
- आशीष दशोत्तर
साहित्यकार एवं स्तंभकार
वक़्त से पहले वक़्त को समझने की बात
इक सदी तक न जहां पहुंचेगी दुनिया सारी,
एक ही घूंट में दीवाने जहां तक पहुंचे।
अपने गीतों और गीतिकाओं से उम्र के आठ दशक तक साहित्य संसार को समृद्ध करते रहे गीतकार गोपाल दास ‘नीरज’ का यह जन्मशती वर्ष है। नीरजजी के हर शेर, जिसे वे द्विपदिका कहा करते थे, में एक नया फ़लसफ़ा दिखाई देता है। जीवन और अध्यात्म के संदर्भों का एक अलग स्वरूप उनके यहां नजर आता है। यह शेर भी ज़िंदगी के कई दृष्टिकोण सामने रखता है। शाब्दिक रूप से देखें तो शेर यह कह रहा है कि जहां तक लोग एक सदी में भी नहीं पहुंच पाते हैं, वहां कोई एक घूंट पी कर पहुंच जाता है। इस दृष्टि से यह पीने-पिलाने वालों के लिए एक सूत्र वाक्य की तरह सामने आता है, लेकिन इस शेर को सिर्फ़ यही तक समझ कर छोड़ना ग़लत होगा।
यहां पहली पंक्ति मनुष्य की चाह और अपनी ख़्वाहिशों को पाने के लिए किए जाने वाले संघर्षों के सफ़र को बता रही है और दूसरी पंक्ति वहां तक पहुंचने का एक आसान सा रास्ता बता रही है। यहां ‘इक सदी’ और ‘सारी दुनिया’ इन दो शब्दों पर ग़ौर किया जाना चाहिए। एक सदी यानी बहुत लंबा वक़्त। इसके बारे में यह कहा जाता है कि इतने लंबे सफ़र को तय करना आज के इंसान के लिए बहुत मुश्किल है। जहां एक पल का भरोसा नहीं वहां इतने लंबे सफ़र के बारे में कोई कैसे सोच सकता है, लेकिन अगर शाइर यह कह रहा है कि एक सदी में जहां तक सारी दुनिया नहीं पहुंच पाएगी अर्थात जिस लक्ष्य को पाने के लिए सारी दुनिया मिलकर भी कोशिश करे तो उसे सौ सालों में भी नहीं पा सकती।
आख़िर वह क्या है जिसे सारी दुनिया पाना चाहती है? क्या वह दौलत है, क्या शोहरत है या कामयाबी है? क्या वह किसी की मोहब्बत है या कुछ और है, जिसे पाने के लिए सारी दुनिया पागलों की तरह दौड़ रही है। दिन-रात एक कर रही है। अपने आप से बेख़बर होकर लगातार भागती जा रही है। उसको पाने के लिए इतना सफ़र कर रही है, फिर भी उसे नहीं पकड़ पा रही है, अर्थात सब कुछ पा कर भी इंसान के पास सुकून नहीं है। उसकी चाहत कहीं ख़त्म नहीं हो रही है। हर ऊंचाई पर पहुंचकर उसे महसूस हो रहा है कि यह वह ऊंचाई नहीं है जिसकी उसे तमन्ना रही है। तो फिर वहां कैसे पहुंचा जा सकता है?
शाइर कहता है कि वहां पहुंचने के लिए एक सदी तक के लंबे संघर्ष की ज़रूरत नहीं है। वहां एक पल में भी पहुंचा जा सकता है। उस मंज़िल को एक पल में भी पाया जा सकता है बशर्ते इंसान का रास्ता सही हो। उसकी कोशिश लगातार होती रहे और मन में नेकी रहे तो वहां पहुंचने के लिए एक पल भी काफी है। इस एक पल को ही इंसान नहीं समझ पाता है और बरसों बरस न जाने कहां भटकता रहता है। शाइर ऐसे लोगों को अपनी मंज़िल तक पहुंचने का रास्ता बता रहा है।
इस शेर को तसव्वुफ़ के नज़रिए से देखा जाए तो यह बहुत ऊंचाई पर पहुंचता शेर महसूस होता है। शाइर कहता है कि आशिक और माशूक का रिश्ता अजीब होता है। आशिक अपने माशूक को पा लेने की चाह में सब कुछ कर गुज़रता है। इस पाने की चाह में उसकी दीवानगी देखते ही बनती है। यह दीवानगी तब तक परवान पर चढ़ी रहती है जब तक कि वह अपने प्रिय को पा नहीं लेता। इस सफ़र में बहुत मुश्किलें आती हैं मगर उसकी दीवानगी ऐसी होती है कि वह अपने माशूक को पा लेने की चाह में सब कुछ भूल जाता है। यह एक घूंट दुनियावी असरात को भुलाने की कोशिश है।
सीधे-सीधे कहा जाए तो जो अपने माशूक को पाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दे, उसकी दीवानगी में ख़ुद को समर्पित कर दे, तो वह एक पल में ही अपने माशूक को पा सकता है। वरना लोग ज़िन्दगी भर उसे पाने के लिए तरह-तरह के जतन करते रहते हैं और अंत तक उसे नहीं पाते हैं। अपने उस माशूक की चाह में पहले दीवाने तो बनो, दीवानगी का एक घूंट तो पियो, फिर देखो तुम कैसे सदियों के सफर को एक पल में ख़त्म करते हो।
दरअसल, यह एक रचनात्मक चरित्र की कामयाबी को अभिव्यक्त करता शेर भी है। एक रचनाकार के पास कल्पनाओं की अनंत उड़ान होती है। वह सब कुछ देख लेने की क्षमता भी एक रचनाकार के पास होती है जिसे आम आदमी नहीं देख पाता। और रचनाकार वही जो अपना सब कुछ भूल कर रचना प्रक्रिया में लगा रहे। अपने उस सृजन में लगा रहे जो उसकी तमन्ना है। यहां शाइर कह रहा है कि दुनिया वाले जिस बात को सदियों में नहीं समझ पाते हैं उस बात को एक रचनाकार अपनी कल्पना शक्ति से एक पल में ही समझ लेता है। इस कल्पना शक्ति को पाने के लिए उसे वह घूंट पीना पड़ता है जो उसे दीवाना बना देता है। दीवानगी के इस घूंट को पी कर एक रचनाकार अपने हालात की अक्कासी सदियों पहले ही कर लेता है।
सदियों पहले कही गई बात आज भी हमें प्रासंगिक तभी तो लगती है। इसीलिए इस शेर में जो सबसे ख़ास बात नज़र आती है वह यह कि दोनों मिसरों में ‘जहां’ का इस्तेमाल किया गया है। यानी एक रचनाकार ने उस जहान को पहले ही देख लिया है जहां ज़माना सदियों बाद पहुंचेगा। यह शेर वक़्त से पहले, आने वाले वक़्त की बात कहने वाले एक रचनाकार की दूरगामी सोच की ताईद कर रहा है।
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