
- राघवेंद्र तेलंग
सुपरिचित कवि,लेखक,विज्ञानवेत्ता
वीणा पर बजती एक दुर्लभ तान के सुरों में डूबते हुए यानी स्पेस-टाइम में एक हलचल की शिनाख्त
आज हाथों में आ समाई विराट को समेकित करने वाली एंड्रायड तकनीक के आगमन को धन्यवाद देते हुए बात की शुरूआत करते हैं जिसके होने से जनमानस आज विज्ञान यानी साइंस और गणित से जुड़े होने में फख्र महसूस करता है और सबको जाहिर भी करता चलता है। ऐसा इसलिए कहना हो रहा है क्योंकि आज से बीस साल पहले स्वयंभू आलोचक परोक्ष और अपरोक्ष ढंग से मुझ जैसे और एक तरह से समझ लीजिए वीणा सिन्हा जैसे साहित्य प्रेमी से यह कहकर आश्चर्य व्यक्त करते थे कि साइंस के बैकग्राउंड वाले लोग साहित्य में दाखिला पाने के योग्य नहीं।
बहरहाल,इस बात को छोड़कर अब मैं आपके ध्यान में भौतिकी और खगोल भौतिकी के कुछ प्रयोग और उनसे जुड़ी शब्दावलियों को लाना चाहूंगा जिनसे पता चलता है कि मनुष्य को प्राप्त हुआ यह संसार और सारा कुछ माहौल ईश्वर विहीन तो कतई नहीं है। जिन कॉन्सेप्ट की मैं कह रहा था वे हैं-स्लिट एक्सपेरिमेंट,डिलेअड च्वाइस क्वांटम इरेजर एक्सपेरिमेंट, कैसिमिर इफ़ेक्ट, बिग बैंग, सिंगुलेरिटी, एन्ट्रॉपी, इवेंट होराईजन, एटॉमिक मॉडल, बोसॉन, हिग्स बोसॉन, स्पिन और सब एटॉमिक कण, वेव्ह फंक्शन कोलेप्स, वेव्ह पार्टिकल डुएलिटी, सिमिट्री, सुपरपोजीशन, कोहेरेंस और द्वैताद्वैत आदि-आदि।
जी हां! हम आज की चर्चा में मनुष्य का इवोल्यूशन और उसमें चैतन्य का आविर्भाव व उसके विकास को सरलतम विज्ञानसम्मत और काव्यात्मक हिंदी के परसेप्शन के आलोक में देखेंगे। पिछली सदी को अगर श्रुति आधारित ज्ञान को आत्मसात करने की सदी कहा जा सके तो आज की साइंस और टेक्नालॉजी को मैं दिखाई देने या दिखने के मैकेनिज्म के पीछे के रहस्य को उजागर करने की कोशिशों की सदी कहूंगा जिसमें परसेप्शन और चैतन्य दृष्टि जैसे टर्म फोकस में हैं। आज का अतिसूक्ष्म की ओर एकाग्र साइंस और दिखने-देखने वाली और अनदेखी चीजों के होने और उनके पीछे मौजूद मैकेनिज्म के बारे में रोज-बरोज एक न एक शोधपरक तथ्य हमारे समक्ष प्रकट हो ही रहा है, इस आलेख में इस पक्ष का भी संज्ञान लिया गया है।
ग़ालिब साहब ने कह ही दिया है कि-
जबकि तुझ बिन नहीं कोई मौजूद,
फिर ये हंगामा एक खुदा क्या है!
