से लेकर भारत व दक्षिण पूर्व एशिया मे इंडोनेशिया तक पाई जाती है। भोपाल और आसपास ये बड़ी संख्या मे पाए जाते हैं।
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