तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था और सबसे ज्यादा कुपोषण

जे.पी.सिंह, वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के विशेषज्ञ

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष के अनुसार अफ्रीका और दक्षिण एशिया के लगभग 24 देश कुपोषण का शिकार हैं। केवल भारत में ही प्रतिदिन 3000 बच्चे कुपोषण के कारण मौत का शिकार हो जाते हैं। यूं तो भारत विश्व की तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देशों में गिना जा रहा है, किंतु दूसरी ओर यह विश्व में सबसे ज्यादा कुपोषण से ग्रस्त देश भी है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट 2024 में भारत का स्थान 127 देशों में 105 वां है। हमसे बेहतर नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स यानी वैश्विक भूख सूचकांक का नया संस्करण जारी हो चुका है। इस बार के सूचकांक में भारत की स्थिति साल भर पहले की तुलना में और खराब हो गई है। पिछले साल भारत इस सूचकांक में 107 वें स्थान पर था। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 में भारत को 125 देशों की सूची में 111 वें स्थान पर रखा गया है।.

भारत की बढ़ती जनसंख्या संख्या में बच्चे कुपोषण के कारण मर जाते हैं। यहां के कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां कुपोषण एक तरह से जीवन का हिस्सा बन गया है। इस क्षेत्र के बच्चे या अन्य क्षेत्रों के कुपाषित बच्चे अगर बच भी जाते हैं तो उपयुक्त भोजन एवं पोषण न मिल पाने के कारण उनके शरीर और दिमाग को काफी हानि पहुंच चुकी होती है। 5 वर्ष से कम उम्र के लगभग 4 करोड़ 40 लाख बच्चों का विकास कुपोषण के कारण अवरूद्ध हो जाता है। वे पढ़ाई नहीं कर पाते और जल्दी ही जीविकोपार्जन में लग जाते हैं। कुपोषण के कारण हमारे बहुत से नौजवान अपने बराबर के स्वस्थ नौजवानों की तुलना में पीछे रह जाते हैं। ऐसा होने पर गरीबी का चक्र चलता ही जाता है।

पूरी दुनिया 16 अक्टूबर को प्रतिवर्ष विश्व खाद्य दिवस मनाती है जबकि एक कडवी हकीकत है कि एक ओर जहां दुनिया में 78.3 करोड़ लोग खाली पेट सोने को मजबूर हैं, वहीं हर दिन करीब 100 करोड़ खुराक के बराबर भोजन बर्बाद किया जा रहा है। 2022 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो साल में करीब 105.2 करोड़ टन भोजन बर्बाद हो रहा है, जो हर साल प्रति व्यक्ति औसतन 132 किलोग्राम के बराबर है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की नई रिपोर्ट ‘फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट 2024’ में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक खाने योग्य करीब 20 फीसदी भोजन कचरे में फेंक दिया जाता है।

वर्ष 2024 के लिए 19वीं ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) रिपोर्ट में भारत को 127 देशों में 105 वां स्थान दिया गया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत उन देशों में शामिल है जहां भुखमरी एक ‘गंभीर’ समस्या है। रिपोर्ट में भारत को अपने पड़ोसी देशों श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार और बांग्लादेश से पीछे रखा गया है, जबकि यह पाकिस्तान और अफगानिस्तान से थोड़ा ही आगे है। ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ और ‘वेल्टहंगरहिल्फ’ की ओर से संयुक्त रूप से प्रकाशित ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट दुनिया भर में भुखमरी पर नजर रखती है, खासकर उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करती है जहां तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।

2024 की रिपोर्ट में भारत का स्कोर 27.3 है जो भुखमरी के एक गंभीर स्तर को दर्शाता है। रिपोर्ट में हाल के वर्षों में भारत में कुपोषण के प्रसार में मामूली वृद्धि का उल्लेख किया गया है। हालांकि, भारत का 2024 का स्कोर उसके 2016 के जीएचआई स्कोर 29.3 से कुछ सुधार दिखाता है। 2016 में भी भारत ‘गंभीर’ श्रेणी में ही था। लेकिन, यह अभी भी अपने पड़ोसियों से काफी पीछे है। 2000 और 2008 में क्रमशः 38.4 और 35.2 के स्कोर की तुलना में काफी प्रगति हुई है, जो दोनों ही ‘चिंताजनक’ श्रेणी में थे।

भारत को अभी भी बाल कुपोषण जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें विश्व स्तर पर बच्चों में दुबलापन (18.7%) सबसे अधिक है। देश में बच्चों के बौनेपन की दर 35.5%, पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 2.9% और कुपोषण का प्रसार 13.7% है। हालांकि, भारत ने 2000 के बाद से अपनी बाल मृत्यु दर में उल्लेखनीय रूप से सुधार किया है, बाल कुपोषण एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, जिसमें दुबलापन और बौनापन दोनों ही खतरनाक रूप से उच्च स्तर पर हैं। कुपोषण के कारण जिन बच्चों की क्षमता पर्याप्त विकसित नहीं हो पाती, उनके कारण 2030 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग 46 करोड़ डॉलर की हानि होगी।

भारत में बाल बौनेपन की दर भी 35.5% है, 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर 2.9% है और कुपोषण दर 13.7% है। जबकि भारत ने वर्ष 2000 के बाद से अपनी बाल मृत्यु दर में काफी सुधार किया है, बाल कुपोषण एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, जिसमें दुर्बलता और बौनेपन की दर अभी भी चिंताजनक रूप से है। हालांकि 2000 के बाद से बौनेपन में कमी आई है, लेकिन ये संकेतक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए सीरियस चैलेंजेज हैं।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स पर विवाद की वजह है कि भारत को कई पड़ोसी देशों से नीचे रखा गया है। उदाहरण के लिए इस बार के सूचकांक में पाकिस्तान 102वें स्थान पर है। वहीं सूचकांक में बांग्लादेश को 81वें, नेपाल को 69वें और श्रीलंका को 60वें स्थान पर रखा गया है। इसका अर्थ हुआ कि नेपाल और श्रीलंका और पाकिस्तान व बांग्लादेश जैसे देशों में भी भूख के मामले में स्थिति भारत से बेहतर है।