या यह भी कि
बेखुदी बेसबब नहीं गालिब,
कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है।
ये दुनिया हर पल अनिश्चितताओं से भरी पड़ी है। ऐसे में इस जटिल मालूम होती दुनिया को ठीक तरह से समझने के लिए हमें संयोग और संभाविता के पर्दे पर झूलते दृश्यों को जिस विज्ञान की अंतर्दृष्टि से समझना होगा उसी कला का नाम है क्वांटम मैकेनिक्स। तो साइंस की क्वांटम साइंस की दुनिया अब कहीं जाकर लगभग यह मानने की स्थिति में आ गई है कि कोई सुप्रीम पावर या भगवान जैसा मिस्टीरियस मैकेनिज्म अस्तित्व में है जो गूढ़ और रहस्यमय तरीके से काम करता है, जिसकी एनर्जी को कॉन्शसनेस कहते हैं। यहां हम कविताओं के ज़रिए प्रस्तुत कुछ अनोखे एहसासों के ज़रिए कॉन्शसनेस के बारे में बात करने जा रहे हैं।
कांशसनेस की कीमियागरी डॉ. वीणा सिन्हा की अंग्रेजी कविताओं के ज़रिए उनकी हाल ही में प्रकाशित हुई किताब ‘ग्लिच इन द स्पेस-टाइम’ में दिखाया गया है। यहां मुझे यह कहना होगा कि इस किताब ने यूनिवर्स के गहरे राज़ और मिस्टीरियस फोर्स के होने के कुछ दुर्लभ अनुभव वाले सार को देखने का एक अलग नजरिया पेश किया है।
शुरू में, आइए हम कॉन्सेप्ट के तौर पर ग्लिच के कॉन्सेप्ट पर बात करते हैं। यहाँ ग्लिच या डिफ्रैक्शन या व्यतिक्रम से हमारा मतलब समय के संदर्भ में सोचने के एक बिल्कुल अलग तरीके से है। यह एक जानी-मानी बात है कि यूनिवर्स का ग्रान्ड डिज़ाइन नेगेटिव और पॉज़िटिव एनर्जी के दो परस्पर पूरकों से बना है। जब ये उलटी एनर्जी वाले सोर्स या बादल के स्वरूप यानी कैसिमिर इफ़ेक्ट के तहत मिलते हैं,तो मिलन होने पर क्रिएशन होता है। वहीं, जब ये अलग-अलग बादल अपने बीच कुछ अजीब पाते हैं तो क्रिएशन प्रोसेस घटने से इन्कार कर देती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि एनर्जी का फ्लो लगातार नहीं होता, बल्कि क्वांटा या पैकेट या इन्टरमिटेंट रूप में होता है। इसीलिए स्पेस-टाइम में ग्लिच या असमानता की प्रवृत्ति देखी जाती है। अगर हम यूनिवर्स की एब्सोल्यूट ज़ीरो की स्थिति के नेचर को समझें,तो क्रिएशन या डिस्ट्रक्शन भी दो तरह के यौगिक क्रियाएं हैं और उनके बीच हर समय खालीपन अस्तित्व में होता ही होता है और यही स्थान अल्टीमेट की,परम की मौजूदगी है। तो जिसे हम ग्लिच या असामान्यता कह रहे हैं, वह स्पेस-टाइम की चादर में वेव्ह का एक सायनोस्युडल फ़ॉर्म है। इसीलिए, ग्लिच एक नया स्पेस है जो स्पेस के अंदर एक नए इवेंट का इंतज़ार कर रहा है जिसे टाइम जैसी अतिसूक्ष्म इकाई से मापा जा सकता है।

इस काव्य संग्रह में परम सत्ता को दिलचस्प अंदाज में और विज्ञान सम्मत तरीके से सरल अंग्रेजी में आरूढ़ कराकर पाठक के समक्ष लाया गया है। विज्ञान की आस्तिक धारा की प्रतिनिधि हस्ताक्षर वीणा जी ऊर्जा के साकारात्मक मानस के अनुरूप ही सहज काव्याभासी निरूपण करती चलती हैं,निश्चित ही इसके लिए वे साधुवाद की पात्र हैं।
समग्रत: कहा जा सके तो चैतन्य इलेक्ट्रान पर सबसे पहले लैंड करता है फिर वह एटम को बदलते हुए चलते-चलते प्रोटान की स्थिति पर लैंड करता है और अंतत: वह चैतन्य न्यूट्रान पर ले जाकर अपने को छोड़ देता है। हायर ऑरबिट से लोअर ऑरबिट में ले जाना फिर नाभिकीय बिंदु पर लीन हो जाना यही ऊर्जा कणों की यात्रा दर यात्रा ही तो है।
संदेश यह है कि यह स्पेस-टाइम चैतन्य की मिलन यात्रा के अर्थ में दरअसल महा चैतन्य में विलीन होने की महा-मिलन की यात्रा है,दो बादलों का संगम होने जैसा कुछ। आज हम इस समीक्षा के रूप में एक अनोखे अनुभव से गुजर रहे हैं, यह किताब क्वांटम मैकेनिक्स से प्रेरित है। कुल कथन के रूप में कहा जा सकता है कि हमारे समय की विज्ञान फंतासी की लेखक वीणा सिन्हा ने साबित कर दिया है कि अगर इंटेलेक्चुअल लोगों के बीच शब्दों का म्यूजिकल डांस, ऑर्केस्ट्रेट करना है तो साइंस को एक म्यूजिकल स्ट्रिंग के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
इस पुस्तक को पढ़कर महसूस होता है कि इंसानी भावनाओं और बातचीत का डायनामिक्स हमारी ज़िंदगी में बहुत कुछ मायने रखता है। यह तय है कि विरल काव्यात्मक अनुभव देने वाली इस किताब की यादें हर पाठक अपनी अंतरात्मा में संजोकर रखेगा और यह कहने वाली बात नहीं है।
काव्य कृति: ग्लिच इन द स्पेस-टाइम
भाषा: अंग्रेजी
लेखक: वीणा सिन्हा
प्रकाशक: आशा पारस फाउंडेशन फॉर पीस एंड हारमनी
मूल्य: 300 रुपए
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