रंग आलाप नाट्य महोत्सव: रंगमंच के पितामह हबीब तनवीर के प्रति श्रद्धा उत्सव ‘स्मरण हबीब’

विजय बहादुर सिंह
ख्यात आलोचक, कवि
गुरुवार 5 जून 2025 की शाम भोपाल के रवींद्र भवन में विहान नाट्य दल द्वारा प्रस्तुत बारहवीं शताब्दी में रचित संस्कृत प्रहसन हास्य चूड़ामणि की प्रस्तुति देख मैं यह अनुभव कर सका कि आचार्यों ने समस्त शब्द सृष्टि में नाटक को सर्वाधिक रमणीय क्यों कहा है। हास्य चूड़ामणि जबकि एक प्रहसन मात्र है जिसे बारहवीं सदी के नाटककार वत्सराज ने रचा है। संस्कृत साहित्य के अत्यंत समृद्ध नाट्य संसार में इस नाटक के रचयिता कालंजर (कइयों के उच्चारण में कालिंजर,1163-1202ई.) के राजा परमर्दिदेव और उनके पुत्र (त्रैलोक्यवर्मदेव 1203-1241ई.) के अमात्य रहे।
नि:स्संदेह उस दुर्ग और उसमें रहने वाले सदियों पहले के बाशिंदों की जीने और रहने की अदाएँ कैसी विकट और पुरुषार्थपूर्ण रही होंगी। दो साल पहले जब मैं एक साहित्यिक सम्मान के संदर्भ में अपने परम मित्र और ख्यात साहित्याचार्य राधावल्लभ जी त्रिपाठी के साथ बाँदा गया तो स्थानीय आयोजन के कर्ताधर्ता और सुपरिचित हिंदी कवि नरेंद्र पुंडरीक की अगुवाई में इस किले को निहारने हम दोनों भी गए थे। सुखद संयोग कि हमारे साथ युवा कवयित्री और विशिष्ट चित्रकार वाज़दा खान भी थीं।
अब इस नाटक के रचयिता वत्सराज की प्रतिभा को लेकर सोचता हूँ तो लगता है कि सत्ता और सिंहासन के राजकाज के बीच इस नाटककार के जीवनानुभव कितने विविधता पूर्ण रहे होंगे। इससे भी बड़ी बात यह कि सत्ता के शीर्ष पर बैठा यह शख़्स अपने चतुर्दिक के लोक के प्रति कितना सचेत और संवेदनशील रहा होगा जिसने अपने समय के लोगों के लिए एक ऐसे प्रहसन की रचना की जो उनकी जीवंतता और रसविभोरता के साथ साथ धर्म के नाम पर कुकुरमुत्तों की तरह उपस्थित मायावी ठगों के प्रति अपने लोगों को सावधान कर सकें। कहने को हास्य नाटक था पर अपनी प्रस्तुति में ऐसी शिक्षाएँ और संकेत लिए था जिससे जनसमाज सचेत हो सके।
विहान नाट्य दल ने इसे अपनी प्रस्तुति के लिए चुनते हुए वे कौन सी संभावनाएँ और गुंजाइशें देखी होंगी जो निर्देशक सौरभ अनंत ने अपने दर्शकों को बतौर संदेश देना चाहा होगा? यह बेझिझक कह सकता हूँ कि इस प्रस्तुति के द्वारा उसने मूलकथ्य में बगैर किसी छेड़छाड़ के वह सब कहने की गुंजाइश निकाल ली जो बतौर कलात्मक दायित्व उसने अपने दर्शकों से कहना चाहा था। यह उसकी अपनी सफलता तो है ही, मूल नाटककार वत्सराज की अपनी सर्जनात्मक प्रतिभा का कमाल भी है।
संस्कृत नाटक की बुंदेली बोली में प्रस्तुति यों भी पराई नहीं जान पड़ी कि मूल रचयिता का संबंध भी बुंदेलखंड से ही रहा है।
इसे मनोमुग्धकारी और जीवंत करते अभिनेताओं/अभिनेत्रियों ने अपनी जैसी प्रवीणता और दक्षता प्रदर्शित की वह हमारी उम्मीदों से भी कई कदम आगे थे बल्कि हमें सचमुच उतनी देर तक उस मनोभूमि पर ले गया जिसे शास्त्रकारों ने ब्रह्मानंद सहोदरः कहा है। निश्चय ही इसमें अभिनय सिद्ध अभिनेता हेमंत देवलेकर (पाखंडी साधु ज्ञानराशि), शिष्य अंश जोशी (शिष्य कौंडिन्य) श्वेता केतकर (कपटकेलि) और यौवनमद में आई उसकी बेटी ईशा गोस्वामी (मदनसुंदरी) के साथ प्रेमविलास करता नट अंकित पारोचे (विलासी कलाकरंडक) आदि ने जैसा अभिनय किया, उसने यह एहसास कराया कि सेलुलाइड परदे पर तमाम तरह की अति आधुनिक तकनीक की मदद से की जातीं प्रस्तुतियाँ अपनी जगह और हमारे सामने हमारे आपके जैसों के बीच आते-जाते और उठते-बैठते लोग मंच पर पहुँच सचमुच कितने और कैसे जादुई हो जाते हैं।
इस प्रस्तुति को एक प्रेक्षक के रूप में देखते हुए उस शाम मैंने हर क्षण यही अनुभव किया कि न केवल निर्देशक बल्कि मूल लेखक की कल्पनाओं को भी विहान के इन कलाकारों ने अपनी अभिनय कला से कैसा जादुई नवसंस्कार और पुनर्जीवन सा दे दिया।
(रंग आलाप नाट्य महोत्सव का यह आयोजन प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी 4जून से 8जून तक रंगमंच के पितामह हबीब तनवीर के प्रति ‘स्मरण हबीब’ के नाम समर्पित है जिसके परिकल्पक और आयोजनकर्ता हम थियेटर समूह के जाने माने निर्देशक और मंचसिद्ध अभिनेता बालेंद्र सिंह हैं।)