हरित क्रांति के सूत्रपात के पांच से अधिक दशक के बाद आज भारत में खाद्यान्न के उत्पादन में हुई वृद्धि के बावजूद भी कुपोषण में आनुपातिक तौर पर कोई कमी नहीं आई। जहां एक ओर पिछले दो या तीन दशकों में आर्थिक वृद्धि की दर में बढ़ोतरी हुई है, वहीं गरीबी में आई कमी और रेशेदार आहार की उपलब्धता के कारण लगभग 15 प्रतिशत कुपोषित लोगों में भी कमी आई है, लेकिन समग्र रूप में कुपोषण की स्थिति जस की तस बनी हुई है।

भारत में बच्चों के लगातार कुपोषित बने रहने का सबसे बड़ा कारण है ग्रामीण क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्तर पर 25 प्रतिशत गरीबी। गरीब राज्यों में स्थिति और भी दयनीय है।इसकी तुलना में शहरी क्षेत्रों में यह आँकड़ा 14 प्रतिशत है। इस समय भारत में खेतिहर परिवारों में भारी गरीबी का यह आंकड़ा 50 प्रतिशत तक पहुंच गया है। इसके मुख्य कारण हैं, कृषि उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच कारोबार की शर्तों में बदलाव करने और कृषि क्षेत्र के लिए पर्याप्त मात्रा में निवेश करने में सरकार की विफलता।

संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि भारत में हर साल कुपोषण के कारण मरने वाले पांच साल से कम उम्र वाले बच्चों की संख्या दस लाख से भी ज्यादा है। दक्षिण एशिया में भारत कुपोषण के मामले में सबसे बुरी हालत में है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में किए गए सर्वेक्षणों में पाया गया कि देश के सबसे गरीब इलाकों में आज भी बच्चे भुखमरी के कारण अपनी जान गंवा रहे हैं। भारत में अनुसूचित जनजाति (28%), अनुसूचित जाति (21%), पिछड़ी जाति (20%) और ग्रामीण समुदाय (21%) पर अत्यधिक कुपोषण का बहुत बड़ा बोझ है।

मोदी सरकार द्वारा विकास के तमाम दावों के बीच विश्व में सबसे ज्यादा 19.5 करोड़ कुपोषित लोग भारत में रहते है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के आधे से अधिक लोग (79 करोड़) अभी भी ‘स्वस्थ आहार’ का ख़र्च उठाने में असमर्थ हैं, जबकि 53 फीसदी महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं।विकास के तमाम दावों के बीच विश्व में सबसे ज्यादा 19.5 करोड़ कुपोषित लोग भारत में है. ये जानकारी ‘स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड‘ (एसओएफआई) की रिपोर्ट में सामने आई है, जो बुधवार (24 जुलाई24) को जारी की गई।संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और यूनिसेफ समेत चार अन्य यूएन संस्थाओं ने संयुक्त रूप से प्रकाशित किया है।

एसओएफआई रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि आधे से अधिक भारतीय (55.6%) अभी भी ‘स्वस्थ आहार’ का खर्च उठाने में असमर्थ हैं, जो संख्या के लिहाज से 79 करोड़ लोग हैं। ये अनुपात दक्षिण एशिया में सबसे अधिक है। भारत में जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों का प्रतिशत 27.4 है, जो दुनिया में सबसे अधिक है। यदि जन्म के समय किसी बच्चे का वजन 2,500 ग्राम से कम है तो इसे कम वजन वाला बच्चा कहा जाता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, जन्म के समय कम वजन वाले शिशुओं की मृत्यु अधिक वजन वाले शिशुओं (एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों) की तुलना में 20 गुना अधिक होती है। जन्म के समय बच्चे का कम वजन गर्भवती महिलाओं में कुपोषण का भी संकेतक है।

इस रिपोर्ट यह भी कहा गया है कि भारत में आधे से अधिक महिलाएं (53.0%) एनीमिया से पीड़ित हैं, जो दक्षिण एशिया के साथ ही पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा है। महिलाओं में एनीमिया की व्यापकता, विशेष रूप से प्रजनन आयु के दौरान, न केवल उन पर बल्कि बच्चे के जन्म के समय भ्रूण के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव डाल सकती है। वहीं, अगर वैश्विक स्तर पर महिलाओं (15 से 49 वर्ष) में एनीमिया की व्यापकता देखें, तो ये 2012 में 28.5% से बढ़कर 2019 में 29.9% हो गई।

आज के समय में कुपोषण अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये चिंता का विषय बन गया है। यहां तक की विश्व बैंक ने इसकी तुलना ब्लेक डेथ नामक महामारी से की है जिसने 18 वीं सदीं में यूरोप की जनसंख्या के एक बड़े हिस्से को निगल लिया था।

One thought on “तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था और सबसे ज्यादा कुपोषण

  1. १. बच्चे वोट नहीं देते.
    २. शिशु मृत्यु दर में कमी का कारण नई तकनिकी और एंटी- बायोटिक्स हैं.
    ३. कुपोषण के बड़े कारण , गरीबी, food security at family level और हमारे व्यवहार हैं.

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